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चमकती तस्वीरों के पीछे का अंधेरा

 

चमकती तस्वीरों के पीछे का अंधेरा

[जो दिखता है, वो कभी नहीं होता और जो होता है, वो कभी नहीं दिखता]



दुनिया की चकाचौंध में हम अक्सर उस सतह को ही सच मान लेते हैं, जो आँखों के सामने चमक रही होती है। लेकिन सच्चाई का रंग वैसा नहीं होता, जैसा वह दिखाई देता है। जो दिखता है, वो कभी नहीं होता और जो होता है, वो कभी नहीं दिखता - यह पंक्ति हमारे समय की सबसे गहरी सच्चाई को उजागर करती है। हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ सत्य को सजावट की जरूरत पड़ती है, और झूठ बिना मेहनत के चमक उठता है। यह समाज अब वास्तविकता को नहीं, बल्कि उसकी छवि को पूजता है। हर तरफ एक नकली चमक का बाजार सजा है, जहाँ सच्चाई का कोई मोल नहीं, और दिखावा ही सबसे बड़ी मुद्रा बन चुका है। 

आज इंसान की कीमत उसकी आत्मा से नहीं, बल्कि उसकी छवि से आँकी जाती है। सोशल मीडिया के इस युग में लोग अपनी जिंदगी को एक मंच की तरह सजाते हैं। हर कोई एक अभिनेता है, जो अपनी कहानी को फिल्टर्स, हैशटैग्स और चमकदार पोस्ट्स के जरिए पेश करता है। कोई अपनी टूटन को छुपाने के लिए मुस्कुराहट का मुखौटा पहनता है, तो कोई अपने दर्द को दफनाने के लिए “सब ठीक है” का स्टेटस अपलोड करता है। इंस्टाग्राम पर चमकती तस्वीरें, फेसबुक पर प्रेरणादायक उद्धरण, और ट्विटर पर मजाकिया टिप्पणियाँ - ये सब उस सच्चाई को ढँकने की कोशिश हैं, जो भीतर पनप रही होती है। कोई डिप्रेशन में डूबा इंसान अपनी स्टोरी में रंग-बिरंगे फिल्टर्स डालता है, और कोई हताशा के कगार पर खड़ा व्यक्ति “लाइफ इज ब्यूटीफुल” का नारा लगाता है। यह सब एक ऐसी दुनिया की तस्वीर पेश करता है, जहाँ भावनाएँ नहीं, प्रतीक हावी हो चुके हैं।

हमारे रिश्ते अब स्टेटस अपडेट्स और इमोजी से परिभाषित होने लगे हैं। प्रेम, दोस्ती, और परिवार - ये सब अब केवल दिखावे की चीजें बनकर रह गए हैं। लोग यह नहीं पूछते कि आपका दिल कैसा है, वे यह देखते हैं कि आपकी प्रोफाइल कितनी आकर्षक है। एक परफेक्ट फैमिली की तस्वीर के पीछे अनकहे झगड़े, अनसुने दर्द, और अनदेखी उदासियाँ छिपी होती हैं। हम दूसरों की आँखों में झाँकने से कतराते हैं, क्योंकि वहाँ सच्चाई का आलम दिख सकता है और सच्चाई से हम डरते हैं। हम उसे देखना नहीं चाहते, क्योंकि वह हमारे आरामदायक भ्रम को तोड़ सकती है।

यह दिखावे का खेल केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं है। राजनीति में जनकल्याण का ढोंग रचा जाता है, लेकिन असल में वहाँ सत्ता और स्वार्थ का खेल चलता है। नेताओं की चमकदार मुस्कान और बड़े-बड़े वादों के पीछे छिपा होता है एक ऐसा गणित, जो आम इंसान को केवल आँकड़ों में बदल देता है। शिक्षा के क्षेत्र में स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल बोर्ड की चमक दिखाई देती है, लेकिन ज्ञान का असल उजाला कहीं खो गया है। धर्म के नाम पर भव्य मंदिर, मस्जिद, और गुरुद्वारे बन रहे हैं, लेकिन करुणा, सहिष्णुता, और मानवता जैसे मूल्य कहीं गुम हो गए हैं। बाजार में जो प्रोडक्ट बिकता है, वह उसकी गुणवत्ता से नहीं, बल्कि उसकी पैकेजिंग से बिकता है। यह सब उस क्रूर सच्चाई का हिस्सा है, जो कहती है — जो दिखता है, वही बिकता है।

इस चमक-दमक के बीच सबसे ज्यादा नुकसान उस आम इंसान का हुआ है, जो सच्चाई को जीता है। वह अपनी ईमानदारी में डटा रहता है, लेकिन दिखावे की इस दुनिया में गुमनाम हो जाता है। वह मेहनत करता है, सच बोलता है, लेकिन बाजार में उसकी कोई कीमत नहीं। दूसरी तरफ, जो छल करता है, जो झूठ को चमकदार आवरण में पेश करता है, वही वाहवाही लट लेता है। यह विडंबना क्यों? क्योंकि हमारा समाज अब सत्य की आवाज को सुनना भूल गया है। हम उस शोर में खो गए हैं, जो नकली चमक पैदा करता है। यह चमक हमें पल भर के लिए अंधा कर देती है, लेकिन जब आँखें खुलती हैं, तो सामने केवल खालीपन होता है।

समाज की आलोचना नहीं, बल्कि एक आत्ममंथन की पुकार है। हम सब इस नकली दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं — कभी अपनी मर्जी से, तो कभी मजबूरी में। हमने सिख लिया है कि दिखावे में ही ताकत है, और सच्चाई को सजाने की जरूरत है। लेकिन क्या हम यह भूल नहीं गए कि सच्चाई का असल मूल्य उसकी सादगी में है? एक माँ की ममता, एक दोस्त की खामोश मदद, एक अजनबी की सहानुभूति - ये सब सच्चाई की ऐसी मिसालें हैं, जो दिखती नहीं, लेकिन होती हैं। ये वो धड़कनें हैं, जो जीवन को जीवंत रखती हैं। फिर भी, हम इन अनकही कहानियों को नजरअंदाज कर उस चमक के पीछे भागते हैं, जो पल भर की होती है।

हमें यह सीखना होगा कि सतह के नीचे उतरकर देखें। हर मुस्कुराहट के पीछे एक कहानी होती है, हर तस्वीर के पीछे एक अनकहा सच। हमें आँखों से नहीं, दिल से देखना होगा। हमें यह समझना होगा कि सच्चाई को सफाई देने की जरूरत नहीं; उसे जीने की जरूरत है। समाज को बदलने की शुरुआत बाहर नहीं, हमारे भीतर से होगी। जब हम अपने बच्चों को सिखाएँगे कि ईमानदारी दिखाने की चीज नहीं, जीने की चीज है; जब हम खुद को याद दिलाएँगे कि सत्य की चमक दिखावे से कहीं ज्यादा कीमती है, तभी एक नई सोच का जन्म होगा।

जीवन एक किताब की तरह है। उसका कवर भले ही आकर्षक हो, लेकिन असल कहानी उसके पन्नों में छिपी होती है। हमें उन पन्नों को पढ़ना सीखना होगा। अगली बार जब कोई चमकता चेहरा, कोई परफेक्ट जिंदगी, या कोई आदर्श स्थिति दिखे, तो रुककर सोचें - इसके पीछे क्या है? शायद एक टूटा हुआ दिल, शायद एक अनसुना दर्द, या शायद एक ऐसी सच्चाई, जो चमक के पीछे छिपी हो। जब हम इस सच्चाई को पहचानना सीख लेंगे, तभी हम वाकई में “देख” सकेंगे। और यही वह क्षण होगा, जब हम दिखावे की दुनिया से निकलकर सच्चाई की धड़कन को महसूस करेंगे। 

यह यात्रा आसान नहीं है। सच्चाई को अपनाने के लिए हिम्मत चाहिए, क्योंकि वह चमकदार नहीं होती। वह न तो इंस्टाग्राम पर लाइक्स बटोरती है, न ही स्टेटस में वाहवाही पाती है। लेकिन यही सच्चाई हमें इंसान बनाती है। यह हमें सिखाती है कि जो होता है, वही असल में मायने रखता है — न कि जो दिखता है। हम उस सच्चाई को जीने का संकल्प लें, जो दिखाई नहीं देती, लेकिन जीवन की असल धड़कन है।


प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)



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