Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दोहे

 

रवीन्द्र प्रभात

 

 

पहले ओला गिर गया, गडमड पैदावार !
कैसी गर्मी बेशरम, आयी है इसबार !!

 

झुरमुट-झुरमुट झांकता, रात में नन्हा चाँद !
पर ज्यों-ज्यों दिन चढ़ रहा, बढ़ा रहा अवसाद!!

 

धूप चढी आकाश में, मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गयी , रेगिस्तानी पियास !!

 

लहर-लहर के लोल पर, ललकी-ललकी धूप !
नदी पियासी ढूंढ रही, कहाँ गए नलकूप !!

 

कान्हा – कान्हा ढूँढती , ताक- झाँक के आज ।
कौन बचाएगा यहाँ, पांचाली की लाज । ।

 

गिद्ध – गोमायु- बाज में, राम-नाम की होड़ ।
मरघट-मरघट घूमते, तोते आदमखोर । ।

 

कातिल – कातिल ढूंढ के , मुद्दई करे गुहार ।
मोल-तोल में व्यस्त हैं, मुंसिफ औ सरकार। ।

 

राग- भैरवी छेड़ गए, कैसा बे – आवाज़ ।
उछल-कूद कर मंच मिला ,बन बैठे कविराज । ।

 

घर- घर बांचे शायरी , शायर-संत – फ़कीर ।
भारत देश महान है , सब तुलसी सब मीर । ।

 

राजनीति के आंगने , परेशान भगवान ।
नेत- धरम सब छोड़ के , पंडित भयो महान । ।


हंस-हँस कहती धूप से , परबत-पीर-प्रमाद ।
बहकी – बहकी आंच दे , पिघला दे अवसाद । ।

 

यौवन की दहलीज पे, गणिका बांचे काम ।
बगूला- गिद्ध- गोमायु सब, साथ बिताये शाम । ।

 

नदी पियासी देख के , ना बरसे अब मेह ।
धड़कन की अनुगूंज से , बादल बना विदेह । ।

 

लूट रही मंहगाई, आकरके बाज़ार !
मौसम सी बदली हुयी, दिखती है सरकार !!

 

निर्वाचन के घाट पे , भई नेतन की भीड़ !
जनता बन गयी द्रौपदी , खींच रहे हैं चीर !!

 

गदहा गाये भैरवी , तनिक न लागै लाज !
शाकाहारी बन गए , गिद्ध -गोमायु -बाज !!

 

पक्ष और प्रतिपक्ष में, ढूंढ रहे सब खोंच !
पांच बरस तक चोंचले, खूब लड़ाए चोंच !!

 

हरियाली की बात करे , सूख गए जब पात !
जनता भोली देखती , नेता का उत्पात !!

 

कृष्ण-दु:शासन साथ हैं , अर्जुन बेपरवाह !
कोई मसीहा आये, दिखलाये अब राह !!

 

तन पे सांकल फागुनी, नेह लुटाये मीत !
पके आम सा मन हुआ , रची पान सी प्रीत !!




महुआ पीकर मस्त है, रंग भरी मुस्कान !
झूम रहे हैं आँगने, बूढे और जवान !!

 

धुप चढी आकाश में , मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गयी , बासंती एहसास !!


चूनर- चूनर टांकती , हिला-हिला के पाँव !
शहर से चलकर आया, जबसे साजन गाँव !!

 

मंगलमय हो आपको , होली का त्यौहार !
रसभीनी शुभकामना, मेरी बारम्बार !!

 

मह- मह करती चांदनी , सूख गए जब पात ।
रात नुमाईश कर गयी , कैसे हँसे प्रभात । ।

 

 

 

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