Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हम तो निकले थे, कहीं और

 

हम  तो  निकले  थे, कहीं  और जाने के लिये

उसने   आवज   दी   पास   आने  के  लिये


बोली ,मेरे  फ़िक्र और  फ़न, दोनों  में तेरा भी 

हिस्सा है,तू अपना बना ले मुझे जमाने के लिये


ये  कँपकँपाती  रात  और  भीगी-भीगी फ़ज़ाएँ1

सब  लाई  हूँ साथ, तुझको  मनाने  के  लिये


रफ़ीके-राहे-मंजिल2  से   बेगानगी  अच्छी नहीं 

तू  दे-दे  अपना  हाथ, साथ  निभाने  के लिये


अभी न  सही, बाद ही सही ,लिख ले मेरा नाम 

आयेंगे  तेरे  काम , ठिकाना  बताने  के  लिये



  1. बहार  2. यात्रा का सहयोगी

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ