Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

' तफ़्तीश '

 

ख़तों के ज़वाब, अब ना आने लगे,
संजीदगी से अब वो पेश आने लगे ।

 

बे-वक़्त मिलने का न था कभी सबब,
बहाने न मिलने के अब लगाने लगे ।

 

बैठ पहलू में जिनके मिलती थी ठंडक,
दूर से ही वो आग दिल में जलाने लगे ।

 

नज़रों से समझते थे जो दिल की बात,
पहेलियाँ नवेली सी अब बुझाने लगे ।

 

तफ़्तीश कर खूब पहचाना है हम को,
गैरों की तरह अब हम्हें आज़माने लगे ।

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ