Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

है मुश्किल आसान कहाँ

 
नये दौर में नींद का आना, है मुश्किल आसान कहाँ,
नींद नहीं तो ख्वाब का आना, है मुश्किल आसान कहाँ।
जाग रहे उल्लू की माफ़िक़, लिये मोबाईल देर रात तक,
फिर सुबह सवेरे जल्दी उठना, है मुश्किल आसान कहाँ?

ख्वाब नही देखा जिसने, क्या लक्ष्य क्या मंजिल हो,
लक्ष्य निर्धारण बिन जीना, है मुश्किल आसान कहाँ?
नींद हमारी पर ख़्वाब तुम्हारे, अक्सर देखा करते थे,
पराई हुयी यादों का आना, है मुश्किल आसान कहाँ?

खुली आँख के जिसके सपने, नींद नही उसको भी आती,
उस सपने की खातिर जगना, है मुश्किल आसान कहाँ ?
उसको मन्जिल मिल जाती है, जिसने पाना ठान लिया,
गहरे पानी मोती पाना बिन भीगे, है मुश्किल आसान कहाँ?

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ