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Dr. Srimati Tara Singh
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गुरूजी

 

गुरूजी

सिद्धार्थ  हवेली से मिलिट्री से रिटायर्ड ठाकुर बरखनाथ के तीनों बच्चों को पढ़ाकर हवेली से निकला ही था कि हवेली का बिगडैल वारिस अफीमकुमार अपने सजातीय वफादार  धूम्रकुमार के सिद्धार्थ का पीछा करना शुरू कर दिया l अफीमकुमार और धूम्रकुमार के हाथों में बांस की हॉकी थी l सिद्धार्थ को किसी के पीछे चलने की आहट लगी तो, वह मुड़कर देखा,देखने में तो लग रहा था कि ये दोनों हॉकी खेलने जा रहे हो पर जाड़े की अँधेरी रात,निर्जन सड़क, घोर अंधेरा,भला कोई हॉकी कैसे खेलेगा? आँधेरे में  खेत में हॉकी खेलना, भूसे के ढेर से सुई ढूढ़ने जैसा था l

सिद्धार्थ आशंकाओं से घिर गया, उसे अनहोनी का अंदेशा हुआ वह तेज-तेज चलने लगा l सिद्धार्थ की तेज रफ़्तार को देखकर अफीमकुमार बोला- धूम्रकुमार दौड़ कर रोक l

धूम्रकुमार दौड़कर पेनी पोखरी के पुलिया  पर सिद्धार्थ को घेरकर बोला-अबे रूक रुक.......ठाकुर अफीम को तुमसे कुछ बात करना है l

सिद्धार्थ जाने की कोशिश कर रहा था पर धूम्रकुमार हॉकी से रास्ता रोककर खड़ा  हो गया था l  अफीमकुमार भी हांफते हुए आ धमका l 

धूम्रकुमार बोला- बताओ  ठाकुर साहब ट्यूशनखोर का क्या करना है?

अफीमकुमार बोला- समझ गया ट्यूशनखोर तो ठीक है वरना........?

छोटे ठाकुर क्या बोले ट्यूशनखोर समझे धूम्रकुमार पूछा ?

ट्यूशनखोर नहीं हूँ l  आर्मी वाले अंकल के कहने पर अनिल,सुनील और सावित्री  की  पढ़ाई में मदद कर रहा हूँ सिद्धार्थ बोला l

अफीमकुमार बोला-याद रख तू मेरे  अछूत मज़दूर का बेटा है l

अछूत कैसे हो गया ? अगर मैं अछूत हूँ तो ठाकुर तुम क्या हर आदमी अछूत है सिद्धार्थ बोला l

मैं भी अछूत हूँ अफीमकुमार बोला l

तुम भी तो आदमी हो ना ठाकुर  सिद्धार्थ पूछा?

अबे चुप अफीमकुमार डपटकर बोला l

हम लोग सूर्यवंशी और इक्षाकु वंशीय क्षत्रिय  हैं l अछूत कैसे बना दिए गए l इतिहास में ढूढोगे तो हमारे पुरखों के साम्राज्य और वीरता की गाथा मिल जाएगी सिद्धार्थ बोला l

सुन और बकवास मत कर l हवेली की ट्यूशन खोरी बंद कर धूम्रकुमार हॉकी पर हाथ फेरते हुए रौब से बोला l

क्षत्रिय साहब दो सवाल एक साथ कर दिए, दोनों सवालों का जबाब सुन लीजिये l जिस धर्म के आधार पर क्षत्रिय होने का अभिमान कर रहे हैं, उसके बारे जानते हो उसमे चार स्टेज है l क्षत्रिय तीसरी स्टेज हैं,शूद्र की स्टेज पार करने के बाद वैश्य की स्टेज आती है, इसके बाद क्षत्रिय की स्टेज आती है, इसके बाद ब्राह्मण की स्टेज होती है,पाँचवी और एक स्टेज होती है, जो प्रब्रह्म की होती है l

शूद्र का मतलब साधक,वैश्य का धनार्जन, क्षत्रिय का मतलब बलशाली यानि रक्षा करने लायक बनना और ब्राह्मण का अर्थ ज्ञानी बनना है, ज्ञानी से जब महाज्ञानी बनना प्रब्रह्म होना होता है, तो बताइये बिना शूद्र और वैश्य की स्टेज पार किये कैसे क्षत्रिय बन सकता है l 

भगवत गीता भी यही कहती है पर युरेशियन आक्रमणकारियों ने पाखंडवाद की आड़ में अखंड भारत को खंडित कर देशवासियों को ऊंच-नीच में बाटकर खुद पूजनीय बन बैठे हैं l इन्हीं युरेशियन की बोयी नफ़रत  में देश सुलग रहा है  सिद्धार्थ बोला l

अबे चुप हॉकी से डराने का प्रयास करते  हुए अफीम कुमार बोला l 

सच्चाई बर्दास्त नहीं हुई l पढ़े लिखे खानदान से हो पाखंड, अंधविश्वास से उपर उठो सिद्धार्थ दृढ़ता से बोला l

अछूत  मजदूर का बेटा मुझे सीखा रहा है l इस ढीठ की हिम्मत तो देखो अफीम कुमार गरज कर बोला l

छोटे जमींदार हम  लोग इस भारत देश के मूलनिवासी हैं , विदेशी  लुटेरे धार्मिक पुस्तकों के पाखंड की आड़ में मूलनिवासियों  को वर्ण में बिखंडित कर खुद सिर पर बैठ गए l पाखंडी अपनी सत्ता बनाये रखने के  आक्रमणकारियों के माथे पर ताज मढ दिए सिद्धार्थ  बोल ही रहा था तब तक अफीम कुमार गरज कर बोला अबे चुप l

सिद्धार्थ बोला- सच्चाई सुनने की हिम्मत रखो राजकुमार l चमार राजाओं -चन्द्रापीड, वज्रआदित्य, तारापीड-उदयादित्य, मुक्तापीड, ललितादित्य, चंवरसेन, कमलसेन, ब्राह्मसेन, रतिसेन,इनका नाम तो सुना होगा, नहीं सुने हो तो इतिहास पढ़ लेना l 

छोटे जमींदार यह भी नहीं जानते होंगे कि चमार वंश को उत्पल वंश के नाम से भी जाना जाता है  l हमारे वंश  का इतिहास गौरवशाली है l खैर परजीवी लोग क्या जानें? हाँ तो अफीम कुमार ये तो बताओ इस सुनसान जगह पर इतनी रात में मुझे लाठी के दम पर क्यों रोका है बताओगे सिद्धार्थ पूछा ?

कहाँ से आ रहे हो अफीम कुमार लाठी जमीन पर पटकते हुए पूछा?

क्यों अनजान बन रहे हो सिद्धार्थ बोला l

अबे जो पूछ रहे हैं, उसका जबाब तो दें धूम्रकुमार बड़े रूआब से बोला l

मुद्दे की बात करो, क्यों मुझे रोके हो सिद्धार्थ बोला l

मेरी हवेली से आ रहा है अफीमकुमार पूछा l

हाँ.... कोई चोरी करके तो  नहीं आ रहा हूँ कि दो-दो लोग लाठी लेकर पीछा कर रहे हैं,  तलाशी लेना है तो ले लो,  लोग  इज्जत की रोटी खाते हैं, चोरी-बेईमानी, छल नहीं करते है, हमारे लोगों को परजीवियों  जैसा जीवन जीना बिल्कुल पसंद नहीँ है सिद्धार्थ बोला l

ट्यूशनखोरी तुम्हारा नया धंधा है धूम्रकुमार बोला ?

ट्यूशनखोरी नहीं ज्ञान बाँट रहा हूँ सिद्धार्थ ढिठता से बोला l

आठवीं में पढ़ता है स्वामी विवेकानंद बन रहा है अफीमकुमार बोला l

अरे ऐसी गुस्ताखी नहीं l मैं, मैं ही बने रहना चाहता हूँ सिद्धार्थ बोला l

अबे तू मेरे मजदूर बिरतू का बेटवा है l वह मेरे खेत मे काम करता है l तू मेरी हवेली मे मेरे चाचा के लड़की-लड़को को  मेरे टेबल कुर्सी पर बैठकर ट्यूशन पढ़ता है, तेरी इतनी हिम्मत अफीम कुमार अंवारा बादल की तरह गरज कर बोला l

मिलिट्री वाले चाचा के अनुरोध पर हवेली पढ़ाने आता हूँ सिद्धार्थ बोला l 

बरखनाथ चाचा बेवकूफ है l इतनी अक्ल होती तो तुम जैसे चमार के बेटे से अपने बेटी-बेटों  को ट्यूशन पढ़वाते,  अफीम कुमार बोला l

मुझे हवेली की कुर्सी पर बैठने  का शौक नहीं हैं l मैं बरखनाथ चाचा के कहने पर उनके बच्चों- अनिल,सुनील और सावित्री पढ़ाने आता हूँ सिद्धार्थ बोला l 

इतने में धूम्रकुमार गरज कर बोला कल से बंद अगर नहीं माना तो हड्डी-पसली तोड़कर पोखरी में फेंक देंगे कल अफीमकुमार बोला l

बरखनाथ चाचा को बता देना कि मैं कल से हवेली पढ़ाने नहीं आऊंगा सिद्धार्थ बोला l

तू अपनी चिंता कर l अपनी खैरियत चाहता है तो हवेली में दिखाई नहीं देना l चलो ठाकुर धूम्रकुमार,नहीं माना तो कल मजा चखाएंगे, आज तो वार्निंग थीl अफीमकुमार बोलकर चल पड़ा धूम्रकुमार उसके पीछे-पीछे बढ़ रहा था हवेली की तरफ l सिद्धार्थ भी अपने घर की ओर जल्दी-जल्दी पग भरने लगा था   l 

जाड़े की रात थी, इसके बाद भी सिद्धार्थ के माथे से पसीना चू रहा था l सिद्धार्थ को पसीने में तर-बतर देखकर उसकी माँ जशोदा बोली अरे सिद्धार्थ के बापू,कहाँ हो इधर आओ l

सिद्धार्थ के बापू बिरतू ऊँची आवाज़ में बोले -क्या हुआ?

जशोदा बोली -अरे इधर तो आओ देखो सिद्धार्थ बहुत घबराया हुआ लग रहा है, कुछ बता नहीं रहा है l

बिरतू आंधी की तरह आये और सिद्धार्थ  के कंधे पर हाथ रखकर पूछे क्या हुआ बेटा, इतना पसीना क्यों?

बापू दौड़ लगाकर आया हूँ सिद्धार्थ बोला l

दौड़ क्यों बिरतू पूछे l

 गुंडे रास्ते में मिल गए थे, काफ़ी देर तक बातों में उलझाए रखे थे l काफ़ी देर हो गयी थी l इसलिए दौड़कर आया कि माँ परेशान हो रही होगी सिद्धार्थ बोला l

 गुंडे कौन थे बिरतू पूछें l

अफीमकुमार और धूम्रकुमार सिद्धार्थ बोला l

झगड़ा तो नहीं हुआ बिरतू पूछे?

नहीं बाबू सिद्धार्थ बोला l

अनिल,सुनील और सावित्री को पढ़ाने से मना कर रहे थे बिरतू बोले l

हाँ बापू पर ये सब तुमको कैसे मालूम है सिद्धार्थ पूछा?

ठकुरान में आजकल चर्चा चल रही है कि  गांव के बड़े जमींदार सूरजमान की हवेली में बिरतू का बेटा  ट्यूशन पढ़ाने आता है, लोग खार खाये हुए हैं l कल से मत जाना बेटा बिरतू बोले l

जशोदा माँ आँचल से पसीना पोंछते हुए बोली- तुम्हारे बापू ठीक कह रहे हैं l बेटा अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो  l कल से तुम्हारा हवेली में पढ़ाने जाना बंद l

ठीक है माई नहीं जाऊंगा l मुझे लगता है यह  अपराध होगा सिद्धार्थ बोला l

सिद्धार्थ के पिता बिरतू समझाते हुए बोले-बेटा जानता हूँ तुम्हारा उद्देश्य इन बढ़ती उम्र के बच्चों की मदद करना है पर हवेली वाले स्वार्थवश अनपढ़ रखना चाहते हैं l सावित्री तो परायाधन है, अनिल और सुनील  खेतीबारी संभालेंगेl अनीश और सनीश बार -बार इम्तहान में फेल हो रहे हैं l  उर्मिला तो परायाधन है,अनिल और सुनील  खेतीबारी संभालेंगेl अफीमकुमार हवेली का बड़ा राजकुमार है,  मुझे तो साजिश लगती है  l

जशोदा सिद्धार्थ की माँ बोली-बेटा सिद्धार्थ तुम अपराधी नहीं हो, अपराधी तो अफीमकुमार है, जो शिक्षादान के बदले धमकी दे रहा है l बेटा तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो l  जितना समय हवेली में लगाते हो, उतना और अपनी पढ़ाई पर लगाओl अफीमकुमार से आगे निकल जाओ यही मेरी तमन्ना है l

सिद्धार्थ बोला-वादा रहा माँ l

सिद्धार्थ के पिता बोले-बेटा याद रखो, पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर  समझदारी नहीं है l

बापूजी  ठाकुर  बरखनाथ मिलिट्री  के रिटायर्ड अफसर  हैं, अच्छे लोगों के संपर्क में रहने के भी फायदे होते हैं सिद्धार्थ बोला l

मिलने-जुलने पर कहाँ प्रतिबन्ध हैं, तुम्हारा हवेली में पढ़ाना बंद है, उनकी शान के खिलाफ हवेली वालों को लगता है, खतरा क्यों मोल लेना सिद्धार्थ के बापू बिरतू बोले l

हाँ बापू चिंता मत करो हवेली पढ़ाने नहीं जाऊंगा l मिलिट्री वाले ठाकुर  भी तो उसी हवेली में रहते हैं, सोच में फर्क देखो बापू सिदार्थ बोला l

बरखनाथ दुनिया देखें है l ये गांव वाले कुएं के मेढक हैं l गांव वाले ऊँची जाति के अभिमान में मूंछ पर ताव देने अपनी शान समझते हैं l आदमी की परछाई से परहेज करते तो हैं पर खून चटकारे लगाकर चूसते है l

सिद्धार्थ पढ़ाई पूरी कर गांव से शहर चला l नौकरी धंधा में कई साल दर-दर ठोकरें खाया l आखिरकर माँ-बाप की दुआएं और संघर्ष काम आया l सिद्धार्थ अपने मकसद में कामयाब हुआ l

सिद्धार्थ अपने जीवन संघर्ष में लग गया l वह रिटायर्ड भी हो गया था  l एक दिन सिद्धार्थ के भाई गौतम  ने फोन पर बताया कि अनीश बीच सड़क पर चिल्लाकर मर गया l मिलिट्री वाले ठाकुर काका तीनों बच्चे - अनिल, सुनील और सावित्री  दसवीं की परीक्षा नहीं पास कर पाए l अनिल सिद्धार्थ की उम्र के आसपास का ही था l

हवेली वालों ने अनिल  को हवेली  वालों ने पागल घोषित कर दिया थाl पूरा गांव अनिल  को पागल ही समझता था जबकि अनिल पागल तो कतई नहीं था l अनिल हवेली के तबला का एक मजदूर होकर रह गया था, गाय भैंस का दूध निकालना, तबले के जानवरों का गोबर घूरे में फेंकना उसका काम हो गया था l

बिस्तर में सिमटे सिद्धार्थ के पिता बिरतू का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद मांगता था l उसी अनिल  की हार्टफेल से मौत  की खबर से सिद्धार्थ सदमे में था l 

सिद्धार्थ को दुःखी देखकर अश्विनी बोली क्यों गुमसुम बैठे हो? क्या हुआ ? आज पूजा-ध्यान नहीं करना है क्या संजीव के पापा?

क्यों नहीं ? अनिल की याद आ गयी सिद्धार्थ बोला l

जाने वालों की याद तो आती है चाहे अपना हो बेगाना अश्विनी बोली l

सिद्धार्थ बोला-गांव जाता था,अनिल  से जब भी मुलाक़ात होती थी तो वह पूछता शहर से कब आये  गुरूजी l

गुरूजी के परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अनिल अश्विनी बोली l

नन्दलाल भारती

19/04/2025


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