Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गर न होती तेरी दया मुझ पर

 

गर   न  होती  तेरी     दया  मुझ  पर

तुझे  देख, मेरा आँचल  होता  क्यों तर


तुम  पूछते  हो, मेरे घर  का नाम पता

क्यों  फ़कीरों  के  भी  होते  कोई  घर


न  होती  दबी राख  में अगर  चिनगारी

तो  धुएँ  उठने  की  फ़ैलती  क्यों खबर


पाँचो उँगलियाँ मिलकर बनती एक हथेली

इसमें   न   कोई   बेहतर, न   कमतर


जिंदगी  का बोझ  नातवाँ से  उठता नहीं

वरना  इश्क से  भारी  होता  नहीं पत्थर

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