Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यह जग विस्मय से हुआ है निर्मित

 


यह जग विस्मय से हुआ है निर्मित




जब तक तुम सिंधु, विन्ध्य , हिमालय बन मेरे साथ रहे

तब तक भूत ,वर्तमान , भविष्य सभी मेरे साथ रहे

हृदय - उर रखना जो चाहता था कभी धूलिकण में नभ की चाह 

गुनगुनाता था, कहता था सागर संगम में है सुख और

अमरता में है जीवन का हास ,आज वही उर उड़ाता है

मेरा उपहास् कहता है मुझसे, जब प्रिय ने ही उतार लिया

तुम्हारे गले से बाँहों का हार, अब तुम्हारे लिए निगाध के

दिन क्या,सौरभ फैला विपुल धूप क्या, पावस की रात क्या


कहते हैं यह जग विस्मय से हुआ है निर्मित 

लघु-लघु प्राणियों के अश्रु-जल से बनता यह समन्दर 

जिसके ऊँचे -ऊँचे लहरों की फुनगियों पर उठती

गिरती रहती बिना डाँड़ की प्राणी - जीवन तरी

निर्भय विनाश हँसता, सुषमाओं के कण -कण में

जैसे माली सम्मुख उपवन में फूलों की हो लूट मची

अब मैं समझी अंधकार का नील आवरण 

दृश्य जगत से क्यों होता रहा बड़ा, क्योंकि

भय मौन निरीक्षक - सी , सृष्टि रहती चुपचाप खड़ी


यहाँ किसलय दल से युक्त द्रुमाली को

सुर प्रेरित ज्वालाएं आकर जीर्ण पत्र के

शीर्ण वसन पहनातीं, और कहतीं

धू -धूकर जहाँ जल रहा है जीर्ण जगत 

तम भार से टूट -टूटकर पर्वत ने आकारों में

समा रहे, वहाँ अनन्त यौवन कैसे रह सकता

जिसका कि अभी तक कोई, आकार नहीं बना






तिमिर भाल पर चढकर काल कहता , तुम जिसे जीवन

कहते हो, वह केवल स्वप्न और जागृति का मिलन है

यहाँ मध्य निशा की शांति को चीरकर, कोकिला रोती है

खिन्न लतिका को छिन्न करने शिशिर आता है

यहाँ सब की अलग-अलग तरी, कोई किसी को दो कदम 

साथ नहीं देता, इस त्रिलोक में ऐसा दानी कोई नहीं है

जो तुमको जीवन रस पीने देगा, इसलिए आनन्द का

प्रतिध्वनि जो गुंज रहा है, तुम्हारे जीवन दिगंत के

अम्बर में उसको सुनो, विश्व भर में सौरभ भर जाए

ऐसा सुमन खेल खेलो, रोना यहाँ पाप है मत रोओ


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