ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग में दिखी भारत की नारीशक्ति और विविधता की झलकआपरेशन सिंदूर में सरकार ने नारी शक्ति का जमकर किया महिमा मण्डन . . ., एक साथ बहुत सारे संदेश देने में सफल रही भारत सरकार . . .(लिमटी खरे)22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव किसी से छिपा नहीं था। इसी बीच विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ऑपरेशन सिंदूर पर अपनी प्रभावशाली मीडिया ब्रीफिंग के बाद नारीशक्ति का नया प्रतीक बनकर उभरीं हैं। यह ब्रीफिंग जहां व्योमिका सिंह के लिए प्रेस का सामना करने के लिए उनका पहला अनुभव था, वहीं कर्नल सोफिया कुरैशी पहले को मीडिया से रूबरू होने के अनेक अवसर मिले और वे पहले से ही मीडिया की जानी-पहचानी शख्सियतों में शामिल हैं।कर्नल सोफिया कुरैशी 2016 में तब सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनीं थीं, उस समय उनके द्वारा पहली महिलिा अधिकारी बनकर इतिहास रच दिया था। इसके बाद उन्हें वी द वूमेन जैसे राष्ट्रीय टेलीविजन शो में भी सम्मानित किया गया, जो महिलाओं की उपलब्धियों का उत्सव है। इस शो में उन्होंने अपने सैन्य परंपरा से जुड़े परिवार के गौरवशाली इतिहास को साझा किया।उन्होंने बताया कि उनकी परदादी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में योद्धा थीं। उनके दादा और पिता ने भी भारतीय सेना में सेवा दी। आज वे स्वयं और उनके पति मेजर ताजुद्दीन कुरैशी दोनों सेना में अधिकारी हैं, और अगली पीढ़ी में उनका बेटा भारतीय वायुसेना में शामिल होने की इच्छा रखता है। हाल ही में उनके टीवी साक्षात्कार की एक क्लिप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खूब वायरल हो रही है।इस प्रेस ब्रीफिंग के दौरान मंच पर मौजूद दो महिला सैन्य अधिकारीकृएक मुस्लिम और दूसरी हिंदू, सिर्फ सैन्य नेतृत्व की प्रतीक ही नहीं रहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता की सजीव मिसाल भी बनीं। उनके साथ उपस्थित विदेश सचिव विक्रम मिसरी, जो एक कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्लुक रखते हैं, इस विचार को और भी गहराई देते हैं। उनका परिवार 1990 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के चलते कश्मीर घाटी से पलायन करने को विवश हुआ था।यह पूरी ब्रीफिंग एक ओर विविधता में एकता की भावना का जीवंत उदाहरण बनी वरन इसका एक संदेश भी गया जो बहुत ताकतवर और सराहनीय माना गया। इसने न केवल पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को, बल्कि उन दक्षिणपंथी ट्रोल्स को भी एक सशक्त संदेश दिया, जो 22 अप्रैल को हुए पहलगाम नरसंहार के बाद सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक विष घोलने की कोशिश कर रहे हैं।देखा जाए तो इस पूरी प्रेस ब्रीफिंग में सरकार के द्वारा जाने अनजाने जिन भी दृष्टिकोणों को उकेरने का प्रयास किया गया है वह तारीफेकाबिल ही माना जा सकता है। इसे देखने के बाद लोगों के मानस पटल पर एक बात ‘ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग में दिखी भारत की नारीशक्ति और विविधता की झलक‘, उभरी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए . . .वहीं, 10 मई को दुनिया के चौधरी के द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा करना भी हास्यास्पद ही लग रहा है। इससे शायद यही संदेश जा रहा है कि दोनों देश आपस में युद्ध विराम करने हेतु बातचीत के बजाए किसी तीसरे पक्ष की तलाश में थे। हालात देखकर यही प्रतीत हो रहा है कि कम से कम भारत को युद्ध विराम के लिए अमेरिका की गुहार कतई नहीं लगाने की स्थिति में है।(साई फीचर्स)
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