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Dr. Srimati Tara Singh
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गिरवी की थाली

 

गिरवी की थाली

बूढ़ी कहारिन काकी रमरजिया,हांफती-भागती धनौती के बारे में तहकीकात करती धनौती के दरवाजे पर आ धमकी l बूढ़ी कहारिन काकी को हांफती हुई  देखकर धनौती पूछी  इतनी हैरान-परेशान क्यों ? ठहरो मचिया लाती हूँ कहकर  धनौती झट से मचिया कहारिन काकी के सामने रखकर बोली काकी बैठो l

कहारिन काकी बोली-मैं कैसे बैठ उधर ठकुराइन सीतादेवी मर रही हैं lधनौती बैठने की फुर्सत नहीं हैं l

काकी ठकुराइन मर रही हैं मरना तो सभी को है l ठकुराइन मौत से तुम्हें कुछ नुकसान होने वाला है क्या? तुम बहुत परेशान लग रही होl ठकुराइन चार पीढ़ियों का सुख भोग चुकी हैं l तनिक सुस्ता तो लो धनौती बोली l

धनौती तुम्हारे ठकुराइन का सन्देश लायी हूँ l प्यास लगी है,कहारिन बोली l

काकी मेरे घर का पानी तो पीओगी नहीं l तुम लोग भी ठाकुरों बाभनों के घर में पानी भरते-गोबर काछते बाभन हो गये हो l तुम लोगों के लिए भी हमारे लोगों के घर का ही नहीं हैण्डपाइप और कुएं का पानी भी अपवित्र होता है l काकी तुम भूखी- प्यासी और थकी लग रही हो ऐसी क्या बात है धनौती पूछी l

अरे खैलाशबाबू की माई मर रही है रमरजिया कहारिन बोली l

काकी बूढ़ी ठकुराइन मर रही है l अंग्रेजी राज ख़त्म हुए दशकों बीत गए l ठकुराइन के सामने के बीज से बने बरगद के कितने पेड़ मर गए होंगे l नाती-पोता से भरा परिवार है,जो जन्म लिया है मरता हैl क्यों तुम  दुःखी हो, ठकुराइन की मौत का सदमा लग रहा है क्या ? तुम अमर हो l चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचाकर मजदूरी पर चली जाऊँगी धनौती बोली l

अरे धनौती तू बौरा गयी है l मैं तुम्हारे लिया सन्देश लेकर आयी हूँ बूढ़ी काकी बोली l

काकी रिश्ते का सन्देश, नहीं नहीं मेरा बेटवा तो अभी छठवीं में पढ़ता है l हम तो सूर्यवंशी क्षत्रिय होकर अछूत हैं l मुझे यह प्रस्ताव नामंजूर है कह देना धनौती बोली l

तू पागल हो गयी है क्या धनौती  बूढ़ी कहारिन काकी गुस्से में बोली l

कैसे मैं पागल हो गई धनौती पूछी?

तू मेरी बात सुन नहीं रही है, बिना पंख के ही हवा में उड़ रही है, रोटी- बेटी का रिश्ता जोड़ने लगी है l अरे पागल औरत में जो सन्देश लेकर आई हूँ, वह तो सुन ले बूढ़ी काकी बोली l

नहीं बाद में l पहले मेरी बात तुम सुनो काकी धनौती बोली l

चल तू ही सुना दे l कहीं तेरी बात सुनने में ठकुराइन मर गयी तो मुझे पाप लगेगा बूढ़ी काकी बोली l

काकी पुण्य कमाने के चक्कर में लुटेरों ने  पोथी-पतरा का डर दिखाकर हमें लूट लिया है l तुम भी तो नहीं बची हो l  तुम और तुम्हारे लोगों हवेलियों में पानी भर रहे l गोबर काछ रहे हो l परजीवी लुटेरों ने देश की सम्पति पर कब्जा जमा लिया है l 

देश के मूलनिवासियों को अछूत बना कर कोई लुटेरा हमारी जमीन जायदाद लूट कर  शोषण कर रहा है l कोई मोटे पेट वाला लुटेरा कोठी में बैठा साहूकार बना लूट रहा है l एक सबसे बड़ा लुटेरा है, जो स्वर्ग का लालच नरक का डर दिखाकर आँख में धूल झोंक  रहा हैl

मतिभ्रष्ट हमारे लोग ठग बहुरुपिये लुटेरे का पांव पड़ रहें हैं, जबकि ऐसे लुटेरे को तो दौड़ा-दौडाकर झाड़ू से मारना चाहिए l काकी घर जाकर तनिक ठंडा पानी पीकर सोचना अगर मेरी बात गलत लगेंगे तो काकी जो सजा चाहे पूरी बस्ती के सामने दे देना l अब बताओ काकी  क्या सन्देश लायी हो धनौती बोली l

धनौती तुमने तो मेरी आँख खोल दी l चौबीस घंटा की गुलामी बासी या बचा-खुचा खाना मिलता है l ना मैं ना हमारे लोग इस बारे में कभी सोचे सोचें l जमींदारों के घर में पानी भरने और उनके पशुओं का गोबर फेंकने में पीढ़ियां बीत गईं बूढ़ी काकी बोली l

काकी बच्चों को स्कूल भेजो ज़ब तक हमारे लोग शिक्षित नहीं होंगे, ऐसे ही गुलामी के चंगुल में फंसे रहेंगे l हम लोग मेहनत मजदूरी भले ही कर रहें है, अपने बच्चों को स्कूल भेज रहें हैं l एक बात और कह देती हूँ काकी एक दिन यही लुटेरे रिश्ते लेकर आएंगे, समय करवट बदलेगा l काकी ये भी दिन बीत जायेगा l काकी तुम अब ठकुराइन का सन्देश सुनाओ देखो पूरी बस्ती इकट्टी हो गयी धनौती बोली l

धनौती तुम्हारी बातें सुनकर मन गदगद हो गया रमरजिया बोली l

नाती-पोतों को गोबर काछने में मत लगाना, उनका जीवन गदगद बना देना l काकी सन्देश तो बताओ धनौती पूछी l

अम्बेडकर बाबा साहब  का दिया सन्देश -शिक्षा शेरनी का दूध है काश हमारा समाज भी अपना लेता? पर पानी भरते गोबर काछते गुलामी का कीड़ा  दिमाग़ पर कब्जा कर लिया है कहारिन काकी बोली l

काकी ठकुराइन का सन्देश भूल गयी का धनौती पूछी l

अरे नहीं रे धनौती, खैलाश बाबू  की माँ सीता देवी  बीमार हैं, उनके जिंदा बचने की उम्मीद नहीं लगती है कहारिन काकी बोली l

काकी जो पैदा हुआ है मरता है, इसमें नई बात क्या है धनौती बोली l

है नई बात तुम्हारे पुरखों की निशानी फूल की थाली ठकुराइन की तिजोरी में  गिरवी पड़ी है l छुड़ा लो नहीं तो डूब जाएगी कहारिन काकी बोली l

क़िस पुरखे ने गिरवी रखा है धनौती पूछी l

तुम्हारी सास सुखिया ने रखा है,कलकतिया फूले की थाली है,जल्दी छुड़ा लेना नहीं तो हजम हो जाएगी l  यही ठकुराइन का सन्देश है, अब जाती हूँ l

जाओ काकी, क्या माजरा है, मुझे कुछ नहीं मालूम l मेरी सास ने कभी बताया नहीं l प्रेमनाथ के बाप को इस बारे में कुछ मालूम हो तो पूछूंगी धनौती बोली l

पूछ लेना धीरतू से, उसे तो मालूम होगा और  जल्दी करना l कहीं ठकुराइन टें बोल गयी तो रमरजिया काकी बोली l

ठीक है  काकी, उनसे पूछकर ठकुराइन से मिलूंगी, अभी तो काम पर जा रही हूँ धनौती बोली l

जैसी तेरी मर्जी कहते हुए रमरजिया काकी ठकुराइन की हवेली लौट गईl धनौती खेत में काम करने चली गयी l धनौती घरों में धुंआ उठते-उठते तो घर वापस आ गयी l पेट की आग बुझाने में जुट गयी l गोरु-चउवा और घर के छोटे -मोटे काम प्रेमनाथ और दुर्गा भाई -बहन मिलकर कर लेते थे l हाँ मजदूरों की औलादे तो आँख खुलते ही काम करने लगते हैं,बेचारों के सामने रोटी का सबसे बड़ा सवाल जो होता है l

धीरतू रात में तनिक देर से आया और अपनी  आदत के अनुसार आग सुलगाया l गांजा का सुडुका, जम कर मारा,गांजा के नशे में उसे नशे के भगवान के दर्शन देने लगे l इसी बीच धनौती खाना लायी और बोली लो खा लो l

ये तुमने क्या कर दिया दुर्गा की माई धीरतू बोला l

कोई  अपराध हो गया क्या धनौती पूछी?

कैलाश पर्वत निवासी भगवान से बात चल रही थी, वे तो चिमटा बजाते वापस चले गए धीरतू बोला l

अरे भ्रम में मत जीओ, जो पैसा गांजा-दारू पर उड़ाते हो,उसे बचाकर रखते तो दूसरे काम में आता, दुर्गा बड़ी हो रही है l प्रेमनाथ स्कूल जा रहा है l बाकी दो तो और हैं, उनके कल के बारे में कब सोचोगे धनौती बोली l

भगवान ने मुँह दिया है तो आहार भी देंगे तू बेवजह चिंता ना कर l थक गयी होगी जा खाना खा कर आराम कर धीरतू बोला l

पहले तो तुम खाओ धनौती बोली l

क्या बनाई हो धीरतू पूछा ?

जो घर में था l भैंस का दूध -गुड़ और लिटी, खाओ और सो जाओ l सुबह जल्दी उठना है l हाँ काम पर जाने से पहले खैलाश जमींदार की हवेली जाना  होगा धनौतीl

क्यों धीरतू पूछा?

मर रही ठकुराइन सीतादेवी का बुलौवा लेकर रमरजिया काकी  आई थीं धनौती बोली l

धनौती की बात सुनते ही  धीरतू का नशा उतर गया वह बोला कोई नई मुसीबत तो नहीं?

खैलाश की हवेली जाने पर मालूम पड़ेगा l मैं क्या बता दूँ धनौती बोली l

अरे भाग्यवान कहारिन काकी बुलौआ लेकर क्यों आई थी धीरतू पूछा?

सो जाओ दिन भर काम किये हो lनींद क्यों ख़राब कर रहे हो धनौती बोली l

तुम भी तो बगल में सोओगी? ऐसी क्या बात है जो नहीं बता रही हो धीरतू बोला ?

सासुजी थाली गिरवी रखी हैं, वही छुड़वाने के लिए बुलौआ आया है धनौती बोली l

ये गांव के जमींदार भी भारी जेब कतरे हैं l दादा-परदादा का हाथ, तोड़कर, मरोड़कर जबरदस्ती अंगूठा लगवाकर खेती-बारी लूटकर भूमिहीन बना दिए l  सील-लोढ़ा, थाली-लोटा गिरवी रखने के बहाने  कब तक गुलाम बनाने की साजिश करते रहेंगे l

 ए कौवे जैसे चालाक लोग बंधुआ बनाने का चक्रव्यूह और कब तक रचेंगे? इन लुटेरों की प्यास हम अछूतो के आंसुओं से बुझती है धीरतू बोला l

सासुजी की मृत्यु हुए बीस साल हो गए l  पैत्तीस साल से ज्यादा मेरा गौना आये हो गया थाली गिरवी पड़ी है, मुझे पता ही नहीं l सासुजी ने कभी इस बात का जिक्र ही नहीं किया l क्या सच है क्या झूठ है? कैसे पता लगेगा l कहते हैं मर रहा आदमी झूठ नहीं बोलता धनौती बोली l

मरती हुई ठकुराइन के मुंह से सुन लो कल जाकर, फिर सच-झूठ का फैसला करना l खैर इन लोगों पर विश्वास  के कारण ही तो भूमिहीनता है बंधुआगिरी है, जातिवाद का दहकता दर्द है l सो जाओ प्रेमनाथ की माँ, मुझे तो नींद आ रही है l 

हाँ सो जाओ, गांजे की नींद है l मैं खैलाशबाबू की हवेली सुबह चली जाऊँगी धनौती बोली l

मुझे लगता है कि  गिरवी रखी थाली हम नहीं छुड़वा पाएंगे l दो -पांच रूपये में गिरवी रखी होंगी थाली l अब कई हजारों की हो गईं होगी सुद पर सुद जोड़कर l पुरखों की जमीन -जायदाद आतंकी लुटेरे और परजीवी विदेशियों ने मिलकर लूट लिया l हमारा आदमी होने का हक छिनकर हम सूर्यवंशी और इक्षावाकु राजवंशीय मूलनिवासी बहादुर  कौम को परजीवीयों ने शूद्र बना दिया, अछूत बना दिया l देश पर मर-मिटने वाली कौम को धर्म की कुटिल चाल में फंसाकर अछूत बना दिया, इनका क्या भरोसा? जब ये अमानुषतावादी धर्म नहीं था तब हमारे लोग राजा थे l धर्म के भ्रम में क्या फंसे रंक हो गए, अछूत हो गए धीरतू बोला l

अरे अभी तो सो जाओ l लुटेरे ढोंगियों की काली करतूतें तो दुनिया जानती है l  दुर्गा के बाबू मैं बहुत थक गयी हूँ, तुम भी दिन भर हाड़फोड़ कर आये हो, खुद सो जाओ मुझे भी सोने दो धनौती बोली l

सुबह सूरज उगने से पहले धीरतू काम पर चला गया l धनौती चूल्हा-चौका कर खैलाशबाबू की हवेली गयी l मरती हुई ठकुराइन सीतादेवी धनौती को देखते ही उठकर बैठ गयी और बोली तुम आ गयी धनौती, धीरतूआ नहीं आया l

नहीं मालकिन वे काम पर गए l क्या बात है मुझे बता दो ठकुराइन धनौती बोली l

रमरजिया तो कल बताने गयी l लो फिर से सुन लो तुम्हारी सास ने कलकतिया फूल की आधा किलो की थाली मेरे पास गिरवी रखी है l अब मूलधन और सुद मिलाकर हजार के उपर नीचे होगा l थाली छुड़ा लो तुम्हारी सास को मोक्ष मिल जायेगा कब्र में पैर लटकाये ठकुराइन सीतादेवी बोली l

मूलधन कितना है ठकुराइन धनौती पूछी l

सब कुछ बही खाता में लिखा है lखैलाशसिंह दुकान का सौदा लेने बाजार गए है, हजार रूपये लेकर आना l तुम्हारी सास सुखिया की अंगूठा निशानी लगी है और अब तक का सब हिसाब, बही से देखकर खैलाश सिंह बता देंगे ठकुराइन बोली l

इंतजाम हो जायेगा तो आ जाऊँगी कहकर धनौती लौट आयी l

रात में काम पर से वापस आते ही धीरतू ने धनौती को तलब किया l

धनौती बोली-प्रेमनाथ के बाबू ये गिरवी रखी थाली ठकुराइन की कैद से छुड़वाना अपने बुते की बात नहीं है l

थाली सुद-मूर मिलाकर कितने की हो गयी है धीरतू पूछा?

अंदाजन हजार के उपर नीचे की l असली कीमत बही खुलने पर मालूम होगी धनौती बोली l

मतलब घर बेचने पर भी नहीं छुड़वा सकते धीरतू बोला l

सासुजी का मोक्ष कैसे होगा धनौती पूछी l

पाखण्डियों -परजीवियों के भ्रम में फंसकर,माँ की आत्मा के लिए खुद गिरवी पड़ जाऊं धीरतू बोला l

नहीं बिल्कुल नहीं l स्वर्ग-नरक और मोक्ष का चोखा खेल समझ में आ गया है l ऐसा चक्रव्यूह तो सदियों से रचा जा रहा है l हम इस चाल में नहीं फसेंगे धनौती बोली l

तुम क्या नहीं जानती  हो? पुरखों की जमीन हाथ तोड़-मरोड़ कर,अंगूठा काटकर ये  हड़प लिए, एक थाली के लिए अब और जोखिम नहीं धीरतू बोला l

क्या करना चाहिए ? इतनी भारी रकम का इंतजाम कैसे होगा धनौती चिंताग्रस्त बोली l

कोई इंतजाम नहीं l ठाकुर-ठकुराइन और दूसरे परजीवी लोग अपने मोक्ष के बारे में सोचें l मेरी माँ के मोक्ष के बारे में नहीं l अब लोमड़ी और बिल्ली जैसे चालाक लोगों पर  यकीन नहीं  l  पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक और मोक्ष के ढोंग ने बहुत कुछ लूट लिया है, अब और नहीं धीरतू बोला l 

मुंह पर मार दें क्या धनौती बोली l

वक्त तो यही कह रहा है धीरतू बोला l

चलो भूल जाते हैं धनौती बोली l

धीरतू बोला-क्या ?

मुंह पर तो मार दिए ना l इतनी जल्दी भूल जाओगे क्या धनौती बोली l

क्या मुंह पर मार दिए धीरतू माथा ठोंकते हुए बोला l

धनौती बोली-थाली l

नन्दलाल भारती

04/04/2025







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