इच्छाएं
बर्फ का गोला
रसीला रंग बिरंगा और बुड्डी के बाल
दोनों मुंह में रखते ही
घुल जाते है
जैसे माँ का स्नेह
घुल जाता बच्चों मे |
बढ़ती उम्र मे
पोपले मुंह से
इन्हें ला कर देने का
कह नहीं पाती
सोचती है ? लोग क्या कहेंगे |
मगर हम तो भेड़ चाल में
लग जाते कतार में
इन्हें खाने की चाहत मे
बच्चो के संग बन जाते है बच्चे |
बुड्डी माँ को पूछते नहीं
उसकी इच्छा क्या है ?
जीवित काया को नजर अंदाज करके
मृत शरीर की तस्वीरों पर
अर्पित करने लग जाते
इच्छाओं के फल |
ख्वाब में आकर कोई
कह जाता है -जीवित रहते हुए तुम
करते मेरी इच्छा पूरी
तो कुछ और बात होती
किन्तु ......
क्या ये इच्छाओं का
दमन नहीं है |
संजय वर्मा "दृष्टि "
१२५, शहीद भगत सिंह मार्ग
मनावर (धार )

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