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धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र समीक्षा

 

पुस्तक समीक्षा धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र

रचनाकार प्रभा पारीक

प्रकाशक संजय पब्लिकेशन 1923 संथली का रास्ता चौड़ा रास्ता जयपुर

Prist sankhya 144

मूल्य ₹250

अथ श्री महाभारत कथा

कथा है पुरुषार्थ की ये

स्वार्थ की परमार्थ की

सारथी जिनके बने

श्री कृष्ण भारत भारती

शब्द यथोचित उत्तम

सत्य सार्थक सर्वदा

यदा ही धर्मस्य ..  

महाभारत सीरियल की इस  मंगलाचरण को रेखांकित करते हुए प्रभा जी की इस पुस्तक धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र का स्वागत करते हैं| डॉ श्रीकृष्ण जुगनू जी ने इस बात की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचाया है की सरल बोधगम्य प्रसाद गुण संपन्न भाषा निबंध यह कृति है जो घर घर की शोभा है| जिस प्रकार श्रृंगार की सार्थकता प्रिय की सराहना से निष्फल होती है|

प्रस्तुत पुस्तक को रचनाकार ने दस खंडों में विभाजन कर शीर्षक को सार्थकता दी है, सटीकता दी है, इस बात को स्पष्ट भी कर दिया है कि धर्म वह है जिससे इस जीवन का अभ्युदय हो] भावी जीवन में की निबंधता हो धर्म ही कर्म है और कर्म ही धर्म है| धर्म के माध्यम से कर्तव्य का निर्वाह होता है धर्म में लोक कल्याण है| सुख की प्राप्ति है| इस प्रकार यह युगधर्म जिसमें सत्य मधुर वचन और शरणागत की रक्षा आदि के गुण हों  यही विशेषकर गुणधर्म को परिभाषित करता है| कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि है धर्म क्षेत्र को ही कुरुक्षेत्र का नाम दिया गया है| आज भी हमारे मन में महाभारत चलता है जिस प्रकार संसार में दो पदार्थ हैं जड़ और चेतन हैं | चेतन ही चेतना देता है चेतनाशील  बनाता है चिंतनशील  बनाता है आनंद इसी चेतना अवस्था में है| हमारी संस्कृति,हमारे  धार्मिक ग्रंथ जीवन आदर्शों से भरे हैं | एवं संश्लेषण|त्मक एवं समन्वय आत्मक दृष्टिकोण का पूरा वृतांत है| उसी में “सत्यम शिवम सुंदरम” की गूंज है प्रतिध्वनि है आव्हान  है जो गुंजायमान है इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें इसका परिपाक है जीवन का परिपाक है

साथ ही ज्ञान का परिपाक है इसमें ज्ञान है, धर्म है।  कर्तव्य है और अधिकार भी| एक प्रकार से जिज्ञासु प्रवृत्ति को उजागर करने वाला है ज्ञान को अनुभव भी भक्ति को बताया है इस पुस्तक में प्रसंग है और पात्रों का पूरा वृतांत है इसके परीसंचालन से आंकलन करें तो यह पुस्तक ज्ञानवर्धक है महाभारत का छिपा संदेश है जो कालजई है और प्रासंगिक भी धर्म और अधर्म के बीच जो दरार है उसका अंत सत्य  से ही होगा जो कहा जाएगा सत्यमेव जयते सनातन सत्य कहने के रूप में महाभारत की कथा निरूपित हुई है

 रचनाकार प्रभा जी ने अपने लेखन में गुड अध्ययन किया है जो संदर्भ दिया  है उसमें जो वृतांत है प्रमाणिक है तथ्यों के साथ निरूपण है दस खंडों में समाहित यह   पुस्तक  चरित्र प्रेरक हैं आदर्श की शिखर  पर विद्यमान स्वयं में हस्ताक्षर हैं रचनाकार ने 

कहीं गंभीरता से तन्मयता से अथाह   प्रयास से इस पुस्तक को नये  इतिहास के सोपान पर खड़ा किया है महाभारत प्राचीन भारत का इतिहास है एक राष्ट्रीय महाकाव्य के रूप में धर्म की पूरी व्याख्या करवाता है इस जीवन में हम आप इसी कुरुक्षेत्र के धर्म क्षेत्र में खड़े अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध हैं|

रचनाकार ने आमुख के अंतर्गत एक उल्लेखनीय बात कही है महाभारत हृदयस्पर्शी गद्यकाव्य के रूप में कथा है और वह कथाओं का सागर है जो हजारों वर्षों से यह लेकर हमको जीवन जीने की प्रेरणा देता आ रहा है आज भी उतना ही सत्य हैं हर व्यक्ति के अंतर एक महाभारत चलती रहती है कि किस काम को करें या न करें तो ऐसे ही ठोस निर्णय की निर्णय सत्यमेव जयते को दढ़ता  देता है, प्रगाढ़ता देता है, दिव्यमान करता है, अर्थवान करता है | जहां धर्म है वहां विजय है जहां अधर्म  मैं वहां अंत में पराजय है, यही सनातन सत्य है |

कथा के रुपए महाभारत में निरूपित है इसी उद्देश्य के साथ यह पुस्तक हर पाठक को संदेश देता है जो  दिशा सूचक है अंधेरे में उसकी ओर कदम बढ़ाने में सहायक है प्रस्तुत पुस्तक में जो कथाएं हैं उप कथाएं हैं दृष्टांत हैं प्रकृति चित्रण युद्ध वर्णन जवान चरित्र 

आदि  भारतीय संस्कृति   के सनातन सत्य  के संमगूढ़ता  दर्शाता है   धर्म अर्थ काम मोक्ष एचआर प्रवर प्रकार का मार्गदर्शन करते हैं एक और उल्लेखनीय बात है महाभारत काल में सेना का एक भाग ऐसा होता था जो अग्नि को साक्षी रखकर ऐसी प्रतिज्ञा लेता था कि दुश्मन कितना भी बलवान हो आज उसका वध  करें बिना वापसी नहीं करेंगे, इस प्रकार के सशप्तक   कौरव सेना में थे जिन को कहा गया था कि अर्जुन को युद्ध भूमि में से दूर ले जाना जिससे द्रोणाचार्य युधिष्ठिर  को पकड़ सके इसीलिए सशप्तकों  ने अर्जुन के साथ लड़ने का प्रण किया पर अर्जुन के युद्ध ने अधर्म का नाश करने के हित गांडीव बाण चलाने को कहा थाA इसी प्रकार धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र के रूप में विजय  हुआ| मैं पूरे विश्वाश पूर्वक कह सकती हूँ इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए | 

समीक्षक सुषमा शर्मा  जयपुर 



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