Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नाच रही तवायफ़ है,या मजबूरी है

 


कहना मुश्किल होगा, नाच रही तवायफ़ है,या मजबूरी है

किरणों  के  भी  शजर  सूखते  हैं, समझना  जरूरी है


गांधी का  प्रतिरूप ,देश का मसीहा , अहिंसा का पुजारी

आज घर- घर जाकर  खंजर बेच रहा , क्या मजबूरी है


पैसे- पैसे  को लुटाकर, वतन  की आन को बचानेवाला

आज  लुटेरा बन देश  को  लूट रहा , क्या  मजबूरी है


गाँव  को  छोड़कर शहर गया , आया न  कभी लौटकर

पिता  स्वर्गवासी  हुए, बहन कुँवारी है , क्या मजबूरी है


जो कहते थे, तुम मेरी  जिंदगी हो, तुम पर हमारी जान

कुरबान हैं,आज मेरी कुरबानी को घूम रहे,क्या मजबूरी है

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