Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाहो तो बना दो, न चाहो तो मिटा दो

 

चाहो  तो  बना दो, न  चाहो तो  मिटा दो

मर्जी  है तुम्हारी  ,तुम  कौनसी  सजा  दो


मगर  दुनिया  में मिलता कहाँ मेह्रो1 मुहब्बत 

का निशां,जो तुमको पता है,तो हमें भी बता दो


तुम अपनी दहकती जवानी को सँभालो कि गैर

जल  न  जाये, जलाना ही है तो हमें जला दो


मेरा क्या,कभी मेहमां था,तुम्हारे दिले महफ़िल

का ,अब  मजारे चराग  हूँ,जब चाहो बुझा दो


मगर  मेरी  किस्मत का इतना बुरा हश्र हुआ 

कैसे, जो तुमको मालूम हो, तो हमें भी बता दो


न दिल में वह बेदर्द रहा,न दर्द,मुहब्ब्त को लगी 

किसकी नज़र, बोलकर न किसी को बद-दुआ दो



1.दया,प्यार


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