Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ट्रांसफर

 

कहानी: ट्रांसफर


चमारिया के ट्रांसफर का आर्डर  तुरंत निकालो मि. शेखावत।  जी आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। चमारिया ही लिखा है। ये शब्द क्लास वन आफिसर डॉ विजय प्रताप सिंह के  है जो एक  बड़े विभाग में  निदेशक थे। हुआ यों था कि कम्पनी के रिप्रेजेंटेटिव जनरल बाडी के चुनाव होने वाले थे जो हर तीन साल में होते थे। कम्पनी के हेडक्वार्टर से चुनाव की अधिसूचना जारी होते सभी छोटे -बड़े दफ्तरों में हलचल बढ़ गई थी। मालवगढ़ दफ्तर राज्य का भले हो एरिया आफिस था पर राज्य का बिजनेस इसी दफ्तर से होता था। इस दफ्तर के अन्तर्गत चुनाव के लिए छः:सौ से अधिक समितियां रही होगी।
चुनाव की घोषणा होते ही मुख्यालय से चुनाव में सहभागिता करने वाली सभी समितियों के उच्च अधिकारियों के नाम,और समिति के विस्तृत पते की सूची सभी सम्बंधित दफ्तरों को अंग्रेजी में भेज दिया गया। मालवगढ़ दफ्तर से सम्बंधित सूची वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंधक,मि. काम प्रवेश सिंह को प्राप्त हो गई। मि.काम प्रवेश ने अपने सजातीय विपणन सहायक की सूची पर कांपते हाथो से दसख्त कर कालबेल घनघना दिये। चपरासी रईस हांफता हुआ हाजिर हुआ था।
मि.काम प्रवेश -ये सहकारी समितियों की सूची के बण्डल है, विवेक सिंह साहब को दे दो।
विवेक सिंह भुनभुनाते हुए चपरासी से बोले रईस तुम को तो पता है,यह मेरा काम नहीं है। पूरी सूची और दस्तावेज अंग्रेजी में है ,यह सब हिन्दी में तैयार करना होता है। यह काम रामलाल ही कर सकता है। मैं तो नहीं कर सकता।
रईस बोला -साहब ने दिया है। साहब बोले भी विवेक साहब को दे दो।अब आप बताओ मुझे क्या करना है,साहब की टेबल पर रख दूं।
विवेक -रईस तुमको क्या पूरे स्टेट को ही नहीं मुख्यालय तक को पता है रामलाल, टाइपिस्ट अंग्रेजी और हिन्दी टाइपिंग में प्रवीण है और तो और चुनाव कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में भी प्रवीण है,ये दरोड़िया कामप्रवेश मुझे क्यों फंसा रहा है ‌?
रईस-विवेक साहब बड़े ठाकुर साहब,छोटे ठाकुर साहब को पावरफुल बना रहे हैं। गहराई से सोचो विवेक साहब।आप रामलाल के उपर हो, वह आप से जूनियर है, देखो बड़े साहब उसके  पर कैसे कतर रहे हैं ?
क्या कह रहे हो मियां ?
समझो ठाकुर साहब चने की झाड़ पर बैठा दिया शातिर दिमाग रईस ने।
रईस की चिकनी-चुपडी बातों से विवेक सिंह के अन्दर का शैतान जाग गया।वह बोला दरोड़िया एरिया मैनेजर कैसे रामलाल का पर कतर रहे हैं ?
विवेक साहब हंसिया अपनी तरफ खींचता है, वैसे ही एरिया मैनेजर साहब आपकी प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही रहा तो एक दिन अछूत के बेटे रामलाल की छुट्टी  निश्चित रूप से हो  जायेगी। हमारे बीच से नागफनी का कांटा हमेशा के लिए निकल जायेगा।
रईस पूरा बण्डल आलमारी की निचले खाने में  छिपा दो,जब दरोडिये को होश आयेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।हम बोल देंगे हमने हेड आफिस से आई चुनाव की सूची एवं अन्य दस्तावेज देखें ही नहीं । एरिया मैनेजर ने रामलाल को मार्क किया होगा, अभी तक तो चुनाव का काम वही देखता आ रहा है। स्टेट आफिस से हेड आफिस तक सब को पता है। चुनाव के दस्तावेज एरिया मैनेजर ने रामलाल को मार्क किये होंगे। रामलाल के पास दस्तावेज नहीं है इसका मतलब वह झूठ बोल रहा है। दरोडिये साहब को तब तक याद ही नहीं रहेगा कि दस्तावेज आया भी था कि नहीं। याद भी आ गया तो उसका कान भर देंगे कि साहब आपने रामलाल को मार्क किया होगा।वह लापरवाह है कहीं रखकर भूल गया होगा। रामलाल पागलों की तरह ढूंढता फिरेगा। काम प्रवेश बाबू साहब, भूस भरने में माहिर स्टेट चीफ, डीपी सिंह से लेकर वीपी सिंह तक रामलाल की शिकायत करेंगे फिर तो रामलाल को नौकरी बचाना मुश्किल हो जाएगा। 

अछूत अपशकुनी का जूठा कप गिलास उठाना पड़ता है, साफ करना पड़ता है। विवेक साहब आपकी योजना कारगर हो गई तो मज़ा आ जाएगा रईस बोला।
योजना तुम्हारे बिना कारगर नहीं हो सकती विवेक बोला।
क्या कह रहे हो विवेक साहब रईस बोला?
हेड आफिस,स्टेट आफिस और एरिया आफिस यानि चारों तरफ से रामलाल के उपर दबाव पड़ेगा तब रामलाल पगला जायेगा ‌। तुम मौंके की तलाश में रहना मौका मिलते ही रामलाल की आलमारी में पूरा बण्डल छिपा कर रख देना। रामलाल पागलों की तरह भटकता फिर रहा होगा, तुम उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से प्रभावित कर बोलना चलो साहब हम कागजात ढूढवाने में आपकी मदद करते हैं। बाकी सब तो तुम को पता ही होगा चुनावी दस्तावेज का बण्डल रामलाल के मुंह पर मार देखना। 
यह तो कमाल का आइडिया है विवेक साहब, रामलाल चुनाव के पहले या बाद में सस्पेंड हो जायेगा मुझे अछूत से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाएगी। मुझे अछूत के जूठे कप प्लेट धोने नहीं पड़ेंगे। सुबह से शाम तक रामलाल को चाय पानी देना पड़ता है,यह नहीं करना होगा। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। रामलाल का पत्ता साफ ।वाह विवेक साहब क्या खेल खेल रहे हो। गुलाम की कचूमर निकल जायेगी।
शातिर अपनी योजना अनुसार रामलाल की राह में शूल गाड़ने में जुट तो पहले से गये थे, अभी गति बढ़ गई थी। पूर्व की भांति दफ्तर का समय समाप्त होते ही विवेक का कक्ष बार-रुम में बदल जाता था। देवगढ़ से सन्त कुमार भी सप्ताह में दो से चार दिन दारु पार्टी के विशेष अतिथि होते थे।
सन्त कुमार आते ही रामलाल के बारे में तहकीकात करते। रामलाल दारु से दूर था पर शुरुआती दौर में एकाध बार बैठ गया था। दारु के खर्च की चिंता नहीं थी सब कम्पनी के खर्चे पर होता था पर एडजेस्ट किसी और तरीके से हो जाता था। इस काम में एकाउण्टेंट बहुत माहिर था।
वैसे तो रामलाल को दारू पसंद न था और लोगों को  भी वह दलित होने के कारण कतई किसी को पसन्द ही नहीं था,पर सबकी  निगाहें उसी पर टिकी होती थी। उसको देर रात तक जब तक पार्टी चलती थी रुकने के लिए बाध्य किया जाता था। दफ्तर का ऐसा रुल बना दिया गया था कि जब तक आफिस के हेड आफिस में होंगे तब तक रामलाल को रुकना ही ही होगा चाहे आफिस हेड दारु की बोतल में डूबे या दफ्तर में बैठे। इस हिटलरी रुल के जनक थे देवगढ़ कार्यालय के प्रमुख मि.सन्तकुमार ।
रामलाल कि  आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी पत्नी सालों से बिस्तर के आगोश में थी। उठना-बैठना और चलना-फिरना दर्दनाक था। यह सब डाक्टर के गलत आपरेशन  की वजह से हो रहा था।
 रामलाल के जीवन में दर्द ही दर्द था सबसे बड़ा दर्द दलित होने का मिल रहा था।सीआर खराब करना, उसके ओवर टाइम पर पूरी तरह प्रतिबंध, उसके क्लेम का भुगतान न करना या ठण्डे बस्ते में डाल देना। दफ्तर के हर काम के लिए रामलाल जिम्मेदार और उसी पर ब्लेम -आरोप शोषण अत्याचार रामलाल के उपर ‌।  काम की जिम्मेदारी सब रामलाल के माथे कुल मिलाकर मुश्किलों के चक्रव्यूह में।अच्छी बात थी तनख्वाह दो दिन पहले मिल जाती जो इस्टेट आफिस से जारी होती थी।
रामलाल दफ्तर से सात  बजे  तक अपने घर चला जाने की पूरी कोशिश करता पर कभी -कभी नहीं जा पाता था क्योंकि  कार्यालय का नियम बन गया दिया था कि जब तक आफिस हेड दफ्तर में होंगे तब रामलाल को भी बैठना पड़ेगा दारु पीये या न पीए पर हाजिरी जरुरी थी। लाचार को विचार क्या वह बैठता, पत्नी बिस्तर पर थी,इसके बाद भी समय पर जाने की इजाजत न थी। सुबह दस बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक दफ्तर का समय होता था पर रामलाल को सुबह साढ़े नौ बजे तक दफ्तर पहुंचना जरूरी होता था। वापसी देर रात तक होती थी।
कभी कभी रामलाल सात बजे चला गया तो सबसे ज्यादा शिकायत सन्त कुमार को होती थी जो देवगढ़ इकाई के प्रमुख हुआ करते थे जो सिर्फ दारु पार्टी के लिए आते थे। सन्त कुमार रामलाल के हाजिर न होने पर तुरंत मि.कामप्रवेश सिंह से बोलते क्या साहब आपका क्या कंट्रोल है एक मामूली सा क्लर्क रामलाल आपके कंट्रोल में नहीं है। मुझे कभी नहीं मिलता साढ़े पांच बजते ही भाग लेता है।आप जोनल मैनेजर हो सिंह साहब आप अपनी पावर का उपयोग करो और रामलाल बेकाबू हो रहा है काबू में करो। सन्त कुमार की बातों से मि.कामप्रवेश के अन्दर का जमींदारीपन का शैतान फुफकार मारने लगता था।
उधर चुनाव प्रक्रिया से बेखबर शराब और कबाब में डूबे मि.कामप्रवेश से आर.जी.बी.चुनाव के कार्यों की प्रगति के बारे में राज्य प्रमुख  मि. डीपी सिंह ने पूछा तो उनको खुद होश नहीं था क्या बताते,मि.कामप्रवेश के सामने बैठा विवेक बोला साहब चुनाव का काम तो रामलाल देखता है प्रगति तो वहीं बतायेगा।
मि. कामप्रवेश साहब  कूद कर कालबेल पर बैठ गए।
चपरासी-चीता की गति से साहब के वातानुकूलित कक्ष में प्रवेश किया। मि.कामप्रवेश बोले रईस रामलालजी को भेजना। कामप्रवेश भले रामलाल को पसंद नहीं करते थे पर वे रामलाल को रामलालजी कहकर बुलाते थे। चपरासी जिस गति से साहब के कक्ष में गया था उसी गति से बाहर भी आया । कालर खड़ा करते हुए रामलाल से बोला रामलाल साहब तुरंत बुला रहे हैं।
रामलाल मि.कामप्रवेश के कक्ष में उपस्थित हुआ। रामलाल का मुआयना कर साहब बोले रामलालजी कम्पनी प्रतिनिधियों के चुनाव की घोषणा हो चुकी है, आपको मालूम है ?
साहब सुना तो है रामलाल बोला पर दस्तावेज तो अभी तक नहीं आये हैं।
तब यह भी मालूम है बीस दिन और बचे हैं मि. कामप्रवेश साहब बोले।
नहीं साहब ये तो नहीं मालूम है रामलाल बोला।
नहीं मालूम है यह कैसे हो सकता है ? क्या मुख्यालय से आये दस्तावेज नहीं मिले।
मुझे तो आज तक नहीं मिले हैं रामलाल बोला।
महीना भर पहले सारे दस्तावेज आ गये हैं क्यों विवेक?
विवेक -जी साहब, चुनाव से सम्बंधित बड़ा भारी पैकेट आया तो था।रामलाल रखकर कहीं भूल गया होगा ‌। रामलाल जाओ खोजों । तुमको तो चुनाव के काम के बारे में मुझ से अधिक मालूम है, जाओ ढूंढो तुम्हारे पास ही होगा खोजो तो मिल जायेगा।
ये दोषारोपण क्यों रामलाल नाराजगी दर्शाते हुए बोला?
रामलाल अभी जाओ।कल सुबह आलमारी दराज सब ठीक से देख लेना विवेक बोला ।
विवेक सिंह बोला रहे हैं तो डाक आयी है। आपके पास हो या विवेक सिंह के पास आफिस हेड मि.कामप्रवेश सिंह बोले।
कैसी बात कर रहे हो साहब ? रामलाल की जिम्मेदारी मेरे जिम्मे मढ़ रहे हो ? मेरे पास चुनाव से सम्बंधित कोई दस्तावेज नहीं आये हैं, मैंने रामलाल के टेबल पर देखा था। साहब बेल बजाइये रईस को भी मालूम है परन्तु सम्बंधित साहब को मालूम नहीं है? बेल बज गयी रईस दुम हिलाता हुआ हाजिर हुआ। 
क्यों रईस एक बड़ा सा लिफाफा हेड आफिस से आया था किसको दिया विवेक सिंह आंख का इशारा करते हुए रईस से पूछा।
रईस बिना सेकेण्ड गंवाये रटी-रटाई स्क्रिप्ट बोल दिया रामलाल को तो दिया था।
देखो साहब रईस को भी याद है पर रामलाल इतनी महत्वपूर्ण डाक को कहीं रखकर भूल गया। खैर रामलाल की भूलने की आदत है। पूर्व योजनानुसार विवेक बोला रईस कल सुबह आते ही सब काम छोड़कर चुनाव के दस्तावेज ढूढवाने में अपने रामलाल साहब की मदद कर देना ब्यंग बाण छोड़ते हुए विवेक बोला।
रामलाल तो कोना-कोना छान डाला था। रामलाल को कामप्रवेश सिंह के कक्ष में ही साजिश की बू आ गयी थी।वह अपने अधिकार क्षेत्र के आलमारी टेबल में ताला लगा कर रखने लगा। साजिशकर्ताओं को पूरे दिन मौका नहीं मिला। दूसरे दिन मैनेजर साहब तनिक जल्दी आ गये।आते ही कालबेल पर बैठ गये फिर वही चुनाव प्रक्रिया पूरा करवाने वाले दस्तावेज। राज्य कार्यालय से चीफ मैनेजर डीपी सिंह का फोन आग में घी डालने का काम कर गया रामलाल का बीपी बढ़ गया। योजना अनुसार विवेक सिंह और रईस की इन्टरी हुई। विवेक सिंह बोला क्या हुआ रामलाल दस्तावेज मिले ।
रईस को चाबी दो तुम्हारी आलमारी देख ले। विवेक सिंह को तो मालूम था शातिर रईस ने काम पूरा कर लिया होगा,पर शातिर को तो मौंका नहीं मिला।
चलो रईस पहले विवेक सिंह के रेक, और आलमारी को़ देखो। इतना सुनते ही रईस तो सिर खुजलाने लगा, विवेक को तो जैसे सांप सूंघ लिया। वह मेरे आलमारी में नहीं है।
देख लेते हैं रामलाल अनुरोध किया।
मैनेजर कामप्रवेश सिंह बोले विवेक सिंह तुम्हारे पास पेपर नहीं है ,ठीक से देख लो। रामलाल को भी तसल्ली मिल जायेगी। 
विवेक सिंह -नहीं साहब मैं ने देखा ही नहीं। तो मेरी आलमारी में कैसे हो सकता है।विवेक सफेद झूठ बोल गया क्योंकि रामलाल को फंसाने का जो खेल खेला जा रहा था। कुछ साल पहले मि.राजेन्द्र खुमार  ने तो मि. तैमूर साहब से ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर रामलाल को नौकरी से निकालने की सिफारिश कर ही दिया था। रामलाल के ज्वाइन करने के बाद जैसे ही पता चला रामलाल दलित है बस क्या षणयन्त्र शुरू हो गये थे,जो निरंतर जारी थे। चुनाव के दस्तावेज छिपाना विवेक सिंह और रईस का रामलाल के खिलाफ एक  साज़िश थी।
मि.कामप्रवेश सिंह के बार-बार कहने पर विवेक सारा दोष रामलाल के माथे मढ़ रहा था। मि.कामप्रवेश चिढ कर बोले जाओ रईस को लेकर दफ्तर का कोना कोना -कोना ही नहीं कचरा भी छान डालो। मि.कामप्रवेश बोले रईस रामलाल को बुलाओ।
मि.कामप्रवेश सिंह की अदालत में रामलाल हाजिर हुआ।मि.कामप्रवेश हिदायत भरे लहजे में बोले रामलाल चुनाव का काम डिले हो रहा है। विवेक और रईस के साथ मिलकर चुनावी दस्तावेज खोज कर काम शुरू कर दो।
रामलाल -जी साहब। चलिये आइये सबसे पहले मेरी आलमारी,दराजों की तलाश कर लीजिए।
आधे घण्टे रामलाल के कमरे की गहन तलाश हुई पर मिला कुछ नहीं। मिलता भी कैसे जबकि रामलाल के सामने दस्तावेज आये ही नहीं। विवेक और रईस की साज़िश सफल नहीं हो पाई थी। आखिरकार विवेक सिंह की कस्टडी से सारे पेपर बरामद तो हुए पर दोष रामलाल के माथे विवेक सिंह ने यह कहते हुए मढ़ दिया कि रामलाल ने मेरी आलमारी में रख दिया होगा। रईस चपरासी ने भी अपनी मुहर लगा दी थी।ये वही हाल हुआ जबरा मारे रोवै ना देय।
चुनाव के दस्तावेज तैयार करने और डिस्पैच करने से लेकर परिणाम तक के काम रामलाल के माथे बाकी दफ्तर के लोग रामलाल पर हुकुम जमाने के लिए तैनात हो गये।बीच-बीच में स्टेट हेड मि.डी.पी.सिंह का हिटलरी आदेश भी रामलाल पर बिन मौसम की बरसात की तरह बरस जाते थे।
चुनाव के दस्तावेज तैयार करने और डिस्पैच करने की जिम्मेदारी रामलाल के उपर थोप दी गई। एकाउंटेंट चहेता था उसे चुनाव के कामों से कोई सरोकार नहीं था बस था तो चुनाव के नाम पर ओवरटाइम, इंसीडेंटल क्लेम, क्लेम के लिए सभी मुंह फाड़े रहते थे पर कोल्हू का बैल तो रामलाल को ही बनना होता था। रामलाल का क्लेम भी निरस्त कर दिया जाता था।
रामलाल के लिए नौकरी जेल की सजा बना दी गई थी । रामलाल के लिए नौकरी करना मजबूरी था, पत्नी बिस्तर पर पड़ी थी, परिवार का खर्च पत्नी की दवाई का खर्च बहुत भारी पड़ रहा था उपर से जातिवादी नाक में दम किए रहते थे। रामलाल के लिए नौकरी करना जीओ या मरो जैसी थी। रामलाल इस्तीफा भी तैयार कर रखता था पर पत्नी का तड़पता चेहरा नौकरी करने को मजबूर कर देता था।
रामलाल दैनिक कार्यलयीन कामों के साथ चुनाव का काम भी कर रहा था। दर्द में तड़पती पत्नी को छोड़कर सुबह जल्दी वह नौकरी पर आ जाता और अक्सर रात में देर से घर पहुंचता । रामलाल विभाग के लिए समर्पित कर्मचारी था पर दुर्भाग्यवश जातिवादियों के बीच काम कर रहा था । रामलाल के समर्पण को देखते हुए उसे बेस्ट वर्कर का खिताब मिलना था पर जातिवादी उसे दण्डित और उसकी अस्मिता को कलंकित करने की हर कोशिश कर रहे थे।
चुनाव के कामों के लिए रामलाल को बहुत त्याग और जहर पीना पड़ा। अन्ततः महीनों की लम्बी प्रक्रिया के बाद चुनाव का कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया। स्टेट हेड डीपी सिंह और एरिया हेड कामप्रवेश सिंह के उपर बधाईयां बरस रही थी और रामलाल के आंखों से आंसू। पूरे प्रदेश में रामलाल इकलौता दलित कर्मचारी था ज्यादातर उच्चवर्णिक थे। एक तेली,एक बहेलिया और तीसरा गंड़ेरिया था पर ये तीनों अपने आप को उच्चवर्णिक ही मानते थे चौथा चपरासी रईस मुस्लिम था और वह घोर जातिवादी, वह रामलाल को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था। इस जातिवादी रईस की वजह से रामलाल बहुत तकलीफ़ में रहता  था। रईस रामलाल के खिलाफ षणयन्त्र रचने में सबसे आगे रहता था। जनरल बाडी इलेक्शन के दस्तावेज विवेक सिंह से सांठगांठ कर छिपाने और रामलाल को बदनाम करने में जितना दोषी विवेक था उससे ज्यादा रईस था।
कम्पनी के प्रतिनिधि सभा के चुनाव गठन के बाद एक शानदार पार्टी का आयोजन चामुंडा माता के शहर देवगढ़ में हुआ जिसके चीफ गेस्ट कन्ट्री सेल्स हेड मि. वी पी सिंह थे। स्टेट में साठ के उपर  इम्प्लॉइज थे और रामलाल के साथ खड़ा होने वाला कोई न था क्योंकि रामलाल अछूत था, लोगों को अछूत की उपस्थिति बर्दाश्त न थी। अब तो मामला और संगीन बना दिया गया था, जनरल बाडी इलेक्शन के दस्तावेज जान-बूझकर छिपाने और चुनाव के कार्य में बाधा डालने का गैर जमानती केस, जिसके मुख्य किरदार विवेक सिंह और रईस ही थे पर इल्ज़ाम रामलाल के सिर। यह नाटक किसके इशारे पर रचा गया था यह रईस और विवेक जाने,खैर बलि का बकरा दलित कर्मचारी रामलाल को बना दिया गया।
देवगढ़ में आयोजित  पार्टी अपने शबाब पर थी।लोग झूम रहे थे। रामलाल को भनक तक न थी । इसी बीच दलित विरोधियों ने कन्ट्री सेल्स हेड से रामलाल की शिकायत एक बार और कर दिये। रामलाल, कन्ट्री सेल्स हेड, को वैसे ही नहीं पसंद था।
कन्ट्री सेल्स हेड आव देखा न ताव तुरंत पी एण्ड ए इंचार्ज को फोन लगा कर बोले मि.शेखावत चमारिया का तुरंत ट्रांसफर आर्डर निकालो।
कहां करना है साहब मि.शेखवात पूछे।
 कहां कर सकते हो कन्ट्री सेल्स हेड पूछे।  चमारिया का ट्रांसफर मेरी परमिशन से हो रहा है।आप जहां कर दो  मि.शेखावत।चम्बल के बीहड़ में कर सकते हो ? कन्ट्री सेल्स हेड वीपी सिंह बोले।
साहब वहां तो कम्पनी का कार्यालय ही नहीं है मि.शेखावत बोले।
ग्वालियर तो है?
जी, ग्वालियर में तो है मि.शेखावत बोले।
तुरंत आर्डर निकालो।
रात में ट्रांसफर आर्डर?
हां ये वी.पी.सिंह का आदेश है।
सुबह कार्यालय खुलने के पहले ट्रांसफर आर्डर रामलाल की टेबल पर था। रामलाल को ट्रांसफर आर्डर देखकर आश्चर्य तो नहीं हुआ वह हिम्मत कर ट्रांसफर आर्डर हाथ में लिया और एकाउंटेंट के कक्ष में गया जहां गुप्त मीटिंग चल रही थी। वह विवेक सिंह,मुकेश खण्डेलवाल,रईस और सभी को अपने  ट्रांसफर के षणयन्त्र की सफलता की बधाई दिया और ग्वालियर ज्वाइन करने की तैयारी में जुट गया। वक्त ने करवट बदला वही  रामलाल अपने समर्पण और नेक इरादे से जातीय द्वेष के तेजाब के दरिया को पार करते हुए एक दिन जमाने की नजरों में आदर्श पुरुष बन गया ।
नन्दलाल भारती








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