Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कब मैं तेरा अपना था जो

 

कब मैं तेरा अपना था जो

आज मैं,      तेरा बेगाना हुआ


 मुद्दत    हुई   तुझसे   मिले   हुए

दिल   मेरा  गम  का  खजाना  हुआ


अच्छा  किया  जो ढूँढ लिया तू अपना

नया  ठिकाना,मेरा ठिकाना पुराना हुआ


आदमी  खाक  का  ढ़ेर  है , जीना तो

उसका,  मरने  का  एक  बहाना  हुआ


तेरे  गम  में  मेरी  शक्ल  बिगड़ गई

तू कहता,चेहरा लगता कुछ पहचाना हुआ



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ