Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सुख और दुख

 
श्रृंगार छंद "सुख और दुख"

सुखों को चाहे सब ही जीव।
बिना सुख के जैसे निर्जीव।।
दुखों से भागे सब ही दूर।
सुखों में रहना चाहें चूर।।

जगत के जो भी होते काज।
एक ही है उन सब का राज।।
लगी है सुख पाने की आग।
उसी की सारी भागमभाग।।

सुखों के जग में भेद अनेक।
दोष गुण रखे अलग प्रत्येक।।
किसी की पर पीड़न में प्रीत।
तो कई सब में देखे मीत।।

किसी की संचय में है राग।
बहुत से जग से रखे न लाग।।
धर्म में दिखे किसी को मौज।
पाप कोई करता है रोज।।

झेल दुख को जो भरते आह।
छिपी सुखकी उन सब में चाह।
जगत में कभी मान अपमान।
जान लो दोनों एक समान।।

कभी सुख कभी दुखों का साथ।
न छोड़ो कभी धैर्य का हाथ।
दुखों की झेलो खुश हो गाज़।
इसी में छिपा सुखों का राज।।
=========

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ