Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना

 

आगे आता था इश्के- बेकसी पे रोना

अब उसकी हर बात पे हँसी आती है


आदमी को किस तरह कज़ा1 मालूम हो

वो घूँघट में, गहनों से लदी आती है


बे-एतवारनक्श-ओ-निगारे3 जमाना है, फ़िक्र

जान की सुराग में, आसमां से कूदी आती है


सर्द-मेहरी4 से उसके दिल को लगती है चोट

क्या मुहब्बत की आग इस कदर लगाई जाती है


दिल-ओ-जां दोनों जलकर राख हुए, वस्ल5 की

जब भी बात किया, कसम गैर की दी जाती है


1. मौत 2. झूठा 3. दुनिया की सजावट

4. कठोरता 5. मिलन





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