जब छाता तिमिर घन
मेरीसुधि में तुल, मेरी प्यास में घुल
तुमहर क्षण रहतेहो पास मेरे
फ़िर , यह दुनियापूछती क्यों मुझसे
अरिओ ! आदर्शों का नव दर्पण
तेरीसाँझ सी जीवन के काया वन में
घिरता जबविषाद का तिमिरघन
तबकौनहै वह तेरामनभावन
जोतेरे भावों काआकार ग्रहण कर
अकम्पित आलोक से खड़ा रहता साथ तेरे
तेरेबेसुध प्राणको अपने स्निग्ध
करों से, सीने से लगाकर, साथ सुलाता
अपनी साँसों के समीर से, जग से भरकर
धीर गंध,तेरी साँसों में भरता और कहता
कितना सुरभित है जीवन-मृत्यु का तीर रे
किसेयादकर तू , अपने हृदय के
सूनेआँगन में तड़िल्ला सी खिल पड़ती
और जाते ही दूर,उसकी स्मृति की छाया से
तू साँझकमलसी मुरझ जाती
अरिओ नींद विजयिनी ! सच बतला
जिसपीड़ा को तू अपनेअश्रुजल से
सींचतीरही, वह तेरा कौनलगता री
कौनहै वह जो तुझको अपना हृदय-बंदी
बनाकर, अपने विजय-ध्वज से बांध गया
किसकेलिये तेरा तपित प्राण, अंगारों का
मधुरस पीकर,केसर किरणों सा झूमता रहता
किसमिलन कीआस लिये तू माँग
नींदसे, अनंत वर, सोने जारही है री
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