Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उधार का दूध

 

    गंगाराम , एक तपस्वी की भाँति, एक पेड़ के नीचे थका, शांत , परेशान बैठा हुआ था, पर उसकी शांति में नैराश्य की वेदना भरी हुई थी |सागर के हिचकोले थे, आँखों में उमंगों और आशाओं का भष्म था | वह सोच रहा था — ‘ भूखे रहने के दिन भी मेरे तेवर कम नहीं हुए , शायद कोई अज्ञात ताकत , प्रेरक बनकर , मेरे साथ रहता था | मेरी गरीबी में बुद्धि -शक्ति सदा ही अपनी ओर मुझे झुकाये रखती थी | उसी के आश्रय में मेरा आत्म-विश्वास जगा, जो मैं अपनी दरिद्रता से लड़ सका | अपनी अभावता को कभी भी , अपने प्रेम और समर्पण के स्थान से गिरने नहीं दिया | यह सोचकर कि, निर्धन जीवन के सामने विलासी जीवन तुच्छ है , त्याग और श्रद्धा के सामने , उसकी कोई औकात नहीं है | मानव का जीवन ध्येय केवल और केवल सुख भोग व धन अर्जन का नहीं होना चाहिए | अगर हमारे महापुरुष अपना जीवन, मन प्रतिष्ठा और कृति में बिताये होते , तो आज उन्हें कोई नहीं जानता | उनके आत्म-बलिदान ने ही उन्हें अमर बनाया | प्रतिष्ठा कभी भी धन और विलास पर अवलंबित नहीं रहती ; गंगाराम की चिंताओं की तरह गाँव की छोड़ पर अपार -भयंकर गोमती की लहरें , व्याकुल ,परेशान बह रही थीं | वह अचानक उठा, और गोमती तट पर जा बैठा | आकुल ह्रदय का जल-तरंगों से, बैठते ही प्रेम हो गया |

                तभी पीछे से , बेचैन कर देने वाली उसे एक आवाज सुनाई पड़ी , उसने मुड़कर देखा, तो उसे लगा कि कोई आकृति दरिद्र दृष्टि से उसकी तरफ देखकर , उससे पूछ रही है — बेटा ! तुम यहाँ , इस निर्जनता में बैठकर क्या सोच रहे हो ?

एक क्षण के लिए उसके शारीर का रक्त-प्रवाह रुक गया , वह भयभीत हो काँपने लगा, मगर दूसरे ही पल उसे लगा कि यह आकृति कोई और नहीं , उसकी माँ है |

गंगाराम , दोनों हाथों से पाँव छूने की असफल चेष्टा करते हुए बोला —- माँ, मैं सोच रहा हूँ , रामदेव के दूध का बकाया पैसे चुका दूँ |

माँ , गंभीर भाव से बोली— तो चुका दो न , रोका किसने है ?

गंगाराम रुआंसा हो बोला — मेरी दीनता ने |

माँ ने गर्दन हिलाकर कहा —- हाँ, वो तो है बेटा , पर चुकाना तो होगा ही | तुम एक काम करो, रामदेव से महीने, दो महीने का समय मांग लो और हर रोज कुछ-कुछ जोड़कर पैसे चुकता कर दो |

गंगाराम, दिन भाव से कहा — माँ , उसने कई बार मुझे समय दिया है, अब नहीं देगा, अब तो दुतकार कर भगा देगा |

माँ प्रचंड होकर बोली —जो भी, पर वह मानवता की ह्त्या तो नहीं कर सकता न | एक बार कोशिश कर देखो , मैं अभी के लिए जाती हूँ , फिर मिलूँगी और आकृति विलीन हो गई |

गंगाराम , माँ की बात मानकर , सोचा – कोशिश में हर्ज क्या है , हो सकता है वह मान जाय | गंगाराम , रामदेव के घर की तरफ जा ही रहा था कि देखा — रामदेव, झटकता हुआ उसी की तरफ  बढ़ता आ रहा है |

गंगाराम दौड़ता हुआ उसके पास गया और बोला — रामदेव, साँझ हो आई है, सर्दी बढ़ रही है, ऐसे में तुम कहाँ जा रहे हो ?

रामदेव , क्रोधित हो बोला— तुम्हारी आज्ञा जहाँ-जहाँ जाने की होगी, मुझे वहाँ-वहाँ  जाना ही पड़ेगा | सुना था, इंसान पाक मोहव्वत के लम्हे पर , उम्र भर के लिए मतवाला हो जाता है , मैं पागल भी न होऊँ, तो कैसी दोस्ती ?

गंगाराम रुंधे कंठ से, आत्मीयता के साथ बोला —रामदेव , बस आखरी बार एक मौक़ा दे दो, ज्यादा नहीं एक महीने का | दोस्ती की कसम, इस बार सूद समेत चुकता कर दूँगा |

रामदेव, गंगाराम की बात पर बुरी तरह बौखला उठा और धरती पर थूकते हुए कहा —ये रहा तुम्हारे एक झूठ का पुरस्कार और लात पटकते हुए बोला—-ये दिया एक महीने का समय !

गंगाराम कृतज्ञता भाव से कहा— तुम्हारी बहुत बड़ी कृपा है |

रामदेव , उपेक्षा भाव से कहा — रहने भी दो, यह सब बातुनी बातें हैं | अभी के लिए मैं जाता हूँ , पर एक महीने बाद फिर मिलूँगा |

रामदेव के जाने के बाद, गंगाराम चिंतित, उदास रसोई घर में जाकर बैठ गया और एक-एक कर थाली, हाड़ी, ग्लास सब निकालकर उँगलियों पर उनके दाम जोड़ने लगा | पैसे के पूरे न होते देख , उसने तय किया कि घर बेच दूँगा, क्योंकि इस एक महीने में अपनी मेहनत और किफायत से भी पैसे पूरे होना नामुमकिन है | तभी उस अंधेरेपन में उसे दीपक के समान कोई आकृति रोशनी प्रदान करती हुई पूछी — बेटा गंगाराम ! आखिर तुमने , रामदेव से उधार किसलिए लिये थे, यह तो बताया ही नहीं ?

गंगाराम भर्राई आवाज में कहा—- माँ, कुछ दिन पहले मैं काफी जोरों से बीमार पड़ा था | कमजोरी इतनी थी कि लाठी पकड़कर चलने लगा था | तभी बगल वाले , डॉ. भैयाजी ने मुझे अपने पास बुलाया, कुछ दवाईयाँ दी, और कहा — गंगाराम, तुम कुछ दूध लिया करो, बहुत कमजोर हो | लेकिन माँ मेरे पास पैसे तो थे नहीं , मैं क्या करता ? यह जानकर, कि अपने गाँव के रामदेव के पास दो भैंसें हैं, अच्छा-खासा दूध वह बाजार भेजता है | मैं उसके घर गया , उससे विनती की, कहा — रामदेव , मुझे कुछ दिनों के लिए आधा सेर दूध देने की अगर महरबानी करो, तो मैं बाख जाऊँगा, अन्यथा मेरा मरना तय है | रामदेव , मेरी तरफ देखा , उसे दया आ गई , और इसी शर्त्त पर दूध देने के लिए तैयार हुआ कि मैं समय पर दूध का दाम चुकता कर दूँगा , पर मैं ऐसा नहीं कर पाया | उसके रोज का तगादा मुझे आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रहा है | इसके सिवा मेरे लिए कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं बचा है |

बेटे की बेबशी जानकर माँ ने कहा —बेटा ! मानव जीवन इतिहास का यह प्रत्यक्ष सबूत है कि यहाँ पैसे वाले राजा हैं , और गरीब , नौकर | यहाँ गरीब कितनी बार अपनी आत्महत्या करते हैं , वे खुद भी गिन नहीं पाते | बाबजूद मैं कहूँगी — इंसान को अपना वसूल किसी भी हालत में त्यागना नहीं चाहिए बेटा | बकाया रखकर इस दुनिया से भागना भी एक पाप है | पूर्व जनम में न जाने मैं क्या पाप की थी , जिसका प्रायश्चित तुम आज मेरा बेटा बनकर गरीबी का बोझ उठाये घूम रहे हो |

             माँ की काली परछाहीं को धीरे-धीरे जाती देख, सहसा उसका मन उड़कर माँ के चरणों में जा गिरा और व्यथा में डूबे स्वर में बोला — माँ मुझे बचा लो |  पर थोड़ी दूर जाने के बाद ही परछाहीं लुप्त हो गई | वह विवश लाचार हो , एक वियोगी पक्षी की तरह अपने छोटे से घोंसले में लौट आया और रोते-रोते माँ को वचन दिया, ‘जब तक दूध का दाम चुकता नहीं कर देता , मैं चैन से नहीं बैठूँगा’ |

             मन पर जितना बड़ा आघात होता है , मन की प्रतिक्रया भी उतनी ही बड़ी होती है | दूध का बकाया पैसा, गंगाराम के अंत:स्थल को मथकर रख दिया था | चिंता और बीमारी, गंगाराम को दिन-ब-दिन चिता की ओर लिये जा रहा था | उसमें अब इतनी भी कूबत नहीं बची थी कि कहीं मजदूरी कर सके | उसकी स्थिति एक पंखहीन पक्षी की तरह हो गई थी | गंगाराम ठंढ से बचने के लिए जो अलाव जला रखा था , उससे एक चिनगारी उछली और गंगाराम की धोती को पकड़ ली | उसे लगा, कर्ज रूपी कोई नाग उसे डसने के लिए उसकी तरफ बढ़ता चला आ रहा है , और वह भागना चाहकर भी भाग नहीं पा रहा है | उसका हाथ-पाँव काँप रहा है , शरीर के सारे अंग शिथिल पड़ गए हैं , वह भागने की कोशिश में वहीँ कच्ची मिट्टी के घड़े की तरह जमीं पर मुँह-भार लुढ़क गया | वह बचने के लिए आवाज लगाया, लेकिन कमजोर कंठ से आवाज बाहर नहीं निकली | जब आग की लपटें ऊपर खपरैल पर लहराने लगीं, तब आस-परोस के लोग दौड़कर उसके पास आये ,मगर तब तक देर हो चुकी थी | गंगाराम कर्ज की नुकीली पंजों से , घायल होकर इस दुनिया से जा चुका है | उसकी हड्डियों से चटक-चटककर निकल रही चिनगारियाँ ऊपर उछल-उछलकर कह रही हैं  —‘कौन कहता है , इस दुनिया का मालिक एक है |

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