Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इक तू नहीं साथ, गम सारा

 

इक  तू  नहीं  साथ, गम  सारा  मेरे साथ है

आज  फ़िर  वही  दिन ,वही  जुल्मते-रात1 है


मौत  रहती  है  , जिंदगी  पर  घात  लगाये

हौसला,    मुस्ते-खाक2  का बेबुनियाद  है


नजर  बंद  कर  देखतीहूँ जब तमशाये-दिल

दीखता ,  रूह3    से कालिब4   आज़ाद है


दो  दिनकी  सैर  में  तमाम हो जायेगा यह 

गुलिस्तां,वक्त से कैसी शिकायत,कैसा फ़साद है


मैं  तो बस इतना जानती, बागे-आलम5 का जो

महबूब है, मैं उसका शागिर्द, वह मेरा उस्ताद है



1. खौफ़ना्क रात 2. मुट्ठी भर राख 3. आत्मा 

4 .साँच  5. संसार

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