Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रसूखदार

 

 

बजरंग बाबू अपनी पत्नी के जिद के आगे घूटने टेक दिए थे और शहर अपने छोटे भाई पवन के
यहां पत्नी के साथ जाने को तैयार हो गए थे.
बड़े भाई होने के नाते बजरंग बाबू ने पिता की तरह पवन से स्नेह रखते थे. खूद बिना पढ़े उन्होंने पवन को शहर में ही अंग्रेजी स्कूल में डाल दिया था, पवन पढ़ने में तेज था, स्कूल की परीक्षा अच्छे अंकों से उतीर्ण करने के बाद शहर में ही काॅलेज में दाखिला ले लिया था.
बजरंग बाबू को कम उम्र से ही घर की जिम्मेवारी उठाने की आदत पड़ गयी थी. बजरंग बाबू के पिता एक दिन अचानक घर-बार छोड़कर न जाने कहां चले गए थे, बीस साल हुए उनका कोई अता-पता नहीं चला. बजरंग बाबू अपने पिता को ढूढ़ने का अपने स्तर से काफी प्रयास किए पर पता नहीं चल पाया. पुलिस भी नहीं खोज पायी थी. रिष्तेदारों को भी इस बात की खबर थी, वे सभी बजरंग बाबू के पिता को ढूढ़ने का प्रयास कुछ महीने तक करते रहे थे फिर समय बीतता
गया, सभी ढूढ़ना छोड़ दिए.
बजरंग बाबू की माॅं बहुत तेज तर्रार महिला थी हालांकि बहुत पढ़ी लिखी तो नहीं थी परंतु कहा करती थी कि अंग्रेजों के जमाने की मीडिल पास आज के एमए पास से बेहतर होता है. बजरंग बाबू की माॅं यह साबित भी कर दिखाया. गांव में खेत-खलिहान की देखभाल, बजरंग बाबू और पवन की शादी, सब कुछ तो बजरंग बाबू की माॅं ने ही तो किया था. बजरंग बाबू जब घर की सभी जिम्मवारियां अपने सर ले लिया तब कहीं जाकी उनकी माॅं को थोड़ी राहत मिली थी. अब
उनका ज्यादा समय पूजा-पाठ में ही बितता था.
बजरंग बाबू ने अपने छोटे भाई को काबिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा था और पवन भी काफी संजीदगी से अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी कर के लोक सेवक बन गया था. उच्च न्यायालय के एक माननीय न्यायाधीष की बेटी से पवन ने प्रेम विवाह किया था. अपने पितातुल्य बड़े भाई को अपने प्रेम विवाह का न्योता तो नहीं दिया परंतु खबर जरूर किया था. बजरंग बाबू अपने छोटे भाई
की खूषी में अपनी खूषी समझते थे लिहाजा खबर सुनकर उन्हें ऐसा लगा मानो उनसे अनुमति मांगी गयी होे. पवन बाबू अभी एक जिला के डीएम थे. नौकरी करते हुए पवन बाबू ने बहुत नाम और धन कमाया था जिसकी खबर बजरंग बाबू और उनकी पत्नी को अक्सर मिल जाया करती थी.
बजरंग बाबू के तीन पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र को शहर में पवन बाबू के यहां रहकर पढ़वाने की मंषा रखती थी बजरंग बाबू की पत्नी हालांकि बजरंग बाबू का ऐसा कोई विचार नहीं था. बजरंग बाबू को लगता था कि अपने बेटे को छोटे भाई के यहां रखकर पढ़ाई-लिखाई कराना ठीक नहीं है. बजरंग बाबू जिस तरह अपने छोटे भाई को कड़ी मेहनत से खूद गांव में रहकर शहर में पढ़ाया उनके इस निस्वार्थ भाव से किए गए कत्र्तव्य पर पानी फीर जाएगा अगर वे अपने बड़े पुत्र को अपने छोटे भाई के यहां पढ़ने भेज देते है तो, ऐसा उनका विचार था. लेकिन बजरंग बाबू की पत्नी की सोच अलग थी, वे सोचती थी कि उनके देवर को उनके पति ने पढ़ाया-लिखाया तो आज जब उनका देवर जिला का मालिक बन गया है तो उनके बेटे को उनका देवर अपने यहां क्यों नहीं पढ़ने के लिए रखेंगे. इसलिए बजरंग बाबू की पत्नी अपने डीएम बने देवर से शहर जाकर
मिलना चाहती थी.
एक दिन बेमन से बजरंग बाबू अपनी पत्नी को लेकर पवन बाबू से मिलने चले गए. पवन बाबू की पत्नी जज साहब की बेटी थी, शान-षौकत से रहती आयी थी, बाॅयकट बाल, कीमती गहने कपड़े, मार्डन रहन-सहन की आदि. बजरंग बाबू और उनकी पत्नी को थैली-गठरी लिए हुए जब पवन बाबू की पत्नी ने अपने सरकारी आवास के गेट पर देखा तो अवाक सी रह गयी. चपरासी आकर उन्हें खबर दिया कि गांव से दो मेहमान आए हुए है, साहब के बड़े भाई और भाभी
बताते है और उनसे मिलना चाहते है.
पवन बाबू की पत्नी ने चपरासी से कहा, जाकर कहो साहब टूर पर है, आएगें तब मिल लेेगे. इन्हें सर्वेंट क्वार्टर में रख आओ, पवन बाबू की पत्नी ने चपरासी को हुकूम दिया.
चपरासी जाने को हुआ कि उसे आवाज देते हुए डीएम साहब की पत्नी ने कहा, सूनो चाय, नाष्ता, खाना, विस्तर सर्वेंट क्वार्टर भिजवा दो, किसी तरह की कमी नहीं होने पाए.
चपरासी बड़े अदब से कहा, जी मेम साहब.
डबडबायी आंखों से बजरंग बाबू और उनकी पत्नी दूर से ही रसूखदार देवरानी को देखते
हुए सर्वेंट क्वार्टर की तरफ चपरासी द्वारा ले जाए जा रहे थे.

 

 




राजीव आनंद

 

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