Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महाशिवरात्रि

 
महाशिवरात्रि पर एक रचना - 

कालकूट को पीकर जिसने रक्षा की त्रिभुवन की, 
लाज बचाई देवों की व इंद्र के सिंहासन की। 
पल में कामदेव पर होकर कुपित भस्म कर डाला, 
औघड़ वेश रचा, डेरा कैलाश शिखर पर डाला। 

जिनके जटाजूट में माँ गंगा क्रीड़ा करती है, 
सर्प गले में लटकाये छवि जिनकी मन हरती है। 
मस्तक पर तीसरा नेत्र है शोभा पाता जिनके, 
और दाहिने कर में है त्रिशूल लहराता जिनके। 

वृषभ सवारी है जिनकी चंद्रमा सोहता सिर पर, 
करते हैं विस्मय-विमुग्ध जो तांडव नृत्य रचाकर। 
भाँग, धतूरा, बिल्वपत्र पाकर प्रसन्न हो जाते, 
जो पदार्थ सबको अप्रिय हों वही इन्हें मन भाते। 

भूत प्रेत बैताल चाकरी करते रहते जिनकी, 
जिनमें क्षमता है जगती के हर दुख दोष हरण की। 
जिनके डमरू से माहेश्वर सूत्र निकल कर आए, 
कर लिपिबद्ध जिन्हें पाणिनि व्याकरण जनक कहलाए। 

जो अखंड सौभाग्य दायिनी जग में कहलाती हैं, 
वाम भाग में इनके वही उमा शोभा पाती हैं। 
आशुतोष वह अवढर दानी हों प्रसन्न हम सब पर, 
हरें विघ्न बाधाएँ सारी वह कृपालु जगदीश्वर। ''

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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