Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कैसे सूखने लगी है चमड़ी

 


कैसे सूखने लगी है चमड़ी  ये मेरे जिस्म की 
नभ में हो रही घटना कोई जैसे तिलिस्म की 
समन्दर में गोता लगाता रहा मैं जिंदगीभर 
गीली रेत ने भी बदली करवटें यूं कंकाल सी 
दियासलाई की तरह जल जाऊंगा मैं देखना 
मोमबती नहीं मैं जो मैंने पतंगों की जान ली
मंदिर की घंटियाँ अब शोर करने लगी है यहाँ 
हर द्वार से नस नसमें फ़ैली है सुगंध रुबाई की
रेगिस्तान तड़पता रहा हमेशा मेरे दीदार पर
तुम कमसीन भी  रेगिस्तान ओढ़कर जल गयी 
कण कण में मेरा बिखरना तय था मुझे ख़बर थी  
तुम ऐसे बिखरकर लिपटी जैसे मिट्टी जिस्म की 
- पंकज त्रिवेदी


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