Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दंश

 

सांप को दूध पिलाना महंगा पड़ गया । अपनी औकात दिखा गया । बच्चों का पेट काट कर अमानुष का पेट भरी । रहने को जगह दी । नेकी के बदले दंश दे गया कहते हुए रामप्यारी धम्म से गिर पड़ी ।
प्रसाद-क्या हुआ भगवान । किसको कोस रही हो ।
रामप्यारी-अपनी किस्मत को और किसको । तकदीर में सुख चैन तो नही मुट्ठी भर भर आग का दुख जरूर लिखा है ।
प्रसाद-क्या बुझनी बुझा रही हो । साफ साफ क्यों नही कहती । कहां सांप दूध पी रहा है रामप्यारी-बहुत भोले बन रहे हो । किसी पर भी आंख मूंद कर लेते हो। ऐरो गेरों के घड़ियाली आसूं पर यकीन कर दे देते हो पनाह घर में । ये नही देखते घर में जगह है की नही । खाने को अन्न है कि नही । सड़क से उठा लाते हो मुट्ठी भर आग का दर्द अपने और आश्रितों की जिन्दगी में भरने के लिये ।
प्रसाद-क्यों इतनी दुखी हो रही हो भागवान ।
रामप्यारी- तुम कह रहे हो क्यों दुखी हो रही हूं । सालों तक इस घर का एक आदमी नमक खाया । तुम्हारी वजह से वह आबाद हुआ है । देखो दिन बदलते ही आंख दिखाने लगा है ।
प्रसाद-खोटाचन्द की बात कर रही हो क्या ?
रामप्यारी-क्यों इतने भोले बन रहे हो सब जानकर ।
प्रसाद-क्या हो गया भागवान ?
रामप्यारी-क्या बाकी रहा । अरे जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया खोटाचन्द ।हमने तो भलाई किया और उसने दंश दे दिया ।
प्रसाद-क्या बात हो गयी । खोटाचन्द क्या कह गया ?
रामप्यारी-अरे सांप डसेगा और क्या करेगा ?दिन क्या बदल गया उसका तो रंग-ढंग ही बदल गया । एक दिन था कोई आंसू पोछने वाला न था । ये बच्चे सगे से ज्यादा चाहते थे उस खोटाचन्द को । सारी नेकी बिसार कर परायेपन की दरार को संवार गया । कैसे लोग लोगों पर मुसीबत में तरस खायेगे ?
प्रसाद-तुमने त्याग किया है । आदमी माने या न माने भगवान जरूर मानेगा ध्ं दुखी होने से क्या फायदा सब प्रभु की इच्छा अरे अपने पास तो अपना परिवार पालने भर को ठीकठाक अउमदनी नही है उपर से एक पराये का कई बरसों का खर्चा उठाना उपर वाले का चमत्कार मानो । अपने दिल को तसल्ली दो । उपर वाला अपने साथ तो है । किसी के साथ नेकी करके उससे उम्मीद लगाना अच्छी बात नही है । तुम तो भगवान से प्रार्थना करो प्रभु हमें इतना सबल बनाओ कि हम दूसरों के काम आ सके । क्यों दुखी होती हो तुमने तो भलाई का काम किया है । भलाई करने वाले अफसोस करेगे तो प्रभु नाराज होगे । तुमने परोपकार पुण्य का काम किया है । दुख दर्द और ‘ाारीरिक ब्याधि के दिनों में भी तुमने एक पराये को अपनों जैसे कम से कम दोनो वक्त का भोजन दिया है ।रहने का आश्रय दिया है । सचमुच तुम्हारा यह परोपकार का भाव मेरे लिये नाज का विषय है ।यदि खोटाचन्द ने तुम्हारे दिल को ठेंस पहुंचाया है तो माफ कर दो ।
रामप्यारी-नेकी के बदले दंश झेलते रहो । क्या नेकी के बदले यही ईनाम है ।
प्रसाद-देखो मनछोटा ना करो । तुमने दायित्व को पूरी जिम्म्ेदारी के साथ निभाया है ।यह तो आत्म-गौरव का विषय है । आंखों में आंसू और पेट में भूख लिये दर दर भटक कर खोटाचन्द इसी चैखट पर गिरा था ना । तुमने अपने हाथों से नि-स्वार्थ भाव से कई बरसों तक रोटी बनाकर खिलायी । उसी रोटी का कमाल है कि आज वह सोने की डाल काटने लगा है । तुमको तो खुश होना चाहिये ।
रामप्यारी-तसल्ली देना तो कोई तुमसे सीखे । अमानुष करा-धरा सब गोबर कर गया । बच्चों से झगड़ा कर गया ।बीटिया को चांटा मार गया । बीटिया बहुत रोयी है ।यही बच्चे अपने गुल्लक तक उस खोटाचन्द के लिये तोड़ देते थे । वही खोटाचन्द बच्चों को अपशब्द कह गया । तुम अपने दयालुपन के भाव का अब त्याग करो । कोई नेक मानने वाला नही है । जिस किसी को मुसीबत में देखते हो दौंड़कर मदद करने चले जाते हो । बदले में अपने को क्या मिलता है -बुराई ना ।इससे अच्छा तो है कि भलाई ही न करो । भलाई के बदले किस किस बुराई लोगो । अभी तक तो ऐसा कोई नही मिला जिसने काम निकलने के बाद अपने को बदनाम न किया हो चाहे वे केवलनाथ रहा हो । मंजय चाटक रहा हो,कण्ठधारी या लठधारी रहे हो सभी ने दगाबाजी किये है अपने साथ जबकि हमने उनके उपर एहसान किया है । दगाबाजों ने एहसान के बदले हमारी खुशियों में मुट्ठी भर भर आग ही भरा है हमारे भोलेपन का फायदा उठाकर। अब ये खोटाचन्द हमारी नेकी के बदले दंश दे गया ।
प्रसाद- बीटिया से कौन गलती हो गयी कि खोटाचन्द चांटा मार गया ? बच्चों को अपशब्द बक गया । यह तो बहुत बुरा कर कर गया खोटाचन्द ।
रामप्यारी-क्या नही किया इन तीनों बच्चेां ने खोटाचन्द के लिये । उसकी मदद ये बच्चे अपनी बचत से किया करते थे । सालों तक बिठा कर खिलाये आपने घर में रखे । अपना ओढना बिस्तर दिये । बच्चें बिस्तर तक बिछाते थे । एक पैसा खोराकी तक नही लिये । वही खोटाचन्द अपनी गैरहाजिरी में घर देखने को क्या कह दिये कि वह तो अपनी इज्जत सड़क पर लाकर रख दिया । चिल्ला चिल्लाकर कह गया कि मैं अपना किराया भाड़ा लगाकर आता हूं । ये लड़की खाना नही देती है । बीटिया ने इतना ‘ाायद कह दिया कि क्यों आते हो तो मालूम हैं उसने क्या बोला ?
प्रसाद-हमें तो कुछ भी नही पता । बताओगी तब ना जानूंगा ।
रामप्यारी- बडें निरादर के साथ बोला था तेरा बाप बुलाया है । बेटी को चांटा मारकर चला गया । बच्चों से झगड़ा करके अपनी इज्जत को सड़ंक पर लाकर रख दिया खोटाचन्द ने । भला लोग मुसीबत के दिनों में किसी की मदद कैसे करेगे ।अमानुष जिस थाली में खाया उसी में थूक गया । कहते हुए रामप्यारी आंसू बहाने लगी ।
प्रसाद-देखो तुमने आंसू बहाने का काम नही किया है । क्यों ये मोती बहा रही हो व्यर्थ में । अरे भलाइ्र किया है । कोई गलत काम तो नही किया है कि अपराधबोध में दबे । भलाई के बदले यदि दंश मिल रहा है तो इसमें हमारी क्या गलती । गलती तो उसकी है जो भलाई के बदले घाव दे रहा है । हमने जो किया नि-स्वार्थभाव से किया है । क्या हमारे लिये यह कम खुशी की बात है कि हमने दुख सहते हुए भी किसी का भाग्य संवार दिया । हंसों मुस्कराओं । तुमने आंसू बहाने लायक कुछ नही किया है । तुमने तो त्याग किया है ।आज के आदमी से उम्मीद नही करनी चाहिये । भगवान का आदेश मानकर जो कुछ भलाई का काम हो सके कर देना चाहिये । यदि खोटाचन्द ने भलाई के बदले दंश दिया है तो उसका फल उसे मिलेगा । तुमने तो किसी लालच में उसे पनाह तो नही दी ना ?
रामप्यारी- उस भीखमंगे से कैसी लालच । जो दाने दाने को नस्तवान था । जिसे अपनों ने मुसीबत के दिनों में ठुकरा दिया था ।आज भले ही खास बन बैठे है। उस दिन तो कोई एक रोटी तक देने को नही था । अब तो खोटाचन्द के बडेंं बड़े ओहदेदार,पैसेवाले और मदद करने वाले खडे़ होने लगे है । मुसीबत के दिनों में तो वही लोग परछायीं से बचते थे ।आज खास हुये है । हम तो बेगाने थे आज भी बेगाने है । उससे कैसी लालच ?
प्रसाद- क्यों खुद को तकलीफ दे रही हो ?
रामप्यारी-तुमको पता है गांव में ससुरजी को तुम्हारे खिलाफ कितना भड़का आया है। प्रसाद-भड़कने वालों के पास भी तो दिमाग है की नही ?
रामप्यारी-तुम तो हर बात को बहुत सरल तरीके से लेते हो । तुमको पता है क्या क्या ससुरजी से कहकर आया आया है ।
प्रसाद-मुझे तो नही पता । तुमको मालूम है तो बता भी दो ।
रामप्यारी-तुम्हारी कमाई की रोटी सालों तक तोड़ा । तुमने नौकरी दिलवाया । वही तुम्हारे परिवार में बंटवारे पर तूल गया ।
प्रसाद-अरे ऐसा क्या कह आया कि अब परिवार के बंटने की नौबत आ गयी ।
रामप्यारी-सुनो । खोटाचन्द तुम्हारे पिताजी से कहकर आया है कि बीटिया की पढाई अनापशनाप खर्च कर रहे है । दो कमरे का पक्का घर बनवा दिये सफाई तक नही करवा रहे है । पुश्तैनी घर गिर रहा है तनिक भी उन्हे चिन्ता नही है । उन्हे तो बस अपनी बीटिया और बेटवा की चिन्ता है । हाथ से निकल गये है ।देवरजी कह आया है कि देवचरन तुम भ अपने बच्चों को बीमा करवा लो तुम्हारे भइया ने तो अपना अपनी बीबी और तीनों बच्चों तक का बीमा करव लिया है ।सुसरजी खोटाचन्द की बातों में आकर बहुत गालीफकड़ दिये थे पूरी बस्ती इस बात को जानती है । क्या यह परिवार तोड़ने की खोटाचन्द की साजिश नही है । यह वही खोटाचन्द है जिसे अपने बच्चों जैसा हमने रखा । क्या भलाई के बदले ऐसा होना चाहिये ।लोग कितने स्वार्थी हो गये हैं । हमने तो इंसानियत के नाते मदद की थी । वह हैवान हमारी पारिवारिक जिन्दगी में मुट्ठी भर आग भरने से तनिक भी नही चूका ।
प्रसाद-भाई देवचरन और पिताजी कोई मूरख तो नही हे कि घर बिगाड़ने की बात नही समझेगे । हर मां बाप अपने बच्चों को अच्छी तामिल देना चाहते है । हम बच्चो की पढाई पर पैसा खर्च कर रहे है तो कोई अपराध तो नही कर रहे । बीमा तो सरकारी टैक्स मेंे छूट लेने के लिये सभी नौकरी ध्ंाधे वाले करवाते है । इसमें क्या गलती है ?
रामप्यारी-खोटाचन्द की निगाह में तुम तो परिवार से चोरी कर रहे हो ।खुद परिवार सहित ऐश कर रहे हो । अपने बाप ,भाई और भाई के परिवार को एक पैसा नही दे रहे हो । कपड़ालता खानखर्च सब कुछ देखनेे के बाद भी बदनामी हो रही है । मानती हूं तुम्हारा दिल साफ है तुम घरपरिवार को साथ लेकर चलते हो । अपने दुख को भूलाकर भी कुटुम्ब के सुख की चिन्ता करते रहते हो । बार बार किसी की बुराई्र करने पर सुनने वाला का मन तो बिगड़ता ही है । देवर जी और तुम्हारे पिताजी का भी मन बिगड़ा है । खोटाचन्द हमारे ही टुकड़े पर पलकर हमारे ही घर में आग बो रहा है ।
प्रसाद-भागवान सदकर्म की राह पर कांटे तो है पर इस राह पर चलकर आदमी देवत्व को पा जाता है । भगवान बुध्द को देखा कभी वे राजा था पर परमार्थ बस राजपाट तक छोड़ दिये । भगवान पर भरोसा रखे अच्छे काम का फल भी अच्छा मिलता है । आदमी मौका पाते ही दंश दे जाता है, सभी जानते है पर परमार्थ की राह पर चलने वालों का जनून खत्म नही हुआ है । जिस दिन यह जनून खत्म हो जायेगा इंसानियत भी धरती से उठ जायेगी ।
प्रसाद और रामप्यारी बाते कर रहे थे इसी बीच बेटा आत्मा आंंख मसलते हुए खड़ा हो गया । आत्मा की आंखों में आंसू देखकर प्रसाद पूछे क्या हुआ बेटा ? क्यों रोनी सूरत बनाये हो ?
आत्मा-पापा रात में चाचा का फोन आया था ।
प्रसाद- क्या कह रहा था खोटाचन्द ?
आत्मा-चाचा धमका रहे थे । कह रहे थे तेरे बाप ने नौकरी दिलायी है । मै छोड़कर जा रहा हूं ।तुम लोगो ने बहुुत एहसान मेरे उपर किया है ।
प्रसाद-बेटा मुझसे तो उसे बात करवाना था ।
आत्मा-चाचा बड़े गुस्से में थे । बहुत खराब लहजे में बात कर रहे थे । उनकी बात मुझे बेचैन कर दी । मै रात भर सो नही पाया । इसके पहले चाचा ने दीदी के साथ भी बहुत बद्तमीजी की थी । आपको कुछ बुरा कह देते तो ।
प्रसाद-बात तो करवाना था । मैं भी सुनता क्या कहता है ? कुत्ता एक रोटी का टुकड़ा खाकर आगे पीछे पूंछ हिताता है । खोटाचन्द बरसों तक इस घर का नमक खाकर हमें और हमारे परिवार को दोषी बना रहा है ।
रामप्यारी-देख लो सड़क पर से उठाकर लाये । छोटे भाई जैसा मान दिये । बेटवा की नई गाड़ा चला चला कर तोड़ डाला ।रहने खाने सब का भार उठाया । आज वही हमारे बच्चेां के साथ बदसलूकी कर रहा है । दिन बदलते ही हमारी नेकी पर कीचड़ उछाल रहा है । खोराकी जोड़े तो पच्चीसों हजार बन जायेगे ।सांप क्या पाले वह तो हमे ही काटने को दौड़ा रहा है । कोई किसी मुसीबत के चक्रव्यूह में फंसे के साथ कैसे नेकी करेगा ।
प्रसाद-क्यों खुद का कोस रही हो । कोई बुराइ्र तो नही किये है ना । अच्छाई का काम किया है दुनिया जानती है । आसपास वालों तो सगा समझते है ।खोटाचन्द ने बदसलूकी कर दिल को ठेंस तो पुहचाया है । मुझे भी दुख हो रहा है पर क्या कर सकते है सन्तोष ना ।
रामप्यारी- तुमने कितना सहजता से इतनी बड़ी बात को छोटी सी करके सन्तोष के आवरण में ढक दिया ।
प्रसाद-क्षमा करने वाला बहुत बड़ा होता है । सब कुछ भूल जाओं ।सन्तोष से बड़ा कोई सुख नही होता । हमने नेकी की है कोई गुनाह नही किया है ।
रामप्यारी-परायेपन का रिश्ता जख्म दे गया खोटाचन्द । हमने तो उसके साथ सगे से ज्यादा किया । आजकल के जमाने में मां बाप बोझ हो रहे है । हमने तो एक पराये को पनाह दिये । उसकेा खुली आंखों से सपने दिखाये ही नही उसके सपने साकार करने में तन, मन और धन से मदद भी किये ।देखो कामयाबी मिलते ही हमें फुफकारने लगा ।
प्रसाद-अरे वह तो पराया था । हमने अपना सगा मानकर उसकी मदद की । यदि वह मदद का बदला हमें बदनाम कर देना उचित समझता है तो उसकी मर्जी । वह अपना उल्ल्ूा सीधा हमारे परमार्थ के जनून पर मुट्ठी भर आग जरूर रखा है । तकलीफ की बात तो है पर क्या फायदा । हम परमार्थ के बीज बो रहे हैं अगर खोटाचन्द स्वार्थ का कांटा बो रहा है तो बो लेने दो एक दिन जरूर पछतायेगा ।
रामप्यारी-लोग तुम्हारी राह में कांटे बिछायेे तुम फूल बिछाओ । जब तुम्हे दूसरेां की मदद करने का इतना ही जनून है तो ।हां एक बात कहे देती हूं । अब किसी को सड़क से उठाकर घर में मत पनाह देना ।
प्रसाद-परहित से बड़ा कोई धर्म नही है । जहां तो हो सके करते रहना चाहिये ।
रामप्यारी-खोटाचन्द के दिये घाव के दर्द को तुम भले ही भूल जाओ पर मैं ओर बच्चे तो नही भूल सकते ।
प्रसाद-मैं तुम्हारी पीड़ा को समझता हूं । सन्तोष और परहित का जज्बा भी । भगवान इतना निर्दयी नही है । वह सब पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखता है । परमार्थ का हवन करते रहो ।
रामप्यारी-चाहे हवन में हाथ जल जाये ।
प्रसाद-हवन में ही तो जलेगा ना । इसमें कोई बुराई नही । भगवान की यही मर्जी है तो करते रहो हवन और जलने दो हाथ ।ठीक तो उसे ही करना है । हम क्यों चिन्ता करें ।
रामप्यारी-वाह रे इंसान । खोटाचन्द, रईसवा ही नही और कई आदमी नेकी के बदले दंश दे गये । इसके बाद भी परमार्थ का जनून तुम्हारे सिर पर सवार है । धन्य हो महाप्रभु ।
प्रसाद-आखिरकार तुम भी मान गयी नेकी के रहस्य को ।
रामप्यारी- बन्द करो ये उपदेश लगता है किसी की दस्तक हो गयी है दरवाजे पर । इतने में कालबेल घनघना उठी ।
दरवाजा खोेलते ही देवदत्त हाथ जोड़े नमस्कार की मुद्रा में खडें मिले ।गयाप्रसाद रामप्यारी को आवाज देने लगे । अरे आत्मा की मां देखो देवदत्त आये है बहुत दिनों के बाद । चाय नाश्ते का बढिया इन्तजाम करो ।
रामप्यारी पानी की टे्र रखती हुई बोली लो भाई साहब आप अकेले आये भाभीजी और बच्चों को भी साथ लाना था ।
देवदत्त-कभी फुर्सत में आयेगे । आपके हाथ के बने दाल बाफले लड्डे खाने ।
रामप्यारी-आप तो आज ही खालो। जब मुर्हुत निकलवाकर आओगे तब और बन जायेगा ।
गयाप्रसाद-हां देवदत्त दाल बाफले बना है ।
देवदत्त-जरूर खाउूंगा पर भाभी जा एक बात बताओ मेरे आने से पहले आप दोनों का लडाई तो नही हो रही थी ।
रामप्यारी-जब नई नवेली आयी थी । तब तो कभी लड़ाई ही नही हुई अब बुढौती में क्या लडाई करेंगे ।
देवदत्त-भाभी आपकी बोझिल आवाज और लाल लाल आंखे कुछ तो चुगली कर रही है ।
रामप्यारी-ऐसी कोई बात नही है । दूसरेां के मदद के लिये खुद को कुर्बान करने वाले आपके भाई साहब भला मुझसे लड़ेगे ?चलो दाल बाफले ठण्डे हो रहे है । खा लीजिये ।
देवदत्त-दाल बाफले का नाम सुनकर अंतडियों में कुलबुलाहट होने लगी है । जरूर खाउुंगा पेट भर कर ।
देवदत्त और प्रसाद बातचीत में ऐसे मशगूल हो गये कि कब ‘ााम हो गयी अंधेरा पसर गयाा । आत्मा ने कमरे की टयूबलाइट जला दी तब जाकर देवदत्त को पता चला की बहुत देर हो गयी कहते हुए खड़े हो गये और जाने का अनुरोध करने लगे ।
प्रसाद-चले जाना । चाय तो पी लो । ऐसे हा आ जाया करो । अपने से मिलकर मन को सकून मिलता है । मन हल्का हो जाता है अपनों से बात करके ।
देवदत्त-लगता है भलाई के दामन किसी ने मुट्ठी भर आग रख दी है । उसकी पीड़ा कराहट है ना। देखो भइया परमार्थ के जनून में भौजाई को मत भूलना । मैं चलता हूं ।
प्रसाद-ठीक है भइया सावधानी बरतना । अंधेरा है और ‘ाहर की सड़के तो अपने गांव की पगडण्डी से भी खराब हो गयी है । उपर से अस्त-व्यस्त ट्रैफिक भगवान ही मालिक है ।
देवदत्त- हां भइया।साधानी तो बरतना ही पड़ेगा आंख भी चकमा देने पर उतर आयी है ।
देवदत्त के जाते ही रामप्यारी प्रसाद से कहने लगी देखो देवदत्त भइया क्या कह कर गये है ।
प्रसाद- सुना हूं ।
रामप्यारी-एक कान से सुनते हो दूसरे से निकाल देते हो । देखो अपनी किस्मत की चादर में छेद हो गया है । तुम तो क्या ओढे क्या बिछाये की चिन्ता करो । बच्चों को अच्छी तालिम दो । परमार्थ के जनून से कोई भला नही होने वाला है । अच्छाई करो तो बुराई मिलती है ।
प्रसाद-बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती हो ।
रामप्यारी-अपनी जरूरतो को अनदेखा करो । बच्चों का पेट काटो । कहां तक उचित है । अरे कोई नाम निहोरा भी तो नही करता । बताओं किसने तुम्हारे साथ अच्छा किया है ।
प्रसाद-देवीजी ठीक तो कह रही हो पर किसी का दर्द देखा नही जाता ।
रामप्यारी-भले ही दंश झेलो ।
प्रसाद-दंश का दर्द तो होता है पर दुखिया को देखकर सब भूल जाता है ।
रामप्यारी-तुम्हारी उदारता का लोग फायदा उठा लेते है । कुछ लोगों ने तो भाई के बदले रोजी-रोटी तक पर लात मारने की पूरी तैयारी कर ली थी । याद है की भूल गये । भगवान ने बचा लिये अमानुषों ने तो पूरी तैयारी कर ली थी ।
प्रसाद-जिसका कोइ्र नही होता उसका भगवान होता है । अपनी मदद भगवान करेगा आत्मा की मां ।लोक नायक जयप्रकाश, विनोवा भावे जैसे नेकी की राह चलने वालों को कभी जमाना भूल पायेगा क्या ? ठीक है तुम्हारी समझाइस को ध्यान मे रखूंगा क्योकि साथ साथ जीने मरने की कसमें जो खायी है ।
रामप्यारी-हवन करो पर हाथ न जलने पाये ।इंसानियत,सद्भावना,दीन दुखियों की सेवा की राह चलो पर खोटाचन्द जैसे अमानुषों की पहचान तो करनी होगी ।
प्रसाद-बहुत बहुत धन्यवाद देवीजी तुमने मेरी आंखे खोल दी। मेरा विनती है तुमसे ।
रामप्यारी- क्या कह रहे हो ? विनती कैसी । तुम्हारे हर कर्म की आधे की हकदार तो मैं भी हूं । बताओ क्या करना होगा मुझे ।
प्रसाद-खोटाचन्द ने जो दंश दिया है उसके दर्द का एहसास अपने तक ही रखना वरना लोग परहित की राह पर चलने से कतरायेगे ।
रामप्यारी-सात कसम तो पहले ही खा चुकी हूं । आठवीं आज खा लेती है।
प्रसाद-भगवान के लिये इतनी मेहरबानी करना ।
रामप्यारी-आठवीं कसम तुम्हे साक्षी मानकर खाती हूं । भलाई के बदले मुर्दाखोर खोटाचन्द के दिये दंश को कभी भी जबान पर नहीं आने दंंूगी किसी के सामने ।

 

 

डाँ नन्द लाल ’ भारती ’

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