ख़्वाब – एक सवाल? या जवाबों का बवाल? किसी के लिए आज़ादी, तो किसी के लिए जुनून, किसी की मनमानी, तो किसी का सुकून। कोई वास्तविकता भुलाने के लिए ख़्वाबों में जीता है, कोई वास्तविकता को और हसीन बनाने के लिए ख़्वाबों को जीता है। आख़िर क्या हैं ख़्वाब? क्या है कोई इसका जवाब? एक सिलसिले की शुरुआत हैं ख़्वाब, एक नई प्रभात हैं ख़्वाब। कभी उलझे हुए सवालों की धुंध में रोशनी की एक किरण, तो कभी मंज़िल के करीब ले जाने वाली अनकही लगन। कुछ कर पाने की चाहत हैं ख़्वाब, जो कर न पाए, उन यादों को फिर से जीने की राहत हैं ख़्वाब। पल भर के ख़्वाब से ख़्वाबों के पल बनाने में, कितने ही पल बीत जाते हैं, पर इसके पश्चात भी, ख़्वाब कहाँ शांति पाते हैं? ख़्वाबों में जीने से लेकर, ख़्वाबों को जीने तक का सफर— यूँ तो इसे तय करने में ज़माने बीत जाते हैं, पर इस नए समय को जी पाने की रौनक, ख़्वाब ही बतला पाते हैं। मनुष्य की चंचलता हैं ख़्वाब, मस्तिष्क की गति हैं ख़्वाब। किसी का मिलना, तो किसी में खो जाना हैं ख़्वाब। कभी आँखों में पलते हैं, कभी पलकों पे ठहर जाते हैं, कभी मुक़द्दर बनते हैं, तो कभी मुक़द्दर से बिखर जाते हैं। कभी बेख़ौफ़ हौसलों का आगाज़ हैं ख़्वाब, तो कभी टूटकर भी उम्मीदों की आवाज़ हैं ख़्वाब। किसी के लिए हकीकत से परे, तो किसी के लिए हकीकत की जड़ें। कोई इनमें खो जाता है, तो कोई खोकर लौट आता है। कोई सोकर देखता है, और इन्हें आँखों में समा लेता है, तो कोई उन्हीं आँखों को खोलकर, इन्हें जीवन में सजा देता है। ख़्वाब—कभी सवाल, कभी जवाबों का भंडार। कभी दुनिया से परे, तो कभी दुनिया का सार। - मेधावी महेंद्र |
LEAVE A REPLY