Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्ते की ताजगी न रही............................तुममें वो सादगी न रही,

 


रिश्ते की ताजगी,
न रही,
तुममें वो सादगी,
न रही,
कहती हो प्यार,
मुझसे है,
पर
ये बातें सच्ची न लगी,
तुम कहती थी,
तो
मैं सुनता था,
तुम रूठती थी,
तो
मै मनाता था,
तुम चिढ़ती थी,
तो
मैं चिढ़ाता था,
तुम जीतती थी,
तो
मैं हार जाता था,
ये सब अच्छा लगता था,
मुझे
वक्त ने करवट ली,
मैं भी हूँ,
तुम भी हो,
साथ ही साथ हैंं,
पर
वो प्यार न रहा,
वो बातें न रही,
तुम कहती हो कि-
मैं बदल गया,
शायद हां- मैं ही बदल गया।
क्योंकि
तुम्हारा जीतना,
तुम्हारा हसना,
तुम्हारा मुस्कुराना,
अच्छा लगता है अब भी,
चाहे मुझे हारना ही क्यों न पड़े ।। 

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