Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

खामोश सारी मैं उम्र जलता रहा

 

 

Sandip Aavad

 


खामोश सारी मैं उम्र जलता रहा
और राख से खुद को युही लिखता रहा

 

 

चुप थे कभी तुम और हम भी थे कभी
फिर कौन ये जो प्यार से बोलता रहा

 

कोई दर्द जाने न दुनिया में यहाँ
तो मैं अल्फाजों में दर्द लिखता रहा

 

गलति इतनी थी कि चुप मेरे होठ थे
जालीम वो मुझपर जुल्म करता रहा

 

न मिला यहाँ कोई सखा अपना मुझे
सुनसान सडकों पर यु ही चलता रहा

 

* बेवारस *

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ