नदी की बादल से गुहार हमें दूषित होने से बचा लो
प्राचीन समय में माँ नर्मदा में मछलियों को पुण्य कार्य हेतु उन्हें आहार दिया जाता था। उसके बाद कई मछलियों को सोने की नथ पहना कर वापस नर्मदा के जल में छोड़ दिया जाता था। नर्मदा नदी में कई प्रकार की मछलियां पाई जाती है। इनमे से एक टाइगर फिश महाशिर मछली का दर्जा मध्यप्रदेश को प्राप्त है।विभिन्न कारणों से इस टाइगर फिश की बहुत ही कमी नर्मदा नदी में आई है। जो कि चिंता विषय है। मछली जल को साफ़ रखने में अपनी अहम् भूमिका अदा करती आई है उसी सन्दर्भ में बहुत पहले गंगा नदी में डॉल्फिन मछलियाँ छोड़ी थी ताकि गंगा नदी का जल साफ़ हो सके ,कहते गंगा का पानी कभी ख़राब नहीं होता। संक्रमण काल के दौरान जल वायु निर्मल हुए प्रदूषण मुक्त हुए किंतु संक्रमण के पूर्व प्रदूषणकारी संयंत्रों की वजह से रासायनिक पानी एवं अपशिष्ट डालते आने से प्रदूषण बढ़ा था। अब प्रदूषण को बढ़ने ना देवे ताकि धरती निर्मल बनी रह सकें। हमारा मानना है कि जीव - जंतुओं को अपना काम करने दे और हम भी स्वच्छता में अपना हाथ बटाए ,ताकि शुद्ध जल शुद्ध वायु की प्राप्ति हो सकें।
वर्षा के जल को सहेजा जाए उदाहरण के तौर पर परियोजना ,तालाब ,स्टॉपडेम ,निस्तार,का ज्यादा संख्या में निर्माण होवे जिसके निर्मित होने से विषम परिस्थियों में तालाब कुँए, बावड़ी आदि में स्वतः जलस्तर बढ़ जावेगा।साथ ही खेती को सिंचाई हेतु वाटर लेवल बढ़ाने में जल की आपूर्ति को एक नया बल देगा।इनके अलावा व्यर्थ ढुलने वाले पानी पर रोक हेतु पहल की जाना चाहिए।ताकि पानी की समस्याओं का सामना न करना पड़े।जल वितरण दो दिनों और पानी पाउच, बोतलों में ,पानी की टंकियों में लोग खरीद कर पी ही रहे है।यदि पानी को नही सहेजा तो एक दिन पानी की कीमत कई गुना बढ़ जाएगी।पानी सहेजें तो ही हम नदियों के पानी को व्यर्थ समुद्र में बहने से रोककर उसका उपयोग कर पाएंगे। जल ही जीवन की परिभाषा को सही तरीके से समझ पाएंगे।इसके लिए जल संरक्षण ,जल संकल्प के साथ पानी सहेजने के स्रोतों का निर्माण आवश्यक है । सूखे की स्थिति में इन संसाधनों के निर्मित होने सहेजे जल का उपयोग सुविधाजनक होगा।इसके अलावा व्यर्थ ढुलने वाले जल पर रोक हेतु पहल की जाना चाहिए।वाटर हार्वेस्टिंग घरों की छतों पर होना चाहिए ताकि जल की समस्याओं का सामना न करना पड़े।।यदि जल को नही सहेजा तो एक दिन जल की कीमत कई गुना बढ़ जाएगी।
नदी की गुहार
जिंदगी क्या है
एक बहती नदी
जो सुख दुःख के
किनारों से
टकरा कर चलती
चलती तो है जब
दुःखो का पहाड़
गिरा तो बादल से
रिश्तें मुँह मोड़ लेते
नदियां सूखने लगती
पत्थर हो जाते नग्न
मानों किसी ने
गरीबी को उघाड़ दिया हो।
बादल को लगाई अर्जी
मौसम में आना जरूर
क्योंकि ये तुम्हारा
कर्तव्य जो है।
स्वागत हेतु
प्रकृति के रिश्तेदार
अभिवादन की
टकटकी लगाकर
निहारते तुम्हें
तुम बरसोगे तो ही
मै बहूँगी
और किनारों पर
बसे लोगों से
कहती जाऊंगी
बादल मेरे जीवन के
प्राण है
रिश्तें है
अर्पण है
समर्पण है
तुम्हारे बरसने से ही
लोग पूजते मुझे।
सूखने पर
बन जाती रास्ता
राहगीरों का
घाट सूने बन जाते
निर्जीव
आचमन की आस
हो जाती कोसों दूर
कोई भगीरथ ही
इस झोली को
गहरा कर
पुण्य ले सकता।
गहराने से
बेह तो नहीं सकती
स्थिर तो रह सकती
जहाँ कोई प्यासा प्राणी
कम से कम
अपनी प्यास
तो बुझा सके
नहीं तो मेरी कई बहिनें
विलुप्त हुई
वैसे ही मैं तो
विलुप्त होने से
बच जाऊंगी
लोगों को
दर्शन और प्यास से
अपना वर्चस्व बताऊंगी।
संजय वर्मा दृष्टि'
125,बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर(धार)मप्र
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY