Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कैसे सुनाऊं मैं अपनी कहानी

 

 

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कैसे सुनाऊं मैं अपनी कहानी।
ग़मो से भरी है मेरी जिन्दगानी।।

 

चाहत सदा कैद है इस जहाँ में
करते यहां ज़ुल्म हैं मेज़बानी।।

 

किसे फ़िक्र है घर जले हैं तो कैसे
करेगा भला कौन अब मेहरबानी।।

 

काटा किये हैं दरख़्तों को सारे
जड़ों में कोई डाल दो इनकी पानी।।

 

ठहरता नही वक्त खातिर किसी के
मगर छोड़ जाता है अपनी निशानी।।

 

यहाँ सब्र का बाँध टूटेगा इक दिन
जो करते रहोगे यूँ ही छेड़खानी।।
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राजेन्द्र प्रकाश वर्मा

 

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