Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शामे—सफ़र है, संग न अपना

 

शामे—सफ़र  है, संग  न अपना ,न बेगाना है

जिंदगी   का  बोझ  अकेले  ही  उठाना  है


कदम दिल को कहे बगैर ,बाहर चला जाता है

लगता  रफ़्तारे—सितम1  का  ठोकर खाना है


न  पूछिये  हमसे  आशना-ए-हाल , दिल को

थामूँ  तो  बताऊँ , उनका  क्या  फ़साना  है


कौन कहता है अदम2में जाकर लिखते हैं लोग

दिले—हाल अपना, रश्मे—खत यहीं रह जाना है


न लेकर गया, न जायेगा यहाँ से कोई, मुल्क

माल , दौलत,हशमत3, सब यहीं छूट जाना है


जिस्मे—खाकी4 पानी  का  वह  बूँद है, जिसे

दरिया  में  मिल एक दिन, फ़ना हो जाना है


1.लगातार विपत्ति 2.दूसरी दुनिया 3.बड़ाई 

4.मिट्टी का शरीर

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