Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

किस बात की तुम से हम गिला करते

 
किस बात की तुम से हम गिला करते पत्थर भी है कहीं पिघला करते  तुम ने ही न कहीं अपनी तकलीफे हमसे वरना हम दुआ करते असमान हिला देते  सी लिए होठ बंद कर ली जुबान हमने के सुनते अगर दास्तान तो सब को हम रुला देते  माँगा तो होता एक बार हमसे  तुम को  हम सारी कायनात ही दिला देते  जाते जाते भी मुझको न दी आवाज़ तुमने शायद था इंतजार के हम ही सदा देते 
 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ