Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दरार के उस पार की रौशनी.....

 

रस्ते भर का दर्द लेकर मदिया शाम को जब घर लौटा. दरवाजा आज भी हमेशा की तरह खुला ही था चराग की दुधिया झलक में नारू चारपाई की कनार पे अटकी हुई सोई पड़ी थी. दिन भर का थका मांदा मदिया काम के औजार और टिफिन रसोई की धोक पे रखके हाथ मुंह धोने चला गया. जब हाथ धो रहा था तब उसे बर्तनों के बजने की आवाज सुनाई दी. उस आवाज को अनसुनी करके पूर्ण निपट वो जब वापस घर की देहलीज पे आया तो नारू घर में कंही नजर नही आ रही थी. मदिया इधर उधर देखकर खाट पर औन्धा थकन से सो गया. रात को बैचेन ठंढ ने मदिया के जिस्म को कैद कर लिया और उसे नीन्द ने अपनी आगोस में ले लिया. रात आंगन में धीरे-धीरे पसरती गई. और आखिर अन्धेर्रे की कोख में डूब गई.....
सुबह जब मदिया की आँख खुली तो खाट पे पड़े हुवे ही देखा कि घर जैसा रात को छोड़ा था वैसा ही पड़ा है मगर नारू कंही नजर नही आ रही थी .....

 

 

 

Pratap Pagal

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