Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन की यादें !

 

मुहल्ले की वो गली में मेरा बचपन झूला झूल रहा है
छत में जाने को तरसते थे,
कनवा मकान मालिक लगे अब भी घूर रहा है
चाची के सूप से पापड़ गायब करते थे
चच्चा का जूता मेरा अब भी पता ढूँढ रहा है
कितने ही पुराने यार जो मुझे नाम से कम बुलाते थे
लम्बू की टाँगों का रास्ता वो मुहल्ला अपना भूल रहा है
देखो कोई अभी साथ बडी हुई ! वही खड़ी तक रही है
जिसके यौवन को अनदेखा किया,
बच्चा उसका मामू बोल रहा है !
देखो भाई... अभी भी आशिकी के नाम वहीं लिखे है
बस उन दीवालों का पुर्जा-पुर्जा हवा में झूल रहा है

 


--------------------अनुराग त्रिवेदी .......एहसास

 

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