Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुजरिम कौन

 

मुजरिम कौन !  ( कथा गृह सहायिका की)अब और तब 

  7।  6।  2020 

‘मैंम जी ,रख लो न , चार महीने गाँव में रह कर आई ,कोई काम नहीं है,घर का भाड़ा ,रोटी पानी सब मुश्किल में ।“

 “ लेकिन अभी तो सोसाईटी वाले माना कर रहे हैं ,कोई भी बाहर से नहीं आएगा “। 

10 । 7। 2020 

“ गार्ड अंकल ने भेजा है । किसी को रख लिया क्या आंटी ?  आप तो मुझे जानते ही हो ,पहले भी एक  साल आप के घर में  किया था काम ।मंजू नाम है मेरा ।आंटी, मैं सब काम कर दूँगी ,रेट जो भी मुनासिव समझना दे देना । पैसे का क्या है आदमी से बढ़ कर पैसा थोड़े है ।  “ ओ वही मंजू ,जो मात्र दो हजार  रुपए एडवांस लेकर कम छोड़ गई थी । याद आ गया ,वह भी 2005 की ही बात थी । चुप रही ,किसी का दिल दुखाना मैं अच्छा नहीं मानती ।  

“ गेट पर नंबर लिखवा देना सोच कर बताएँगे “। 

   16   8 2020 

 “ अरे आंटी आप कहाँ चले गए थे ,कई बार मैं आई थी । “ ये दरवाजा खोलते ही अंदर घुस गई थी ,किसी परमिशन की जरूरत नहीं । “ कैसी हो मालती ? चल आ जा ,तीन साल के बाद आ रही हो ।“ “ हाँ आंटी लॉक डाउन में यही फंस गई थी । गुरुद्वारे वालों ने लंगर बांटे ,कैसे कैसे कर के तीन महीने गुजरे हैं ।‘ 

  सोचती हूँ ,अचानक ये क्या हो गया समाज में ,देश में । हमारे जीवन काल में ही अर्थ शास्त्र इतनी तेजी से बादल गया । यही काम काज वाले ,कितने दुर्लभ हुआ कराते थे उन दिनों ,तब इन्हें देखकर गुस्सा था ,अब  इनकी बातों से हृदय द्रवित हो जाता है । इतिहास आँखों के सामने खड़ा हो जाता है । 


12। 3। 2003।

“रीता ,,जरा ये पैकेट सामने वाली आंटी को दे   दोगी  घर जाने वक्त ।“

मैंने कुछ झिझकते हुए अपनी काम वाली बाई से कहा था । “ मेरे को टैम नहीं है ,,ई घर से फेर उ घर जाएगा  ।“ उसने बड़े निर्विकार भाव से,  सिंक से बर्तन निकालते हुए कहा । 

“देखो! डीओ मिनट लगेगा,,यह सब  काम तुम लोगों से एन करवाएंगे तो क्या दूसरों  की आया से करवाएँ”? मैंने कुछ  ऊंची  आवाज में कहा था। उसने चुप चाप बर्तन मांजे,काम  ख़त्म किया और चली गई । 

   एमईआरई दिमाग में  न  जाने  कब के छुपे  बम फूटने   लगे थे । दिल्ली शहर में आकर    इन  काम वालियों वालों को क्या हो   जाता है? क्यों ये इतने हृदयविहीन हो जाते हैं?इनकी  आँखों की पानी  कहां चली जेएएटीआई हैं?अभी इस भयंकर  ठंढ में उसके रोमहर्षक रात की बात सुन  सुन कर ,बिछाने के लिए कंबल दिए ,रजाईया दी ,पुराने गर्म कपड़े शौल दिए ,और देती ही रहती हूँ ,चाहे आया एक दिन पुरानी ही क्यों न हो । कोई दानी नहीं हूँ ,अपना स्वार्थ है ,छोड़ कर न जाए । “आओ पहले चाय पी लो ,नाश्ता कर लो ,”, चुपचाप वह खा  भी लेती है ,मगर जब भी कोई काम बोला “मेरे को टैम नहीं है । उसका पंच वाक्य ,मेरा दृदय बेध कर रख देता है । 

13। 2। 03

‘साबून दो ‘ रीता ज़ोर से बोलती है । “ये साबून दानी में जो साबून है ,पहले उसे धोकर साफ कर ले “ मेरे वाक्य समाप्त करने से पहले ही वह चिल्ला पड़ती है ‘इत्ती सी साबून से मैं बर्तन नहीं धोएगा “। “चिल्ला मत ,धीरे से बात करो ,तुझे तमीज नहीं” मेरेय भी सिर घूम जाता है । “ जब काम पकड़ने आती है ,ये भी करेगा ओ भी करेगा कोई प्रोब्लम नहीं ,और जहां दो से तीन दिन सप्ताह हुए प्रोब्लम ही प्रोब्लम । ,इतनी शेख़ी ? “

उसका मुंह बुरी तरह लटक गया था । जाते समय बोलती गई थी ‘तेरह तारीख तक का हिसाब कर देना “। 

6। 10 .02 

हल्का सा घूँघट निकले   दरवाजे पर खड़ी थी । ‘दरबान ने काम के लिए भेजा है ,मै मीना” ,,कोई विकल्प नहीं ,मोल भाव का समय नहीं ,सीधे अंदर । चाय नाश्ता पकड़ते हुए मुसकुराई “ मैं सब ठीक से करती हूँ चिंता मत करो । मुझे जो एक बार रखता है जल्दी निकलता ही नहीं । पचपन नंबर में पाँच साल से  रह रही हूँ ,तैतालीस  में तीन साल ,,”   “बस बस ,मैं उसके स्वयम सिद्ध प्रमाण पत्र को निरस्त करते  हुए बोल पड़ती हूँ ,  “ अभी तो मैं सिर्फ कपड़े धुलवा ती हूँ ,मेरे पास तो है ही दूसरी “। 

  उसने बड़े अच्छे से कपड़े धोए ,”मशीन में बहुत टैम लगता है ,पानी भी ईधर कम ही रहता है ,हाथ से ही सब धुवाते हैं “ उसका प्रलाप जारी था । “चलो ।हंसमुख है ,बोलने भूकने वाली ठीक है “ मन में पुराने कटु प्रसंगों के दंश उभर आए थे । 

         7। 10.02 

 “कोमला   यहाँ पोछा   मार दे ,देख ,वो चूल (बाल) कूड़ा रह गया “। धीरे से हल्की आवाज में मैंने कहा । गेहुअन साँप की तरह फूंफकारती  कोमला तड़ाक से पोछा पटकती है ,” कहाँ है चूल? उसके बाड़ी में तो नहीं रहता है । “ अपने होठों और नथुनों को विभिन्न मुद्राओं में सिकोड़ती हुई ,पोछा बाल्टी बाहर बालकनी में फेंक दिया “ नौ बज गए जाता हूँ “। मीना देख रही है । 

“ रोज रोज बोलना पड़ता है । एक तो भाषा नहीं समझती ,ऊपर से इतनी गुस्सैल ,अभी पंद्रह दिन ही तो हुआ है लगे “। “ हा इन साड़ी वालियों की वजह से हमलोगों को भी कम काम मिलता है “। 

     कल के गुस्सा में ,कोमला ने आज फिर ईधर  मारा झाड़ू ,उधर मारा पोछा ,।यहाँ गीला वहाँ सूखा ।  ‘क्या कर रही है कोमला ? चारों तरफ कूड़े   पोछा भी ठीक से नहीं ,शाम को तेज आँधी आई थी । “   ‘उसके बाड़ी में जाना है ठीक नौ बजे ।“ आनन फानन में काम निबटा कर किसी वीरांगनी के विजयी भाव से निकल गई । “ ओह क्या करूँ मिनिमम सफाई से भी घर वंचित । पड़ोसिन आँखें गड़ाई रहती है । इनके घर तो काम वाली टिकती ही नहीं ,जबकि है उलटा । मेरे आया को वह अपने यहाँ रख लेती है ,और परेशान करने लगती है उसे ‘ जल्दी आओ जल्दी आओ “। 

   अगले दिन भी वही ताबड़ तोड़ ‘ कोमला क्या कर रही है ? ‘ साढ़े चार फूट की अत्यंत कृशकाय ,गोल चेहरे वाली साफ रंग की ,लाल पाढ़ वाली  साड़ी पहने गोल लाल बिंदी माथे पर ,देखने में भोली भाली दिखती है ,मगर जब क्रोध में फुफकारने लगती है तो एकदम चंडी अवतार । ‘ उसने झाड़ू पटका ,’रोज पिच्छु पिछू,रोज किच किच,,ए काम नहीं करेगा ।“ बाहर का दरवाजा हिलता रह गया ,वह पीछे मूड कर भी नहीं देखी थी । महीना के शुरू में ही उसने एडवांस कुछ ले लिए थे ।

17 .3 । 03 

  कॉल बेल बजता है, दरवाजे खोलती हूँ  सुप्रिया ,उम्र करीब पंद्रह सोलह वर्ष ,कोमल, बालिका वधू सी ,आँखों में मोटी मोटी काजल लगाए  ,’दरबान ने भेजा है आंटी काम के लिए ।“

‘ कितने घर काम करती हो ? “ 

‘एक नीचे बस .”

“ कितने दिन हुए शादी के ?’

 “चौथा महिना है ।“

“ ठीक है आ जाओ कल से देखती हूँ कैसा काम करती है ? “

 दूसरे दिन ,समय पर हाजिर । ‘ये डोरमेट कितना भारी है । “ मैं आवक ! पतले पतले डोरमेट को भारी बोलती है । यह आगे काम क्या करेगी ? 

 बरतन साफ कर झाड़ू उठाई और खिड़की का पर्दा हटा कर नीचे सड़क पर झांक रही है । दो चार झाड़ू मार करव्याकुल हिरणी की तरह , फिर वहीं खड़ी झाँकने लगती है । “नीचे तुम्हारा पति खड़ा है क्या ?’

  “हाँ “ वह चुपचाप झाड़ू लगाने लगती है । मैं वहीं डायनिंग टेबल पर अपना लेखन सामाग्री रखते लिखने की मुद्रा में आ रही हूँ । कितना लिखना है मुझे ,मेरी पुस्तक बस प्रकाशक के पास जाने ही वाली है । मगर उफ ये काम वालियाँ। कितनी बार मुझे कई संगोष्ठीऔर सेमिनार छोड़ने पड़े हैं । पूर्णकालिक सहायक , जब से भाग गया मेरी लेखनी कितनी मजबूर हो गई है । 

  इसका आदमी कुछ नहीं करता ।दो घर काम करवा कर पत्नी को साइकिल पर बैठा कर रंगपुरी की पहाड़ियों में घुमाता है ।

 “मेरी  तबीयत आज ठीक नहीं थी ।सवेरे उठने का मन नहीं करता था “ वह बोलती है  “क्या हुआ ? 

वह चुप् ।

‘बुखार है क्या ? ‘मै मानवता के नाते बोलती हूँ । 

“हाथ में ,माथा में दरद है “। 

शाम को लापता । 

दूसरे दिन सवेरे आई । चेहरा कुम्हलाया ।
 “सिर दुखता है आज काम नहीं होगा ।“

तीन दिन बाद आई । कुछ नहीं बोली । शाम को फिर नदारत बादल घिरे  आकाश ,, तेज तेज बहती हवाएँ । तभी एक साइकिल आकर रुकी । पीछे स्टैंड पर बैठी सुप्रिया धीरे से उतरती है । कुछ देर पति की आँखों में देखती है । फ्लैट में आते ही कहती है ‘पता है आज लेट क्यों हुआ ? इन्होने घड़ी स्लो कर दिया था । फिर मैंने दूसरे की घड़ी में देखा । चार बज गए ,डाटते हुए मैंने कहा आज डांट पड़ी न तो तुझे दिखाती हूँ “। 

  मुझे इसकी उमंग भरी प्रेम मयी बातों को सुनने की हिम्मत नहीं । काम करे जाए । मुझे फुर्सत से जीने दे । 

‘ आंटी मेरा आदमी मना करता है काम करने के लिए । मेरा हिसाब कर दो “ 

21। 4। 03 

“ पूर्णिमा नाम है मेरा । पीछे वाली फ्लैट में माथुर जैन के यहाँ  काम करती हूँ “। मोती ,नाटी ,शक्ल सूरत ठीक ठाक,पैसा पिछली वाली से दुगुना । ‘दीदी रेट बढ़ गया है ,किसी से भी पूछ लो “। 

पहला दिन , शाम सात बजे आगमन हुआ । दूसरा ,तीसरा ,जारी रहा वही रवैया ।   “इतने देर से आओगी तो रात का डिनर कैसे बनेगा ?  चार बजे तक आ जाओ ।“

“एक घर के लिए तो मैं चार बजे नहीं आ सकती ,शाम को कोई नहीं कराता है ।‘ 

“सुन ! पास वाले ब्लॉक में मर्डर हो गया है ,लोग कहते हैं ,कामवाली ने ही किया है “। 

“दीदी!मैं विश्वास नहीं कर सकती कि काम वाली मडर करवा देगी । ।“ 

“छोड़ ये बात ,मैं जो कह रही थी कि एशोसिएशन वालों ने कहा है कि काम वलियों का फोटो कार्ड  जल्दी बना कर देना होगा ,वरना इंट्री बंद हो जाएगी “। 


तीसरे ,चौथे ,पांचवे दिन  मैं लगातार पूछती रही ,तो छठे दिन वो चिल्ला पड़ी ,” मैं नहीं बनवाती कार्ड । मैं आपका मडर  करती हूँ क्या? ‘[ 

‘मेरा मडर करेगी तो करने से पहले मैं ही दीवार  से पटक कर तुम्हारा सिर तोड़ दूँगी । मुझे इतना कमजोर मत समझना । अभी दरवान को बुलाती हूँ सीधे पुलिस के हवाले कर देगा “। 

मेरा पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया था । 

 खैर ! भगवान का लाख लाख शुक्र ,उसने सब काम अच्छे से निबटाया ,और चुपचाप चली गई । 

दूसरे दिन एक  पुराना कार्ड लाकर थमा दिया । “ यह तो एक साल पुराना है ,अब नहीं चलेगा “।कुछ चिंतित सी हो मुंडी मात्र हिला कर , एकदम शांत वह काम करने लगी थी । 

 इधर तेजी से मैं दूसरी की तलाश कर रही थी । जैसे ही नई आई ,मैंने पूर्णिमा को कुछ ज्यादा पैसे देकर,बड़े प्यार से ,समझा बुझा कर विदा कर दिया था ।

      सोचती हूँ क्या , कार्ल मार्क्स फिर से अब प्रासंगिक हो उठा है । 

           डा०  कामिनी कामायनी ।    







      2। 6 ।  0 3

   टॉप फ्लोर पर रहने वाले मिस्टर कोहली के घर में फूल टाईम आया है ,जिसकी सूरत तो मैंने नहीं देखि पर उसके साथ याराना व्यवहार से महल्ले वाले वाकिफ़ हैं । 

  सुबह दोपहर शाम कभी भी किचन से आवाज फूट पड़ती है “ प्याज काटने नहीं आता है ये मोटा मोटा प्याज आदमी खाएगा की जानवर / रोटी भी सेंकने नहीं आती जला दी । भद्दी सी गाली । 

हिन्दी नहीं समझता और दरबान आया है ,पानी मांगता है तो सब समझा जाता है “चिल्लाते चिल्लाते,  मिस्टर कोहली का बीपी अक्सर बढ़ जाता है । वैसे यह पॉश एरिया है ,यहाँ अपने पड़ोसियों की परवाह ही कौन करता है । 

‘ जा कहीं और जाके मार ,,,अरे कोई दावा दो इसको ,आते आते इतना खाया कि तबीयत खराब कर ली ।“   

‘हॅलो दास साहब से बात कराओ हांजी  बड़ी मेहरबानी होगी दूसरी भेज दो “ कोहली साहब गिड़गिड़ा रहे थे । मगर गरजे फिर   “ आफिस आफिस ,कहाँ कोई आया लेने आफिस से ? हट तू सामने से ,, जिंदा गाड़ दूंगा ,,,बालकनी से नीचे फेंक दूंगा समझी ? मुझे तू जानती नहीं है । “


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