Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पाहुन की मिट्टी हूँ

 
पाहुन की मिट्टी हूँ
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तेरे पाहुन की मिट्टी हूँ.........
   मुझको जीवन का बोध करा
निश्छल उड़ती अनुमोदन मे
   मेरे क्रंदन का बोध मिटा
तेरे पाहुन की मिट्टी हूँ.......
   दो पल की यौवन बेला में
मुझको छलिया के गीत सुना
   तेरा आवर्तन निश्चित है
मैं रंग लगा,तू प्रीत जगा 
   तेरे पाहुन की मिट्टी हूँ.....
माना प्रियतम इस व्योम तले
   मुझ को तुझ संग, जीना होगा
इस मौन धरा के आंचल में
    जीवन अंकुर ,सीना होगा
तेरे पाहुन की मिट्टी हूँ..........
    तेरे स्पंदन बन्धन से
मुझ को जाना है, मुझ तक
    जब प्राण ओज का आवेदन
देता अनभिज्ञ, गौण सा मन
    तब पूर्ण शमन कर खुलते है
उस न्यून धरा के, शून्य नयन !
    तेरे पाहुन की मिट्टी हूँ........
मुझको जीवन का बोध करा !!!

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