Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अभिशाप

 

अतिपिछडे़ छोटे से गांव में दरद्रिता के दलदल में धंसा माधव रहता था । वह अपने भाई भतीजों को खुषहाल बनाने के लिये गांव के जमीदार कंसबाबू का बंधुआ मजदूर बन गया था । माधव का त्याग सफल हो गया,उसका बड़ा भाई केषव कलकते में नौकरी करने लगा । सबसे बड़ा भाई राघव केषव की ससुराल में वारिस न होने की वजह से चारो भाईयों के नाम रजिस्ट्री हुई पांच बीघा जमीन पर खेती करने लगा था। माधव का सबसे छोटा भाई उधम तो बचपन से कुछ अंवारा किस्म का था वह भी गांव से षहर जा बसा । माधव अपने और परिवार के स्वर्णिम कल के सपने खुली आंखों से देखने लगा । कुछ बरस में ही केषव और उसकी घरवाली कजरी की नियति में खोट आ गयी । कजरी पांच बीघे खेत से उपजे कुण्टलों अनाज से एक दाना और केषव की कमाई से पैसा भी न देने की कसम खा ली । अब क्या माधव पर वज्रपात हो गया । राघव अपने सगे भाई केषव का मजदूर होकर रह गया । केषव और उसकी पत्नी कजरी पर लोभ का भूत सवार हो गया जबकि औलाद के नाम पर बस एक कन्या थी । केषव वही भाई था जिसके गुणगान करते राघव और माधव नही थकते थे । राघव ने तो केषव के गुणगान में बना डाला था । जहां चार छ- लोग इक्ट्ठा हुये कि राघव गाने लगता था ।
भइया हो तो बस अपनेे केषव जैसा
अपना केषव तो चांद जैसा ।
ना आये आंच कभी रिष्ते पर अपने
बना रहे प्यार सदा सच होवे सपने ।
भईया का प्यार करे खुषहाल
केषव की खुषी पर परिवार निहाल ।
भईया केषव भय्यपन का सरताज,
स्वार्थ के युग में ऐसा भाई कहां मिले आज ।
राघव और माधव का गुमान केषव की दगाबाजी के सामने नही टिक सका । केषव और उसका दमाद प्रभु जो कचहरी में मुलाजिम था साजिष रचकर सत्रह साल पुरानी रजिस्ट्री नोट के बण्डल परोस कर रद्द करवा लिया । चुपके चुपके केषव सारी जमीन अपनी इकलौती बेटी के नाम करवा लिया । किसी को भनक तक न लगने दी । कई बरसों के बाद राघव को दाल में कुछ काला लगा वह छानबिन करने लगा । इसकी भनक प्रभु को लगी वह साजिष से परदा हटता देखकर राघव को रास्ते से हटा दिया और इल्जाम राघव के माथे मढ दिया गया आत्महत्या का ।
राघव की घरवाली बहुत बरस पहले उससे नाता तोड़कर मायके जा बसी थी नवजात षिषु उजाला को माधव की चैखट पर फेंक कर। । माधव की नवविवाहिता घरवाली धनरी ने भेड़ बकरी और ख्ुाद तक की छाती चटाकर उजाला को पाल पोश ली । राघव के मरते ही बंधुवा मजदूर माधव की जैसे भुजायें कट गयी । वह बेसहारा हो गया । मुष्किलों के समय में कोई सहारा देने वाला न रहा । पैतृक घर पर परिवार वालों का कब्जा हो गया । माधव और उसके बच्चों केा सिर छिपाने की जगह न बची। जमींदार का हाथपांव जोड़कर वह बस्ती से कुछ दूर गांव समाज की जमीन पर मड़ई डालकर बसर करने लगा ।
गरीबी के दलदल में फंसे माधव को उबरने का कोई रास्ता दूर दूर तक नजर नही आ रहा था । बेचारे माधव के पास तंगी, भूमिहीनता, रोजी रोटी का कोई पुख्ता इन्तजाम नही । दिन भर जमीदार के खेत और चैखट पर हाड़फोड़ने की दो सेर मजदूरी इसके बाद भी माधव ने हार नही माना । उजाला को अपने बड़ा बेटा माना उसे पढाने लिखाने में जुट गया जबकि वह खुद लाख दुख भेाग रहा था । माधव के त्याग से उजाला आठवीं जमात का इम्तहान भी पास कर लिया । माधव उसे आगे पढाना चाहता था पर ना जाने क्यूं उजाला माधव और उसके परिवार को सांप की तरह फुफकारता रहता था । धनरी इतनी सन्तोशी औरत थी कि उजाला की हर गलती माफ कर देती कहती बेटा पढाई पर ध्यान दो आगे बढो । अपने बच्चों की तरफ इषारा करते कहती अपने भाई बहनो को तुम्हे हा आगे ले जानस है । बेटा हम तो अपनी औकात के अनुसार तुमको कोई तकलीफ नही पड़ने दे रहे है । अगर कोई दुख तकलीफ पड़ रहा है तो बेटा इसमें हमारी कोई गलती नही है । तुम तो अपने काका की कमाई देख ही रहे हो । हमारा सपना है कि तुम पढ लिखकर साहेब बनो । बेटा हम गरीब का मान रख लेना । उजाला माधव और धनरी के त्याग को कभी भी नही माना । वह बस्ती वालो से कहता मेरी मां छ- दिन का छोड़कर भाग गयी तो काका काकी को मुझे नही पालना था फेक देना था । कुत्ते बिल्ली खा गये होते । धनरी के कान तक ये बाते पहुंचती को तो वह घण्टो रोती पर माधव से कुछ ना कहती । माधव तो भोर में जमीदार की चैखट पर हाजिरी लगाकर काम में लग जाता । पूरी बस्ती सो जाती तब वापस आ पाता । आठवीं का रिजल्ट आया ही नही उसके पहले उजाला षहर भाग गया । षहर में एक कम्पनी में नौकरी करने लगा और बाकी समय में डाई-मेकिंग का काम सीखने लगा। कुछ महीनों में उजाला एक कामयाब मिस्त्री बन गया । अच्छा पैसा कमाने लगा । बड़ा मिस्त्री बन गया ।उसकी कामयाबी के चर्चे पूरे षहर में होने लगे थे । उजाला अपनी कामयाबी की खबर से माधव को कोसो दूर रखा । माधव को जब कभी चिट्ठी उजाला लिखता तो बस यही लिखता कि कामधाम नही चल रहा है मैं बीमार हूं । उजाला के बीमारी की खबर सुनकर माधव और धनरी रो उठते । बड़ी मुष्किल से अन्र्तदेषीय खरीदते उजाला को चिट्ठी लिखवाते बेटा कुछ दिन के लिये घर आ हवा पानी बदल जायेगा तो तुम्हारी सेहद सुधर जायेगी । उजाला के दिल में तो विष्वासघात था उसे गिरगिट की तरह रंग बदलने भलिभांति आता था । मां बाप की हैसियत से माधव और धनरी चिन्तित रहते । षहर गये उजाला को कई बरस बित गये पर वह कभी गरीब माधव की ओर नही देखा एकाध बार गांव गया भी तो आष्वासन के अलावा और कुछ नही दिया ।
उजाला के ससुराल वाले गौने देने के लिये माधव पर जोर देने लगे । माधव ने उजाला का ब्याह तीन चार साल की उम्र में ही कर दिया था । माधव उजाला के गौना की दिन तारीख पक्की कर चिट्ठी लिखवा दिया । गौना चार दिन पहले उजाला आ गया । इस बार काका काकी और छोटे भाई बहनों को कपड़े भी लाया और माधव के हाथ पर सौ रूपया भी रख दिया । माधव को तो जैसे दुनिया की दौलत मिल गयी । वह इस खुषी के आगे गौने के खान खर्च के लिये जमीदार से उधार को एकदम से भूल गया । क्यो न भूलता उजाला ने जो कहा था काका तुम चिन्ता ना करो सब दुख दूर हो जायेगा । भतीजे के इस षब्द ने तो और अधिक दुख सहने की षक्ति जैसे दे दी । माधव बोला बेटा तुम खुष रह यही हमारी सबसे बड़ी दौलत है । तुमको देखकर खुष रह लूंगा ।
बड़ी हंसी खुषी उजाला का गौना आया । गौना कराकर महीने भर बाद उजाला षहर चला गया । दो महीने के बाद ससुराल से सीधे अपनी पत्नी उर्मिला को अपने ससुर को खत लिखकर षहर बुलवा लिया । उर्मिला के षहर पहुंचते ही बचाखुंचा नाता भी उजाला ने माधव से खत्म कर उसकी नेकी पर मुट्ठी भर आग डाल दिया ।
कई साल पहले राघव मर गया या या मार दिया गया । राघव के जीते जी उजाला ने उसे कभी बाप का दर्जा नही दिया । उसके जीवन और मौत से उजाला को कोई फर्क नही पड़ा यदि किसी को फर्क पड़ा तो माधव को । राघव की मौत को प्रभू केषव और केषव के समधी दुधई ने सदा के लिये अबुझ पहेली बना दिया पर लोग दबी जुबान हत्यारा इन्ही तीनों को कहते । उजाला के मुंहमोड़ लेने से माधव एकदम अकेला होकर रह गया । बेचारा कभी काल कम से कम चिट्ठी लिखवा कर अपनी पीड़ा पर मरहम तो लगा लेता था । वह भी सहारा खत्म हो गया ।
उजाला का गौना आये कई साल बित गये । वह एक लड़की दो लड़के का बाप बन गया । लड़की ब्याह लायक हो गयी । पन्द्रह साल के बाद फिर उजाला की चिट्ठी आयी पुरानी चिट्ठी की तरह ही रोना काका मैं बीमार हूं । परिवार को षहर में रखना बहुत महंगा पड़ रहा है । काका मुझे रहने का ठिकाना दे देतो मैं बच्चों को गांव में छोड़ देता । अब क्या हर महीने उजाला की चिट्ठी आने लगी । उजाला की चिट्ठी पढवाकर माधव और धनरी रो उठते । एक दिन अचानक उजाला परिवार सहित आ धमका ।
धनरी उजाला के बच्चों को छाती से लगाकर बिलख बिलख रोने लगी ।
उजाला-काकी ना रो। ये बच्चे तेरे पास ही रहेगे । काकी मेरा खोया हक दे देना बस ।
सीधी साधी धनरी बोली - हां बेटा । दाना पानी कर बहुत थक गया होगा । तेरे काका तो जमींदार की बीटिया के ब्याह में लगे है । दिन रात गांव गांव से खटिया ढो-ढोकर ला रहे है । मैं भी वही गोबर डालकर आ रही हूं । सुबह से लटके लटके कमर टूट गयी । जमींदार के बेटी का ब्याह है दिन रात एक हमारी हो रही है । अपनी बीटिया के ब्याह में हम इतना परेषान नही हुए थे ।
उजाला-काकी मेरी भी बीटिया ब्याह करने लायक हो गयी है । काकी तुमको हवेली जाना है तो चली जा उर्मिला रोटी बना लेगी ।उजाला परिवार सहित गांव आया है कि खबर माधव को लगी वह भी दौड़ता हांफता आया ।
उजाला- माधव का पांव छूते हुए बोला काका अपने चरणों में जगह दे दो ।
माधव-क्या कह रहे हो उजाला । षहर की कोठी छोड़कर यहां रहोगे । मेरे चरणों में भला तुम्हारे जैसा बड़ा सेठ कैसे रहेगा । बेटा जब तक रहना हो रह ले । जो रूखा सूखा मुझ गरीब की झोपड़ी में बनेगा खा लेना । पोता पोती को कुछ दिन खेलाने का सुख भोग लूंगा ।अभी तक तो गरीबी और अपने ने बहुत रूलाया है । कुछ दिन बच्चों के साथ हंस खेल लूंगा किसी बडे़ सूख से कम नही होग हमारे लिय ।
उजाला-काका मैं अब तुमको दुख नही दूंगा । खूब बच्चों को खिलाओ । बच्चांे के रहने के लिये पिछवाडें की मड़ई दे देा । जब तक हम रहेेगे बना खा लेगे । हां खान खर्च का भार तुम्हारे उपर नही डालूंगा ।
माधव-क्या........?
उजाला- हां काका । अलग रहूंगा बस कुुछ दिन रहने का ठिकाना दे दो ।
माधव-द्वारिका की मां सुन रही हो । कितनी आसानी से दिल पर आरा चला दिया है इस उजाला ने । बीस साल के बाद भी नही बदला उजाला । सांप की तरह अभी भी फुफकारता है ।
धनरी-ठीक है । पढा लिखा है समझदार है । कुछ सोच समझकर ही कहा होगा । हम तो ठहरे गंवार । क्या समझे षहर की भाशा ? ठीक है बेटा रह ले जब तक चाहे । द्वारिका,हरिद्वार, गंगा,जमुना,गोमती और सरस्वती बीटिया की तरह तुमने भी तो मेरी छाती चाटकर पले बढे हो। हां तब इन बच्चों का जन्म नही हुआ था । अपनो पर विष्वास नही करेगे तो जमाने में फिर किस पर विष्वास करेगे , जेठ देवर, खानदान तक के लोगों ने धोखा दिया है । बेटा अब और दिल ना दुखाना ।
उजाला- काकी क्या कह रही हो ?
माधव-बेटा एक मां के आंसू का मोल रखना । मां की ममता पर मुट्ठी भर आग मत डालना । कोई एतराज नही है । अलग रहो या एक में । पोते पोती को भर आंख देखकर स्वर्ग का सुख मिल गया ।
उजाला-काका कोई दगाबाजी नही करूंगा ।
माधव काम पर चला गया । धनरी दाना पानी का इन्तजाम झटपट कर पिछवाड़े की मड़ईनुमा कच्चे घर को लीपपोत कर साफ सुथरी कर दी । उजाला का परिवार मड़ईनुमा कच्चे घर में रहने लगा । हफते भर में उजाला षहर गया फिर आ गया । दो बीघा जमीन लिखवा कर और मड़ईनुमा कच्चे घर की जगह पर पक्का मकान बनवाने की षुरूवात कर षहर चला गया । माधव ने खुषी खुषी मड़ई की जमीन दे दिया। माधव उजाला के शणयन्त्र को तनिक नही समझ सका । चार महीने में पक्का मकान बन गया । अपने झाोपड़ीनुमा घर के पास भतीजे के पक्के मकान को देखकर माधव बहुत खुष था । साल भर के अन्दर उजाला की बीटियाका ब्याह तय हो गया । बीटिया के ब्याह में माधव ने भी जी जान लगा दिया । खानदान की नाक का सवाल जो था । ब्याह बिताकर उजाला षहर चला गया । कुछ महीने के बाद फिर सुबह सुबह षहर से आ गया । रात में माधव जमीदार के काम से आया । माधव के आने की खबर लगते ही वह माधव से मिलने गया । माधव का पांव छुआ ।
माधव - उजाला को जी भर कर आषीष दिया और बोला बेटा बहुत ठण्डी है ओलाव सेको । द्वारिका षाम को ही जला देता है । मड़ई गरमा जाती है सब पुआल में दुबक कर सो जाते है।
उजाला- हां काका ठण्ड तो है । काका मैं तुम से आज्ञा लेने आया था ।
माधव-कैसी आज्ञा बेटवा ।
उजाला- काका तुमने मुझे मड़ई की जगह देकर मेरे उपर बड़ा उपकार किया है ।
माधव-बेटा उजाला उपकार कैसा । मैंने तुमको तब अपनी छाती से लगाया था जब तू सिर्फ छ- दिन का था । तेरी मां तुमको भइया को और घरबार छोड़कर मायके जा बसी थी । मंै और तेरी काकी रात रात भर जागे है । पास में रहेगा तो हमें भी बहुत खुषी होगी । इसलिये द्वारिका और हरिद्वार का हक मारकर तुमको घर बनाने की जगह दे दिया । बेटा तू सूखी रह । तेरी सूरत में मुझे राघव भइया नजर आते है । मेरे विष्वास को बनाये रखना ।
धनरी-द्वारिका के बापू रोटी ओलाव के पास बैठकर खा लो ।
माधव-आज कोई नयी बात है । रोज तो ओलाव तापते तापते खाकर यही पुआल में सो जाता हूं ।
उजाला-काका रजाई क्यो नही बनवा लेते । आठ प्राणी हो कम से कम चार रजाई तो होनी चाहिये ।
माधव- सोचता तो हर साल हूं पर बन नही पाती है । जब द्वारिका कुछ कमाने धमाने लगेगा तो रजाई भी बनेगी गद्दा और तकिया भी ।
उजाला-जरूर द्वारिका कमायेगा काका । काका ये लो ।
माधव-क्या है ।
उजाला-काका मिरचहिया गांजा है ।
माधव-जरा सन्तू को आवाज दे दो ।
धनरी- दो चिलम पहले ही पी चुके हो । अब मिरचहिया पीओगे तो सुबह उठ नही पाओगे । जमीदार दरवाजे पर आकर उलटा सुलटा बोलने लगेगे । कल पी लेना मिरचहिया अभी तो रोटी खाओ और सो जाओ । दिन भर हाड़फोड़ें हो अराम करो ।
माधव-ठीक है लाओ ।
धनरी-लिट्टी और गुड़ है थाली में । थाली के बाहर हाथ नही करना । नही तो ओलाव की आग मुट्ठी में आ जायेगी ।
माधव-हां भागवान मुझे भी मालूम है । इतना नषा अभी नही चढा है। उजाला खायेगा गुड़ रोटी । लो तनिक खा लो ।
उजाला-तुम खाओ । मै खा चुका हूं । उर्मिला मुर्गा बनायी थी,दरपन का दोस्त आया था । उसके साथ मैने खा लिया है । काका एक बात करने आया था तुमसे कहो तो कहूं।
माधव-कौन सी बात है बोल,रोटी खाते समय दांत काम करेगे कान थोड़े ही ।
उजाला-मेरे पक्के मकान के सामने वाली जमीन दे दो ।
इतना सुनते ही माधव के गले में रोटी अटक गयी । वह गिलास भर पानी के सहारे रोटी का निवाला पेट में ढकेलते हुए बोला क्या ?
उजाला-हां काका । मड़ई वाली जगह तो मुझे चाहिये ।
माधव- मुझे लोग पहले आगाह कर रहे थे कि माधव भतीजे पर विष्वास न करो । भतीजा और भेड़ा पर विष्वास करने वाला जरूर मुंह के बल गिरता है । काष मैं पहले सोच लिया होता । मड़ई की जगह देकर गलती कर दिया क्या ? तू मेरे बच्चों का ठिकाना छिनना चाहता है अंगुली पकड़ कर तु मेरा हाथ उखाड़ना चाहता है क्या?
उजाला-नहीं मैं तो कह रहा हूं कि मेरे घर के सामने से मड़ई अच्छी नही लग रही है । हटा लो बस ।
माधव-मड़ई लेकर जाउूंगा कहां ।
उजाला-किनारे हो जाओ । अभी पष्चिम की तरफ तो जमीन है ।
माधव-दो खटिया की जगह में मेरे दो बेटे कैसे रहेगे । उजाला अब मैं तेरी चाल समझ गया ।
उजाला-काका मैं जो चाह रहा हूं वही होगा ।
माधव-क्या हमे बेघर कर देगा ?
उजाला-घर में रहो या बेघर हो जाओ । मेरे घर के सामने वाली जमीन तो मेरी होकर रहेगी अब ।
माधव-धमकी दे रही है ।
उजाला-धमकी तो नही अपनी राह का कांटा हटाने को जरूर कह रहा हूं ।
माधव-हम तुम्हारी राह के कांटे हो गये है। भूल गये वो दिन जब तुमको सुखे में सुलाते थे। गीले में बारी बारी से हम और तुम्हारी काकी तुमको लेकर सोते थे । कितनी बार तुम मेरी जांघ पर टट्टी कर दिया करते थे । सब व्यर्थ हो गया किया कराया । बेटा नेकी को बदनाम ना कर।
उजाला-काका जमीन तो लेकर रहूंगा । चलता हूं । तुम रोटी खाओ और सो जाओ ।
माधव- क्या मेरी नेकी मेरे लिये अभिषाप बन गयी है।

उजाला-नेकी क्यों किया ? हमने कहा था क्या कि मुझे पालो ? अरे मेरी मां छोड़कर भाग गयी थी तो तुमको पालने की क्या जरूरत थी ? फेंक देते कुत्ते बिल्लियों के आगे मेरे मां बाप की तरह । झगड़े वाली जमीन को लेकर फैसला कल दे देना ।
उजाला धनरी और माधव का चैन छिन कर चला गया । धनरी और माधव रात भर ओलाव के पास बैठे चिन्ता की चिता में सुलगते रहे । एक दूसरे का मुंह ताकते रहे बेबस सा । मुर्गा बोलना षुरू किये । माधवा कुल्ला-फराकत करने चला गया । नित-कर्म से निपट कर आया । भैंस की हौदी धोया । पानी चारा डाला । भैंस को हौदी लगा कर जमींदार की मजदूरी पर चला । धनरी भी अपने काम में लग गयी । उधर उजाला भी रात भर जमीन हड़पने की उधेड़-बुन में नही सो पाया था । वह सूरज निकलते ही दरवाजे पर हाजिर हो गया काका... काका... की आवाज लगाने लगा ।

धनरी-वो तो काम पर चले गये क्यो बुला रहे हो ?
उजाला-क्या फैसला किया काका ने ?
धनरी-कैसा फैसला । अरे अपने बच्चों को ठिकाना तुमको कैसे सौप देगे । हमारा जो फर्ज था । जिम्म्ेदारी के साथ निभाया । अब बेघर तो नही हो सकते ना ।
उजाला-घर -बेघर से मुझे क्या लेना । मुझे तो बस अपनी हवेली के सामने से मड़ई हटवाना है ।
धनरी-क्या ?
उजाला-हां ।
धनरी-तुम्हारी हवेली की नींव हमारी छाती पर पड़ी है ।
उजाला- हवेली है तो हमारी ना । देखता हूं कब तक काका आंख मिचैली खेलते है । आंख मिचैली का जबाब मेरे पास है ।
धनरी- क्या करोगे। थाना पुलिस लाओगे । रूपया और ताकत के भरोसे हमे बेघर कर दोगे ।
उजाला- उजाला नाम मेरा तुमने ना जाने क्या सोच कर रखा है पर मैं सांप का बच्चा हूं मेरी मां नागिन थी। जानती हो दूध पीलाने वाले को भी सांप डंसने से परहेज नही करता । आज और काका के फैसले का इन्तजार कर लेता हूं । आये तो कह देना बस ....
धनरी-क्यों दूध के बदले जहर देने पर तूले हो । अरे तुम्हारी मां ने तुमको फेंक दिया तो क्या हमने तुमको अपनी छाती से नही लगाया ? मेरे दूध का यही कर्ज चुका रहे हो । अरे तुम्हारे पास तो पद और दौलत दोनों है तुम चाहते तो और भी कहीं जगह लेकर महल खड़ी कर सकते थे । तुम्हारी नजर हमारी मड़ई पर ही क्यो टिकी है ? मेरी माटी की दीवाल अब तुम्हे भा नही आ रही है । तुम मेरे माटी की दीवाल ढहाकर पक्की हवेली की षान में हीरे जोड़ना चाहते हो । मै ऐसा नही होने दूंगी । दक्षिण तरफ लकडी के सहारे खड़ी मड़ई को माटी के दीवाल खड़ी करने के उपक्रम में बच्चों के साथ लग गयी। उजाला-काकी तू कितनों भी माटी की दीवल खड़ी कर ले ये जमीन मेरी होकर रहेगी । मेरा भी हक बनता है । चार हिस्सेदारों की जमीन तुम अकेले ले लोगी क्या ? देखता हूं तुम्हारी मड़ई कैसे खड़ी रहती है मेरे पक्के मकान के सामने ।
धनरी-तुम मेरी मड़ई गिरा दोगे क्या? मैं भी देखती हूं कैसे जर्बदस्ती कब्जा कर लेते हो । कब्जा करने के लिये तुम्हे हमारी लाष पर से जाना होगा ।
काकी ऐसी बात है तो वह भी कर सकता हूं कहकर उजाला केषव के दमाद प्रभु से मिला जो उसके बाप का कातिल था । उसी के साथ साठगांठ किया माधव की जमीन हड़पने के लिये । कुछ बदमाषों को दारू मुर्गा देकर माधव और उसके परिवार को डराने धमकाने के लिये लगा दिया । प्रभु को इसी दिन का जैसे इन्तजार था । उजाला को अपने जाल में फंसता देखकर चारा डाल दिया । वह तो कचहरी में काम करता ही था इधर उधर करके हफते भर स्टे आर्डर जारी करवा दिया ।
उजाला चारो ओर से दबाव तो बनाये हुए था । माधव और उसका परिवार डरा सहमा रहने लगा था । कोई उसकी मदद के लिये आगे नही आ रहा था । माधव गांव के मुखिया प्रधान सबके आगे माथा पटका पर कहीं सुनवाई नही हुई । आखिरकार एक दिन सुबह सुबह ही पूरा थाना लेकर उजाला आ धमका। पुलिस वाले माधव माधव की आवाज देने लगे और उजाला के गुण्डा मड़ई गिराने में जुट गये। माधव घबराया आंखों में आसू लिये हाजिर हुआ दरोगाजी को सारा वृतान्त सुनाया । माधव के आसूं सच्चाई उगल गये ।
दरोगाजी बोले- क्यो नेकी को अभिषापित कर रहे हो उजाला ।
दरोगा जी की बात को सुनकर बस्ती के दो चार लोगों का जमीर जागा । वे माधव के पक्ष में दबी जुबान बोलने लगे ।
अब क्या घुरहू प्रधान भी आगे आ गये और बोले दरोगा जी अब अन्याय होगा इस गांव में । नेकी अभिषाप नही बनेगी । हमारी आंख खुल गयी है ।
दरोगाजी कोरा कागज मंगवाये। सुलहनामा तैयार हुआ । उजाला को बुलाये दरोगाजी ।
उजाला हाथ जोड़कर खड़ा हुआ । दरोगा जी ने कहां उजाला सबके सामने हकीकत आ चुकी है कि तुम कितना दगगाबाज है पर तुमको कुछ कहना हो तो कह सकते हो ।
उजाला- पंचों काका ने मुझे जो दिया है वह बहुत है ।काका काकी के एहसान तले इस जन्म क्या कई और जन्म भी नही उबर सकता हूं । मेरे मन में खोट आ गयी थी इसी वजह से गलती हो गयी । काका की जमीन पर अब मेरी बुरी नजर नहीं पडे़गी । मैं बहुते षर्मिन्दा हूं । हो सके तो मुझे माफ कर देना ।
दरोगाजी-सुलहनामें पर दसख्त करो । गांव वालों से ही नही माफी माधव से मागों । माधव ने माफ कर दिया तो समझो भगवान ने माफ कर दिया । तुमने तो गरीब की नेकी पर मुट्ठी भर आग डाल ही दिया है । नेकी के बदले बद्नेकी तो महापाप है । माधव का पैर पकड़ कर माफी मांगो । खुद दरिद्रता के दलदल में धंसा रहकर भी तुमको उपर उठा दिया ।मुर्दाखोर उजाला तुमने नेकी को अभिषाप बना दिया । माधव तुम्हारे लिये भगवान से कम नही है।
उजाला-माधव का पैर पकड़ लिया ।
माधव की आंखों से तर-तर आंसू बह निकले वह उजाला को झट से गले लगा लिया ।

 

 


डां.नन्दलाल भारती

 

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