Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यह कैसा त्योहार

 

यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
लोग घुस आए हैं एक दूजे के घर लेकर तलवार
मजहब के नाम पर हो रहा है मुर्दों का व्यापार
यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
 
पुजारी बैठा हुआ है घात लगाकर मंदिर में
मौलवी सेवइयाँ बाँट रहा है विष के प्याले में
सतश्री अकाल के नारे संग गूँज रही तोप की
आवाजों के संग गली, घर और गुरुद्वारे में
घर बना मुर्दों का कब्रगाह , कफन बेच रहा
दूकानदार मरघट में, यह कैसा संस्कार
यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
 
करगिल ध्वंस हुआ, गोधरा जला, वतन हुआ बेजार
सुहागिनों का सुहाग  उजड़ा, माँ की गोद सूनी हुई
बेटी अनाथ हुई, पिता वतन के खातिर खुद
को कर्म-यग्य की हवन ज्वाला में भस्म कर दिया
खून से लिपटी, अकथ कहानी, कहती है दीवार
यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
 
बेटे का शव पिता के कंधे पर है लदा हुआ
पिता दो कदम चलने से भी लाचार
माँ की आँखों में रोशनी नहीं, कैसे
देखेगी पुत्र का यह अन्तिम संस्कार
यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
 
जो जीवित बचा वह भी मुरझा गया ग्रीष्म की नादानी से
यह कैसी प्यास जो मिटती नहीं नयन की जलधारों से
सभी अपनी-अपनी प्यास बुझाते,एक दूजे के सीने पर कर प्रहार
चतुर्दिक है हाहाकार , यह कैसा हो गया संसार
यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार

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