Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाँदनी

 

चाँदनी


छोड़कर पार्थिव  भोग  विभूति

सूने  नभ के शतदल पर, नव 

श्वेत  कमल सीबैठी

कौन  है  यह , रति  की  मूर्ति

जो  अपने   सौन्दर्य  शिखा से

जन  भू  के मन में निर्मित कर

रही ,स्वर्ग की शोभा की आकृति


वन- उपवन  में तरु-तृण अपना

भावोद्वेलित  वक्ष खोलकर खड़ा

सोचरहा, किस भाँति  करें 

हमस्वागतउसकी  ,  जो

धरती के पट को,नव क्षितिजों में

विस्तृत  कर  मानव  हृदय  में

प्राणों- सा  कर  रही  प्रतिष्ठित


भू  नभ  ज्योत्सना  वारिधि  में डूब रहा 

दुग्ध  धार  सी, दिव्य  चेतना  का  यह

कौन  स्रोत , किन  शिखरों  से उतर रहा

जिसमें स्नान कर निखिल विश्व का प्राण

आनंदछंद   साहो रहा  तरंगित


पाकर  अंतर  का ,अदृश्य प्रीति परस

जग  जीवन  के  मन  की मूर्च्छा में 

नईचेतना जाग गई

प्राणों के अवचेतन  में भर गई ज्योति

कोमलता,कल्पलता सी बढ़ जन-जन के

पुलकों में होने लगीं  प्रस्फ़ुटित



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