घाव में मरहम लगाना, अपने खुद ही सीखिये,
तन्हा वक्त कैसे कटे, खुद से खुद ही सीखिये।
दोस्त आयेंगे मरहम लगाने, जख्मों को कुरेदेंगे,
ज़ख़्मों को कुरेदने से बचाना, खुद ही सीखिये।
घर के झगड़े ग़ैरों से, साझा नहीं किया करते,
आग लगने से पहले बुझाना, ख़ुद ही सीखिये।
छोड़ कर हक हकूक सारे, चैन की रोटी मिले,
स्वाभिमान ज़िंदा रहे, भरोसा खुद ही सीखिये।
हों बहुत सा ज़र ज़मीं, पर सुकून न हो पास में,
व्यर्थ की चिन्ताओं से मुक्ति, खुद ही सीखिये।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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