Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हकीकत मानने से मै भला इनकार क्योँ करता

 

1

हकीकत मानने से मै भला इनकार क्योँ करता

तुम्हारे प्यार के खातिर किसी से प्यार क्योँ करता

निवाला मुँह का देकर जिसने मेरी परवरिश की थी

जरा सी बात पर उस माँ से मै तकरार क्योँ करता

2

सफर करते हुए नभ की ,ये धरती याद आती है

लुटेरोँ को अभी भी मेरी बस्ती याद आती है

हमेँ मालूम है 'सागर'इसी को प्यार कहते हैँ

मै जब भी तनहा होता हूँ वो लड़की याद आती है

3

कोई जब जिस्म का सौदा लगाते हैँ तो हंगामा

हया सब छोड़ के पैसा कमाते हैँ तो हंगामा

वफा की राह पे हमको कोई चलने नहीँ देता

कलम को छोड़कर खंजर उठाते हैँ तो हंगामा

 

4.

मिली जो भी खबर मुझको तुम्हेँ बतला रहा हूँ मै

यकीँ मानो उसी विधवा से मिलकर आ रहा हूँ मै

न देवोँ की कृपा मुझ पर न तेरा ही सहारा है

ये मेरे माँ की महिमा है कि गजलेँ गा रहा हूँ मै

5.

धूप मेँ भी चाँद का दीदार होना चाहिए

आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए

माँ-बहन भाई को माना प्यार है तुमसे बहुत

हाँ मगर कुछ मेरा भी अधिकार होना चाहिए

6.

चमकते चाँद को बीमार मत समझो

सँपोलोँ को किसी का यार मत समझो

मै शायर हूँ मेरे प्रेमी हजारोँ हैँ

मुझे तुम एक गले का हार मत समझो


 

सागर यादव 'जख्मी'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ