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Dr. Srimati Tara Singh
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माँ

 


माँ

                                                                               ---डॉ० श्रीमती तारा सिंह , नवी मुंबई 

      

                     पूजा-पाठ का हँसी उड़ाने वाला आज का भोला , बचपन से जड़वादी नहीं था | वह तो पूरे निष्ठावान और ईश्वर भक्त था | दादी के साथ नित्य उठकर ,गंगा-स्नान कर मंदिर-मंदिर चक्कर लगाना उसकी नित्य की दिनचर्या थी | जब वह दिन के दश बजे, दादी के साथ घर लौटता था, तो उसके पूरे वदन पर चन्दन लपेटा रहता था , जिसे देखकर पड़ोस के बच्चे उसका मजाक उड़ाया करते थे | कहते थे, इस उम्र में तुमको इतना शृंगार क्यों करना पड़ता है ? क्या आगे चलकर तपस्वी बनना है या भगवान से कुछ मानत है  , क्योंकि सुना है, धर्म , स्वार्थ के बल टिका रहता है , हवस ही मनुष्य के मन और बुद्धि को इतना संस्कार दे सकता है | उत्तर में भोला बस इतना बोलकर चुप हो जाता था , कि सच पूछो , तो गणेश , इतना करने के बाद भी, मेरे  चित्त की शांति दिनों-दिन उड़ती मुझसे दूर चली जा रही है | मुझे कुछ भी समझ नहीं आता , कि मैं यह सब करना क्यों पसंद करता हूँ ? मेरे मन की कमजोरी को देवालय में पहुँचकर बल क्यों मिलता है ? 

                  गणेश , भोला के सवालों के समर्थन में कहता था , वो इसलिए कि ईश्वर ने ही तो हम सबको बनाया है , वो अंतर्यामी है | सबके दिल का हाल जानता है , नहीं तो शबरी का प्रेम देखकर स्वयं राम उसके घर आकर , उसकी मनोकामना पूरी क्यों करते ? एक दिन  तुम्हारी भी मनोकामना पूरी होगी, मगर तुम्हारी उलझन क्या है, यह तो बताओ ? 

भोला रुआँसा होकर बोला--- तुम्हीं बताओ , जिसे मैंने कभी नहीं देखा , न छुआ , न ही उसके होने का एहसास किया; फिर क्यों वह मेरी साँसों की डोर संग बंधी , मेरी जिंदगी की रक्षा करती रहती है ? कौन है वह , जिसे ढूंढने मैं मंदिर -मंदिर का चक्कर काटता हूँ ?

भोला की बात सुनकर गणेश हँस पड़ा , बोला ---- अरे बेवकूफ ! यही तो ईश्वर है, जिसे हमने कभी नहीं देखा , पर महसूस हर क्षण होता है; दिल कहता है , वो है, तभी हम हैं |

भोला--- चुपचाप खड़ा, अपने आँसुओं के वेग को सारी शक्ति से दबाते हुए कहा ---तुम ठीक कहते हो , लेकिन ईश्वर आकाश से सीधा जमीं पर मुझे नहीं लाकर तो खड़ा किया होगा ; कोई तो माध्यम रहा होगा मुझे यहाँ लाने का , जिससे होकर मैं यहाँ आया ? 

गणेश झटपट बोल उठा ----- है न , वो माँ , जिसने हमें जनम दिया, पाला-पोषा , बड़ा किया | मेरे लिए रात जगी, दिन खड़ी रही ; माँ , ईश्वर का ही तो रूप है |

भोला कुछ देर चुप रहा, फिर बोला ---- मगर मेरी तो माँ नहीं है, मैंने तो माँ को कभी नहीं देखा  , फिर क्यों उसकी तुलना ईश्वर से कर मैं उसके लिए तड़पता रहता हूँ ? मंदिर -मंदिर जाकर ,वहाँ  

बैठी उस देवी में अपनी माँ को ढूंढता हूँ ? 

भोला बोला--- वो  इसलिए कि, तुम्हारी अश्रुपूरित आँखें , तुम्हारी माँ के प्रेम और वियोग में सदा ही एक सम्बंध बनाए रखती है |

गणेश की स्नेहमयी बातें सुनकर

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