Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तक़लीफ़

 

तारीफ़ तेरी ता- क़यामत, ताक़ पे तक़दीर रख दी,
हिल गया यकीन-ए-ख़ुद, तस्वीर बे-नज़ीर रख दी ।

 

मंज़र महज़ लम्हों का, तारीख़ का बन गया गवाह,
थमा बशर का कारवां, सामने नज़र तहरीर रख दी ।

 

कितने हैं बेघर बेआसरे, कितनों के सर से साये उठे,
बची रही अक़ीदत तेरी, ज्यों बाँध कर ज़ंजीर रख दी ।

 

उठ सके क्या कोई आग, इस जलजले की राख़ से,
मिले तपिशे-कल्ब को आब, जल रही तस्वीर रख दी ।

 

धर्म का हो राज जग में, क़ायदा बस तेरा क़ायम रहे,
बे- वक़्त ना बुझें चिराग़, दिल उठी तक़लीफ़ रख दी ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

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