Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आदमी का मुखौटा

 

 

बेपर्द औरत और
बेजमीर पुरुष में
कोई फर्क नहीं होता होता है.
जैसे कोई परिवार
किसी बद-तमीज बुजुर्ग को
लम्बे समय तक बेतर्क ढोता है.

 

मगर लिहाज की भी
कोई तो हद होती होगी!
जरा करीने से सुनो
तुम्हारे घर में भी
एक घिनौनी सियासत रोती होगी.

 

जब तक कि तुम
अंध श्रद्धा में
आंसुओं में डूबी औरत को
अनसुना करते रहोगे
और अय्याश बूढों पर
आस्था के फूल धरते रहोगे
घर मरघट का शोरूम बन
मातम का आशीष फेंकता रहेगा
पडोसी तुम्हारी चिता पर
रोटी सेंकता रहेगा.

 

डा० रमा शंकर शुक्ल

 

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