Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे पिता मेरे मित्र थे

 
मैंने अक्सर सुनता हूँ कि बेटे अपने पिता से कम बात करते हैं. मगर बेटियाँ हमेशा पिता से संवाद कर सकती है. कभी कभी पिता के प्रति बच्चों की शिकायतें भी होती है मगर पिता परिवार का वो स्तंभ है जिसके आधार पर परिवार और समाज का संतुलन बना रहता है. 
कुछ दिन पहले एक मित्र ने मुझे कहा था कि वो अपने पिता से नाराज़ है. यह लिखने का मन भी इसलिए हुआ. पिता अपने कड़क स्वभाव से परिवार का अनुशासन संभालता है. मगर पिता का कोई पर्याय नहीं होता. 
मैंने देखा कि 'फादर्स डे' पर उस मित्र ने अपने पिता पर बहुत अच्छी पोस्ट लगाई. पढ़कर मैं प्रसन्न हो गया. मैंने उस मित्र को सिर्फ इतना ही कहा था, कुछ भी, कैसी भी परिस्थिति हो, उनका स्वभाव भी तेज़तर्रार हो मगर वोही 'पिता' है.  उनके आगे कोई नहीं. 
शायद मेरे उस दोस्त के दिल तक मेरी बात, मेरे हृदय के भाव पहुँच गए होंगे. उनकी टाइमलाइन पर जब मैंने पिता के बारे में देखा, पढ़ा तो मुझे बहुत सुकून मिला.  
मैं अब भी उस दोस्त को कहूँगा - "यार ! तुम्हारे पिता है. इसलिए उनकी मौजूदगी तक तुम रूठ सकते हो मगर ... सबकुछ भूलकर एक बार उन्हें गले लगा लो... !  मेरे पिता मेरे मित्र थे. आज वो नहीं है तो मुझे उनकी गैरमौजूदगी का जो अहसास है वो तुम्हें न हों... प्लीज़ मेरी बात मान लो."  
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पंकज त्रिवेदी
18 June 2018

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