Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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निशान

 

चाहता हूँ ,सद्भावना की उजली
तस्वीर बना दूं ,
जम्माना मुड़ मुड़कर देखे और
इतराये ,
कोशिश और मेहनत भी ,
करता हूँ दिन रात ,
पर क्या तस्वीर ,
नहीं पाती ,
रंग धर नहीं पाती है
परछाईयों के घाव से।
मैं भयभीत रहने लगा हूँ
सपने टूटने उम्मीदे
बिखरने लगी है
श्रम के गारे की दीवार ,
ढहने लगी है ,
आँसुओ के रंग को परछाईयों का
कुहरा ढकने लगा है ,
संभवाना पर
कब तक जी पाउँगा
सोच-सोच कर आतंकित ,
रहने लगा हूँ ।. …
संवेदना शून्य बना दिया है लोगो को
मानवीय रिश्ते में ,
दरार दाल दिया है
आज भी परछाईया संवर रही है
चैन से जीने भी
नहीं देती हा ये परछाईया। …
बिखर गया है ,
भविष्य और सपने भी
योगयता हारने लगी है ,
परछाईयो के आगे ,
विषबाण सरीखे बेधने लगी है ,
भविष्य को संभावनाओ में ,
ढूढ़ रहा हूँ ,
पर डर भी अभी बाकी है
कही परछाईयो के आतंक से
निशान ना मिट ज़ाए
पसीने और आसुंओ के मेरे । …

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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