तोटक छंद "विरह"
तोटक छंद
सब ओर छटा मनभावन है।
अति मौसम आज सुहावन है।।
चहुँ ओर नये सब रंग सजे।
दृग देख उन्हें सकुचाय लजे।।
सखि आज पिया मन माँहि बसे।
सब आतुर होयहु अंग लसे।।
कछु सोच उपाय करो सखिया।
पिय से किस भी विध हो बतिया।।
मन मोर बड़ा अकुलाय रहा।
विरहा अब और न जाय सहा।।
तन निश्चल सा बस श्वांस चले।
हर आहट को सुन ये दहले ।।
जलती यह शीत बयार लगे।
मचले मचले कुछ भाव जगे।।
बदली नभ की न जरा बदली।
पर मैं बदली अब हो पगली।।
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तोटक छंद विधान:-
जब द्वादश वर्ण "ससासस" हो।
तब 'तोटक' पावन छंदस हो।।
"ससासस" = चार सगण
112 112 112 112 = 12 वर्ण
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