Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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श्रमफल

 

गुनाह के देवता, आदमी के चोले में भी
तुम आदमी नहीं हो
तुम्हारे दिल में अमानुषता बसती है
तुम आदमियत के बलात्कार में,
माहिर हो,
निरापद का जीवन नरक बनाना
तुम्हे भाता है
सच्चा आदमी तुम्हे गुनाह का देवता
कहंता है।
तुम्हारी सल्तनत में निरापद को
जख्म और आंसू ही तो मिलता है
गांठ बाँध लो
निरापद का आंसू बेकार नहीं
जाने वाला
जीवन में तुम्हारे नासूर बनने वाला है
तू जानता है तेरी सल्तनत के आगे
गरीब निरापद की औकात क्या
अदने निरापद के साथ दुआएं है
माँ बाप का आशीष है
तेरी सल्तनत में अदना लहूलुहान
परेशांन है
तेरी सल्तनत में आँसू के सिवाय और
क्या मिल सकता है
अदना को पता है तेरे पास सल्तनत है
अदने के पास माँ बाप की सीख है
शायद गुनाह के देवता तेरे पास नहीं
अदना जब होश संभाला था
तभी माँ ने कहा था
घबराना नहीं बेटा आदमी के दिए दर्द से
गुनाह का देवता मुर्दाखोर दे तो नहीं सकता
छिन सकता है हाथ से तुम्हारे
बेटा गुनाह के देवता की सल्तनत में
कोई ऐसा औजार नहीं जो छिन सके
कर्म फल श्रम फल से सजी
तुम्हारी नसीब से।

 


डॉ नन्द लाल भारती

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