Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यह जो पेड़ सर उठाये यहाँ खड़ा है

 

यह जो  पेड़  सर  उठाये  यहाँ खड़ा है

इसके  लिए  यह  कितनी लड़ाई लड़ा है


कितनी  ही बार पतझड़ ने इसे ललकारा 

कितनी  ही बार  शिशिर  में यह झड़ा है


गवाही  सूरज- चाँद- सितारे  से ले  लो

इसके मुँह पर तो,जन्मों का ताला पड़ा है


फ़िर भी इसके जीने का हौसला तो देखो

कैसे  पाँव  से जमीं  को जकड़े  खड़ा है


मज़ाल  क्या  कि  कोई  इसे, यहाँ  से

हिला दे, अपनी जगह पहाड़ बन अड़ा है

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