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कविसुखमंगल सिंह मन की तरंग में कलम उठाने वाले साधु स्वभाव के रचनाकार

 

कविसुखमंगल सिंह मन की तरंग में कलम उठाने वाले साधु स्वभाव के रचनाकार -डॉ जितेंद्र नाथ मिश्र ————————————————————————————————
       दूरसंचार विभाग के अवकाशप्राप्त अधिकारी श्री सुखमंगल सिंह विगत प्रायः दो दशकों से मेरे परिचय के दायरे में हैं | जहाँ तक मैंने इन्हें जाना है ये धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवृति के व्यक्ति हैं | गहरे सामाजिक सरोकारों के कारण वाराणसी और आस-पास के क्षेत्रों में ये अत्यंत लोकप्रिय हैं | दूसरी ओर इनके साहित्यिक सरोकार भी विस्तीर्ण हैं | इनकी कविताएं ,निवंध ,संस्मरण ,प्रेरक प्रसंग और आलोचना से सम्बंधित रचनाएँ  समय-समय पर देखने में आती रही हैं | मैं तो उस विधा में निरक्षर हूँ लेकिन लोगों के मुख से मैनें सूना है कि इंटरनेट और गूगल की दुनिया में भी इन्होंने काफी शोहरत हासिल की है | जो कुछ देखा -सूना ,जाना ,उसके आधार पर मेरी धारणा है कि श्री सिंह मन की तरंग में कलम उठाने वाले साधु स्वभाव के रचनाकार हैं जिनके शब्दों में उनके अक्खड़ -फक्कड़ व्यक्तित्व की छाप दिखाई पड़ती है | इन रचनाओं में काव्य सौंदर्य हो या न हो किन्तु जीवन का सौंदर्य अवश्य है | सामाजिक जीवन के साथ गहरी आत्मीयता स्थापित करने वाले रचनाकार के पास अनुभवो एवं विचारों की थाती बड़ी समृद्ध होती है | लोक के स्वयंभू प्रतिनिधि के रूप में उनके पास लोकमंगल की अपनी एक दृष्टि भी होती है | ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ‘ उनके निकट वाचिक सद्भावना के शब्द मात्र नहीं होते अपितु इन शब्दों की चरितार्थता के लिए संघर्ष उनके जीवन एवं साहित्य का प्रमुख प्रयोजन होता है | इस कारण वह अपना अधिकार मानते हैं कि जो बातें उनके अन्तस को उद्वेलित करती हैं उन्हें अपने पाठकों के साथ साझा करे | एक तरह से यह उसका कर्तव्य भी बनता है |        इसी अधिकार एवं कर्तव्य से प्रेरित होकर सुखमंगल जीने प्रस्तुत कविता संग्रह का प्रकाशन कराया है | स्वाभाविक रूप में उनके भीतर यह बोध थोड़ा गहरा ही रहा है क्यों कि वह गर्व एवं गौरव के साथ अनुभव करते हैं कि वे सरयू तट के कवि हैं | सरयू तट माने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की राजधानी अयोध्या | आज भी संसार के सामने आदर्श राज्य का रामराज्य से बढ़कर कोई दूसरा मानक नहीं है |  अतएव कवि का गौरव बोध उचित है तथा इससे प्रेरित होकर उसने इन कविताओं के केंद्र में सरयू , भगवान राम और अयोध्या को प्रतिष्ठित करके पाठकों को जीवनोपयोगी सन्देश एवं विचार प्रदान करने का प्रयास किया है | पृथ्वी तथा उसकी समस्त विभूतियों को वर्तमान स्थिति प्रदान करने वाले आदिराज पृथु से प्रारम्भ करके भगवान राम सहित दैवी सम्पदा से विभूषित अन्य महान चरित्रों का स्मरण दिलाते हुए रचनाकार ने पाठकों के भीतर यह विश्वास जागृत करने का प्रयास किया है कि अंधकार चाहे जितना गहरा हो ,उसे पराजित करने की ताकत एक नन्हें से दीप के भीतर वर्तमान होती है | मनुष्य की जिजीविणा समस्त आपदाओं ,विसंगतियों ,विघ्नबाधाओं तथा निराशाजनक स्थितियों पर भारी पड़ती है | कवि की दृष्टि में मानवता ही मनुष्य का परम धर्म है तथा इसमें पराजय एवं निराशा के लिए कोई स्थान नहीं होता |    मनुष्योचित धर्म अथवा कर्तव्य का निरूपण करते हुए संग्रह की पहली कविता में रचनाकार के ये शब्द जीवन तथा साहित्य के सन्दर्भ में उसकी दृष्टि का परिचय देते हैं न मांग किसी और से ऊषा की रश्मियाँ आप अपने आप में खुद प्रकाश करजो हो न सका उसके लिए मत निराश हो जो हो सकेगा उसके लिए कुछ प्रयास कर ‘कवि हूँ मैं सरयू तट का ‘ शीर्षक प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में इस तरह के मूल्यवान विचार पदे  पदे  उपलब्ध हैं | मुझे विश्वास है हिन्दी के काव्यप्रेमी इस संग्रह का यथेष्ट सम्मान करेंगे | 
दीपावली २०७६ वि ० ह . जितेन्द्र नाथ मिश्र वाराणसी प्रधान संपादक सोचविचार मासिक ,वाराणसी

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